खेलों से बचेगा विद्यार्थियों का स्वास्थ्य

By: Dec 14th, 2018 12:06 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

शारीरिक बीमारियों से निपटने के लिए प्रयुक्त होने वाली बहुत सी तकनीकों की खोज प्रशिक्षकों ने खेल के मैदान या व्यायामशालाओं में की है। आज औषधियों तथा शारीरिक प्रशिक्षण के बीच समुचित संबंध स्थापित हो चुका है। एथलेटिक्स प्रशिक्षण के क्षेत्र में होने वाली प्रगति का उपयोग आज चिकित्सा के क्षेत्र में किया जा रहा है। इसलिए अब हमें शिक्षा संस्थानों में अधिक मैदानों तथा खेलों के लिए अन्य सुविधाओं को तैयार करना होगा, ताकि हम शिक्षा संस्थान के हर विद्यार्थी की फिटनेस सुनिश्चित कर सकें…

जैसे– जैसे आधुनिक विज्ञान ने उन्नति कर मानव को सुख सुविधाओं से संपन्न करवाया है वैसे-वैसे आज का मानव बिना शारीरिक श्रम किए, होने वाली कई लाइलाज घातक बीमारियों की चपेट में आ रहा है। आधुनिकता की इस दौड़ में अंतरराष्ट्रीय भाईचारा व मैत्री तो बहुत दूर की कौड़ी है, मानव अपने परिवार को ही कलह से नहीं बचा पा रहा है। पिछले पांच दशकों से हिमाचल प्रदेश में शिक्षा व स्वास्थ्य के अनुपात में किताबी शिक्षा का तो खूब विस्तार हुआ है, मगर स्वास्थ्य के बारे में यह पहाड़ी प्रदेश साल दर साल पिछड़ता चला गया, जबकि शिक्षा का मतलब मानव का संपूर्ण विकास करना होता है, जिसमें इनसान शारीरिक व मानसिक रूप से इतना सबल हो कि वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर सफलतापूर्वक विजय प्राप्त कर जीवन को खुशहाल व सम्मानजनक जी सकें। खेल जहां मनुष्य को स्वस्थ रखते हैं, वहीं पर सबके साथ मिल-जुलकर रहना भी सिखाते हैं। ईसा पूर्व शुरू हुए ओलंपिक खेल जब से खत्म हुए थे, लगभग इन दो हजार वर्षों से पूरा विश्व युद्धों की चपेट में रहा। 1896 में जब फिर आधुनिक ओलंपिक खेल शुरू हुए, तब से मानव ने 20वीं सदी में काफी उन्नति की है। ओलंपिक खेलों की शपथ में जहां अंतरराष्ट्रीय मैत्री व भाईचारे की बात होती है, वहीं पर अपने देश के गौरव की बात से खिलाड़ी के साथ-साथ करोड़ों लोग, जो विभिन्न साधनों से इन खेलों को देख रहे होते हैं, उनमें राष्ट्रीयता का भी संचार होता है। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में आज के किशोरों व युवाओं को नशे से दूर रखना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है।

