किसानों के लिए नई सोच जरूरी

By: Dec 18th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

हमें गेहूं और चीनी जैसे न्यून कीमत के कृषि उत्पादों के स्थान पर उच्च कीमत के कृषि उत्पादों की तरफ बढ़ना चाहिए। भारत के पास हर प्रकार की जलवायु उपलब्ध है और हम अंगूर, ट्यूलिप, जैतून, तरबूज और टमाटर सभी की खेती आसानी से कर सकते हैं। हमें अपने किसानों की आय बढ़ाने के लिए उत्पादन की मात्रा बढ़ाने के स्थान पर इन उच्च मूल्य के उत्पादों की तरफ ले जाना होगा। इसके लिए सरकार को बुनियादी कदम उठाने होंगे…

आम चुनाव के सेमीफाइनल में किसान का मुद्दा छाया रहा है। केंद्र सरकार ने कृषि उत्पादों के समर्थन मूल्य में वृद्धि करके किसान का हित साधने का प्रयास किया था, लेकिन यह नीति सफल नहीं हुई है। इसके दो कारण हैं। मुख्य कारण यह है कि समर्थन मूल्य बढ़ाने से किसान द्वारा फसलों का उत्पादन अधिक किया जा रहा है, जबकि देश में खपत कम है, इस कारण फसल के दाम गिर रहे हैं और किसान घाटा खा रहा है। जैसे चीनी का उत्पादन अधिक होने एवं खपत कम होने से चीनी का भंडारण बढ़ता जा रहा है और दाम गिर रहे हैं। इस प्रकार समर्थन मूल्य बढ़ाने से समस्या का हल नहीं होता है। दूसरा हल यह दिया जा रहा है कि बढ़े हुए उत्पादन का निर्यात कर दिया जाए। यहां समस्या यह है कि अधिकतर कृषि उत्पादों के विश्व बाजार में दाम कम हैं और अपने देश में अधिक, जैसे स्किम्ड मिल्क पावडर का विश्व बाजार में दाम 134 रुपए प्रति किलो है, जबकि भारत में इसकी उत्पादन लागत 180 रुपए प्रति किलो है। ऐसे में यदि हमें स्किम्ड मिल्क पावडर का निर्यात करना है, तो सरकार को 50 रुपए प्रति किलो की सबसिडी देनी होगी, जो कि सरकारी बजट पर भारी पड़ेगा, यह नीति संभव नहीं है। साथ-साथ उत्पादन बढ़ाकर निर्यात सबसिडी देने से हमारे पर्यावरण की हानि होती है। जैसे हमने चीनी का उत्पादन अधिक किया, हमने अपने पानी का अति दोहन किया, भूमिगत पानी नीचे गिर गया, भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो गई, किसान ने मेहनत की और लाभ उस विदेशी उपभोक्ता को हुआ, जिसको हमने सबसिडी देकर सस्ती चीनी उपलब्ध कराई। इसलिए निर्यात की रणनीति सफल नहीं हो सकती है। समस्या का तीसरा उपाय ऋण माफ किया जाना है। देश के तमाम राज्यों ने किसानों के ऋण माफ किए हैं और इस चुनाव में भी ऋण माफी के वादे किए गए हैं, लेकिन यह भी सफल नहीं होगा। जैसे घाटे में चल रही कंपनी के ऋण माफ कर दिए जाएं, तो शीघ्र की दोबारा घाटा लगेगा और पुनः कंपनी ऋण में डूब जाएगी अथवा परिवार की आय कम हो तो पुश्तैनी जेवर को बेचने से अधिक समय तक जीवित नहीं रहा जा सकता है।

