ध्यान या समाधि का अर्थ

By: Dec 1st, 2018 12:04 am

ओशो

ध्यान या समाधि का यही अर्थ है कि हम अपनी खोल और गिरी को अलग करना सीख जाएं। वे अलग हो सकते हैं, क्योंकि वे अलग हैं। इसलिए ध्यान को मैं कहता हूं स्वेच्छा से मृत्यु में प्रवेश और जो आदमी अपनी इच्छा से मौत में प्रवेश कर जाता है, वह मौत का साक्षात्कार कर लेता है। सुकरात मर रहा है, आखिरी क्षण है। जहर पीसा जा रहा है उसे मारने के लिए और वह बार-बार पूछता है कि बड़ी देर हो गई, जहर कब तक पिस पाएगा! उसके मित्र रो रहे हैं और कह रहे हैं कि आप पागल हो गए हैं। हम तो चाहते हैं कि थोड़ी देर और जी लें, तो हमने जहर पीसने वाले को रिश्वत दी है, समझाया है कि थोड़े धीरे- धीरे पीसना। सुकरात बाहर उठकर पहुंच जाता है और जहर पीसने वाले से पूछता है कि बड़ी देर लगा रहे हो, नए-नए पीस रहे हो। पहले किसी फांसी की सजा दिए हुए आदमी को तुमने जहर नहीं दिया है। वह आदमी कहता है, जिंदगी भर से दे रहा हूं, लेकिन तुम जैसा पागल आदमी मैंने नहीं देखा। तुम्हें इतनी जल्दी क्या पड़ी है और थोड़ी देर सांस ले लो। मैं धीरे पीस रहा हूं और तुम खुद ही पागल की तरह बार-बार पूछते हो कि बड़ी देर हुई जा रही है। इतनी जल्दी क्या है मरने की। सुकरात कहता है कि बड़ी जल्दी है, क्योंकि मैं मौत को देखना चाहता हूं  कि मौत क्या है और मैं यह भी देखना चाहता हूं कि मौत भी हो जाए और फिर भी मैं बचता हूं या नहीं बचता हूं। अगर नहीं बचता हूं, तब तो सारी बात ही समाप्त हो जाती है और अगर बचता हूं, तो मौत समाप्त हो जाती है। असल में मैं यह देखना चाहता हूं कि मौत की घटना में कौन मरेगा, मौत मरेगी कि मैं मरूंगा, तो बिना जाए कैसे देखूं।

फिर सुकरात को जहर दे दिया गया। सारे मित्र छाती पीटकर रो रहे हैं, वे होश में नहीं है और सुकरात क्या कर रहा है? सुकरात उनसे कह रहा है कि मेरे पैर मर गए, लेकिन अभी मैं जिंदा हूं। मेरे घुटने तक के पैर बिलकुल मर चुके हैं। अब अगर तुम इन्हें काटो, तो भी मुझे पता नहीं चलेगा। यानी एक बात पक्की पता चल गई कि मैं पैर नहीं था। मैं अभी हूं मैं पूरा का पूरा हूं। मेरे भीतर अभी कुछ भी कम नहीं हुआ है। फिर सुकरात कहता है कि अब मेरे पूरे पैर ही जा चुके, जांघों तक सब समाप्त हो चुका है। अब अगर तुम मेरी जांघों तक मुझे काट डालो, तो मुझे कुछ भी पता नहीं चलेगा, लेकिन मैं हूं! और वे मित्र हैं कि रोए चले जा रहे हैं और सुकरात कह रहा है कि तुम रोओ मत, एक मौका तुम्हें मिला है, देखो। एक आदमी मर रहा है और तुम्हें खबर दे रहा है कि फिर भी वह जिंदा है। मेरे पैर तुम पूरे काट डालो तो भी मैं नहीं मरा हूं। मैं अभी हूं। वह कहता है कि मेरे हाथ भी ढीले पड़े जा रहे हैं, हाथ भी मर जाएंगे। वह कहता है धीरे-धीरे सब शांत हुआ जा रहा है, लेकिन मैं उतना का ही उतना हूं और सुकरात कहता है, हो सकता है थोड़ी देर बाद मैं तुमको खबर देने को न रहूं, लेकिन तुम यह मत समझना कि मैं मिट गया।

क्योंकि जब इतना शरीर मिट गया और मैं नहीं मिटा, तो थोड़ा शरीर और मिट जाएगा, तब भी मैं क्यों मिटूंगा! हो सकता है, मैं तुम्हें खबर न दे सकूं, क्योंकि खबर शरीर के द्वारा ही दी जा सकती है, लेकिन मैं रहूंगा। और फिर वह आखिरी क्षण कहता है कि शायद आखिरी बात तुमसे कह रहा हूं। जीभ मेरी लड़खड़ा गई है और अब इसके आगे मैं एक शब्द नहीं बोल सकूंगा। वह आखिरी वक्त तक यह कहता हुआ मर गया है कि  मैं हूं।

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