प्रदेश में शराब, भांग, अफीम तो बहुत दूर छूट चुके हैं, आज समैक तथा अन्य कई जहरीली दवाइयां युवाओं के साथ-साथ अब किशोरों तक भी पहुंचनी शुरू हो गई हैं। इस सबसे बचने के लिए हमें आज शिक्षा संस्थानों में हर विद्यार्थी की फिटनेस को सुनिश्चित करना होगा। इसके लिए हमें विद्यालय स्तर से ही विद्यार्थी में खेलों के माध्यम से फिटनेस बनाए रखने के लिए नए कार्यक्रम शुरू करने पड़ेंगे। दूरसंचार माध्यमों से जहां सूचना के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रगति हो रही है, वहीं पर आज के किशोर व युवाओं के लिए यह मीठा जहर साबित हो रहे हैं। इनके दुरुपयोग से आज का युवा व किशोर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। टीवी से जहां कई किशोरों की आंखों में चश्मे लग गए, वहीं पर आज मोबाइल की तरंगों के कारण कम उम्र के विद्यार्थियों पर शारीरिक व मानसिक रूप से कई तरह की तबाही हो रही है। सरवाइकल की समस्या आजकल बहुत अधिक बढ़ गई है। इस सब के पीछे मोबाइल का बहुत अधिक प्रयोग ही है। विद्यार्थियों के स्वास्थ्य की गिरावट का एक कारण विद्यार्थी का पैदल चलना भी बंद हो चुका है। आज का विद्यार्थी अपने आंगन में वाहन पर बैठकर स्कूल परिसर तक जाता है और उसी तरह शाम को वापस आता है। उसके पास शारीरिक श्रम व पैदल चलने के लिए अब समय ही नहीं बचा है, तो फिर उसके स्वास्थ्य के बारे में अभिभावकों व स्कूल दोनों को सोचना होगा। पहले विद्यार्थी तीन-चार किलोमीटर प्रतिदिन स्कूल पैदल चलकर स्कूल आता और वापस घर जाता था। घर में भी उस समय अपने अभिभावकों के साथ खूब घर के कामकाज में भी हाथ बंटाता था। अधिकांश हिमाचली परिवार खेती पर निर्भर थे, इसलिए विद्यार्थी की भी घर पर काफी बरजिश हो जाती थी। इसलिए उस समय के विद्यार्थी को स्कूल में फिटनेस कार्यक्रम की जरूरत नहीं थी। उस समय स्कूल में सवेरे की सभा तथा ड्रिल के पीरियड में भी विद्यार्थी को फिटनेस से गुजरना पड़ता था।

आज वह ड्रिल का पीरियड भी खत्म हो चुका है, क्योंकि पिछले दशकों में जब हिमाचल में चिकित्सा अभियंता व प्रबंधन के अधिक अच्छे संस्थान नहीं थे। बाहर के राज्यों में चल रहे महंगे संस्थानों में अधिक फीस देने से बचने के लिए अभिभावकों ने अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए इतना प्रेरित किया कि स्कूलों को अपना फिटनेस कार्यक्रम का समय भी पढ़ाई में लगाना पड़ा। ड्रिल का पीरियड भी पढ़ाई में बदल गया, घर में बच्चे के खेलने-कूदने के समय में भी पढ़ाई होने लगी। घर के काम से भी अभिभावकों ने अपने बच्चों को दूर कर पढ़ाई की रटाई में लगा दिया। इससे फिटनेस कार्यक्रम बुरी तरह प्रभावित हुआ। शारीरिक बीमारियों से निपटने के लिए प्रयुक्त होने वाली बहुत सी तकनीकों की खोज प्रशिक्षकों ने खेल के मैदान या व्यायामशालाओं में की है।

आज औषधियों तथा शारीरिक प्रशिक्षण के बीच समुचित संबंध स्थापित हो चुका है। एथलेटिक्स प्रशिक्षण के क्षेत्र में होने वाली प्रगति का उपयोग आज चिकित्सा के क्षेत्र में किया जा रहा है। किसी एथलीट को अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए तैयार करना हो, किसी बालक को भावी जीवन के संघर्ष से जूझने के लिए तैयार करना हो या किसी पक्षाघात के मरीज को ठीक करना हो, इन सबका उद्देश्य व तरीका एक ही है। शारीरिक योग्यता व आरोग्यता की जरूरत जब सबके लिए है, तो फिर शिक्षण संस्थान में हर विद्यार्थी को फिटनेस अनिवार्य हो जाती है। हमें शिक्षा संस्थानों में अधिक मैदानों तथा खेलों के लिए अन्य सुविधाओं को तैयार करना होगा, ताकि हम शिक्षा संस्थान के हर विद्यार्थी की फिटनेस सुनिश्चित कर सकें।


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