साथ-साथ ऋण माफी से राज्य सरकारों के बजट पर भरी वजन पड़ रहा है और राज्य सरकारें जरूरी विकास कार्य नहीं कर पा रही हैं, जैसे सड़क आदि का बनाना। इस प्रकार वर्तमान में लागू तीनों हल यानी समर्थन मूल्यों की वृद्धि, निर्यात अथवा ऋण माफी से किसानों की समस्या हल नहीं हो रही है। हमें नई सोच की जरूरत है। एक हल यह हो सकता है कि हम गेहूं और चीनी जैसे न्यून कीमत के कृषि उत्पादों के स्थान पर उच्च कीमत के कृषि उत्पादों की तरफ बढ़ें। आज फ्रांस में अंगूर की खेती करके शराब बनाई जा रही है। नीदरलैंड में ट्यूलिप फूलों की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है और संपूर्ण विश्व को वह देश ट्यूलिप के फूल उपलब्ध करा रहा है। अफ्रीका के छोटे से देश ट्यूनिसिया में जैतून के फलों की भारी खेती हो रही है। जापान में विशेष आकार के तरबूजों का उत्पादन किया जा रहा है, तरबूज  के छोटे फल को एक विशेष आकार जैसे चकोर डिब्बे में डाल दिया जाता है, जिससे बड़ा होने पर चोकोर आकार का बनता है। अमरीका में जीन परिवर्तन तकनीक के माध्यम से टमाटर के फल पर किसी कंपनी के लोगो को डाला जा रहा है। उन पौधों के हर फल के ऊपर उस कंपनी का लोगो स्वयं लगा हुआ हमें मिलता है। इस प्रकार के उच्च मूल्य के उत्पादों में किसान को भारी आय हो सकती है। फ्रांस और नीदरलैंड के किसान अपने कर्मियों को आज प्रतिदिन सात हजार रुपए का वेतन दे रहे हैं, चूंकि अंगूर और ट्यूलिप से इन्हें भारी आय हो रही है। भारत के पास हर प्रकार की जलवायु उपलब्ध है। हिमालय से लेकर यदि हम डेकन के पठार और केरल तक पहुंचें, तो गर्म, सर्द, नम और सूखे हर प्रकार की जलवायु हमारे यहां उपलब्ध है और हम अंगूर, ट्यूलिप, जैतून, तरबूज और टमाटर सभी की खेती आसानी से कर सकते हैं। हमें अपने किसानों की आय बढ़ाने के लिए उत्पादन की मात्रा बढ़ाने के स्थान पर इन उच्च मूल्य के उत्पादों की तरफ ले जाना होगा। इसके लिए सरकार को कदम उठाने होंगे। इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च की शोध सस्थाओं को सही करना होगा। सरकारी वैज्ञानिक मुख्यतः कुर्सी पर बैठकर आराम करते हैं। इन संस्थाओं में स्वयं शोध करने को अधिक महत्त्व न देकर इनके द्वारा निजी युनिवर्सिटियों को शोध करने के ठेके दिए जाने चाहिएं, जिससे वास्तविक शोध हो और भारत में फ्रांस के अंगूर जैसा उत्पादन हो सके। साथ-साथ सरकार को इन कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए बुनियादी संरचना स्थापित करनी होगी।

जैसे ट्यूलिप का फूल निर्यात करने के लिए नीदरलैंड के अमस्टरडाम हवाई अड्डे विशेष हैंगर बने हैं, जहां पर वातानुकूलित वातावरण में इन फूलों को रखा जाता है और यहां से इनका निर्यात हो सकता है। यदि आज हिमाचल के सोलन में ट्यूलिप फूलों की खेती हो, तो उनको हवाई अड्डे पर लाकर विश्व के बाजार में पहुंचाना संभव नहीं है, चूंकि हमारे हवाई अड्डों में इस प्रकार के वातानुकूलित हैंगरों की व्यवस्था नहीं है। दूसरा उपाय यह है कि हम किसान को उत्पादन के अधिक मूल्य देने के स्थान पर वही रकम सीधे उसके खाते में ट्रांसफर कर दें। अमरीका ने इस रणनीति को बखूबी अपनाया है। अमरीका के किसानों को भूमि पर खेती न करने के लिए सबसिडी दी जाती है। अगर कोई किसान अपनी भूमि को परती छोड़ देता है, तो रकम उसके खाते में डाल दी जाती है। अमरीका की सरकार समझती है कि यदि उत्पादन बढ़ेगा, तो बाजार में सप्लाई बढ़ेगी और फसल के दाम घट जाएंगे। जैसे अमरीका में मक्के का भारी मात्रा में उत्पादन होता है। मक्के का उत्पादन बढ़ा, तो दाम गिर जाएंगे और किसान को घाटा होगा। उस घाटे की भरपाई करने के लिए अमरीका की सरकार यदि मक्के का समर्थन मूल्य बढ़ा दे, तो उत्पादन बढ़ता जाएगा और उस उत्पादन को निर्यात करने के लिए सरकार को पुनः सबसिडी देनी पड़ेगी।

इसलिए अमरीका की सरकार ने निर्णय लिया कि मक्के का उत्पादन ही कम कर दो और किसान को एक रकम जमीन पर खेती न करने के लिए देने लगे। ऐसा करने से किसान को सीधे राहत मिली। उसकी जो ऊर्जा मक्के की व्यर्थ खेती करने के लिए व्यय होती थी, उस ऊर्जा का उपयोग वह दूसरे कार्यों में कर रहा है। वर्तमान में आने वाले चुनाव में किसान का मुद्दा हावी रहेगा। सभी पार्टियों को वर्तमान समर्थन मूल्य, निर्यात एवं ऋण माफी की नीति को त्याग कर उच्च मूल्य के उत्पादन एवं किसान को सीधे सबसिडी देने की नीति को लागू करना चाहिए।


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