चुनाव परिणामों से भविष्य के संकेत

By: Dec 29th, 2018 12:07 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

यह प्रचार किया जा रहा था कि प्रदेश में कांग्रेस पूरी लड़ाई को एकतरफा बना देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यदि भाजपा किरोड़ी लाल मीणा को जरूरत से ज्यादा महत्त्व न देती, तो राजस्थान में भी मध्यप्रदेश वाली स्थिति बन सकती थी। तीनों हिंदी भाषी प्रदेशों के चुनाव परिणाम भाजपा को सचेत तो करते हैं, लेकिन किसी भी गणना से वे सोनिया कांग्रेस की एकतरफा वापसी का संकेत नहीं देते, परंतु भाजपा को अपने कुनबे में आ गई कमियों को अभी से सुधारना होगा। इन तीन प्रांतों में बहुत ही कम अंतर से जीतने का अर्थ यह नहीं कि सोनिया कांग्रेस पुनः अपनी घर वापसी के रास्ते पर चल पड़ी है। दरअसल ये तीन प्रांत ही ऐसे हैं, जिनमें भाजपा और कांग्रेस की दो दलीय व्यवस्था स्थापित हो चुकी है…

मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना की विधानसभाओं के चुनाव नवंबर-दिसंबर 2018 में हुए थे। नरेंद्र मोदी की सरकार के पांच वर्षीय कार्यकाल के ये अंतिम चुनाव थे, क्योंकि इसके पांच महीने बाद 2019 के लोकसभा चुनाव निश्चित हैं। इसलिए राजनीतिक क्षेत्रों में यह भी कहा जा रहा था कि ये चुनाव 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व जनमत को जान लेने का माध्यम बनेंगे। कुछ राजनीतिक पंडित इन्हें आगामी लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल भी कह रहे थे। इन चुनावों की महत्ता इसलिए भी बढ़ गई थी क्योंकि इन पांच राज्यों में से तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान केवल भारतीय जनता पार्टी के प्रभाव क्षेत्र ही नहीं थे, बल्कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो पिछले पंद्रह साल से भाजपा शासन में भी थी। मिजोरम में सोनिया कांग्रेस की सरकार थी। विधानसभा की चालीस सीटों में से सोनिया कांग्रेस केवल पांच सीटें जीत सकी। मिजो नेशनल फ्रंट ने छब्बीस सीटें जीतीं और सरकार बनाई।

मिजो नेशनल फ्रंट, भारतीय जनता पार्टी के नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलांयस का हिस्सा है। सोनिया कांग्रेस के मुख्यमंत्री ललथनवाला दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन दोनों में ही हार गए। भारतीय जनता पार्टी को पहली बार विधानसभा में एक सीट हासिल हुई। एक अन्य सीट पर वह दूसरे नंबर पर रही। भाजपा को कुल मिलाकर आठ प्रतिशत मत हासिल हुए। पूर्वोत्तर भारत में मिजोरम ही ऐसा राज्य बचा था, जहां सोनिया कांग्रेस का शासन था। मिजोरम में हारने के बाद पार्टी पूर्वोत्तर में साफ हो गई। तेलंगाना में सोनिया कांग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी, तेलंगाना जन समिति और सीपीआई से मिलकर गठबंधन किया था, लेकिन 119 सदस्यीय विधानसभा में उसे केवल 19 सीटें हासिल हुईं। दो सीटें तेलुगू देशम पार्टी ले गई।

चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति को 88 सीटें हासिल हुईं। नवाब के वक्त की रजाकार पार्टी की विरासत से निकली औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम को हैदराबाद नगर से सात सीटें मिलीं। भारतीय जनता पार्टी केवल एक सीट जीत सकी और उसे 7.1 फीसदी वोट मिले, लेकिन सोनिया कांग्रेस, सीपीआई और टीडीपी का गठबंधन का प्रयोग तेलंगाना की जनता ने नकार दिया। मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से सोनिया कांग्रेस ने 114 और भाजपा ने 109 सीटें हासिल कीं। बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिलीं। भाजपा को 41 प्रतिशत और सोनिया कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों में से सोनिया कांग्रेस को 99 और भाजपा को 73 सीटें मिलीं। बहुजन समाज पार्टी ने 6 सीटों पर जीत हासिल की । भाजपा को 38.8 प्रतिशत और सोनिया कांग्रेस को 39.3 प्रतिशत मत मिले। छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों में से सोनिया कांग्रेस ने 68 और भाजपा ने 15 सीटें हासिल कीं, बसपा सात सीटें ले गई। जहां तक प्राप्त मतों का प्रश्न है, सोनिया कांग्रेस को 43 प्रतिशत और भाजपा को 33 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। छत्तीसगढ़ में भाजपा की पराजय आश्चर्यचकित करती है, लेकिन गहराई से देखने पर पता चलता है कि प्रदेश के नक्सलवाद से ग्रस्त इलाकों में विधानसभा की लगभग चालीस सीटें आती हैं। इनमें से अधिकांश सीटें कांग्रेस ने केवल जीती ही नहीं, बल्कि इन सीटों पर भारी मतदान भी हुआ, जिसके कारण भाजपा और कांग्रेस को प्राप्त मत प्रतिशत का अंतर भी बढ़ गया। इन तीनों राज्यों में सोनिया कांग्रेस का किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं हो सका, जिसका प्रचार कांग्रेस जोर से कर रही थी। बहुजन समाज पार्टी ने तो कांग्रेस को अहंकारी बताया और उसे गठबंधन राजनीति के अयोग्य बताया। यही स्थिति समाजवादी पार्टी की रही। मध्यप्रदेश में कांग्रेस और भाजपा में बराबर की टक्कर थी। कांग्रेस को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि अंततः वह पंद्रह साल के बाद प्रदेश में भाजपा के बराबर पहुंच गई है। लगभग यही स्थिति राजस्थान की है।

यह प्रचार किया जा रहा था कि प्रदेश में कांग्रेस पूरी लड़ाई को एकतरफा बना देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यदि भाजपा किरोड़ी लाल मीणा को जरूरत से ज्यादा महत्त्व न देती, तो राजस्थान में भी मध्यप्रदेश वाली स्थिति बन सकती थी। तीनों हिंदी भाषी प्रदेशों के चुनाव परिणाम भाजपा को सचेत तो करते हैं, लेकिन किसी भी गणना से वे सोनिया कांग्रेस की एकतरफा वापसी का संकेत नहीं देते, परंतु भाजपा को अपने कुनबे में आ गई कमियों को अभी से सुधारना होगा। इन तीन प्रांतों में बहुत ही कम अंतर से जीतने का अर्थ यह नहीं कि सोनिया कांग्रेस पुनः अपनी घर वापसी के रास्ते पर चल पड़ी है।

दरअसल ये तीन प्रांत ही ऐसे हैं, जिनमें भाजपा और कांग्रेस की दो दलीय व्यवस्था स्थापित हो चुकी है। इन प्रांतों में कांग्रेस ने अन्य किसी दल से समझौता नहीं किया, क्योंकि वे अपने इलाकों में किसी दूसरे दल को एडजस्ट करने को तैयार नहीं थी। अब शेष बचे प्रांतों में सोनिया कांग्रेस कहीं भी मुख्य दल के रूप में नहीं हैं। वहां क्षेत्रीय दलों की प्रमुखता है। वे दल अब कांग्रेस को समझौते में कितनी सीटें देते हैं, इस पर कांग्रेस का भविष्य निर्भर करता है। फिलहाल तो अखिलेश यादव और मायावती राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश में दो सीटें देने को तैयार हैं।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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