नए करियर के तराने

By: Dec 20th, 2018 12:05 am

हिमाचली शिक्षा के तमाम दावों से परे जिस सीमा रेखा पर नए करियर के प्रति युवाओं का जोश दिखाई दे रहा है, उसे भविष्य की संभावना में देखना होगा। आईपीएल के मैदान पर खेल का चमकता करियर हिमाचली क्रिकेटर को बुला रहा है और इसे साबित करते अंकुश बैंस तथा पंकज जसवाल ने अपनी जगह पक्की कर ली है। दोनों खिलाडि़यों को खेल में दम दिखाने के एवज में बीस-बीस लाख की फीस अदायगी के मायने, प्रोफेशन तथा जीवन की महत्त्वाकांक्षा को प्रश्रय दे रहे हैं। यहां खेल और खिलाड़ी जीत रहा है, लेकिन दूसरी ओर औपचारिक शिक्षा की उपाधि हासिल करके बेरोजगारी की लाइन ही लंबी हो रही है। इतना ही नहीं, एमबीए तथा समकक्ष उपाधि प्राप्त युवा अगर चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए भाग्य आजमाने को मजबूर हैं, तो करियर की संभावना में शिक्षा का औचित्य प्रश्नांकित है। कुछ इसी तरह इंडियन आइडल की नामी गीत-संगीत प्रतियोगिता में दो हिमाचली बच्चे टॉप पांच में पहुंच कर देश में अपना नाम चमका रहे हैं, तो इस योग्यता के पैमाने में हिमाचली शिक्षा का क्या योगदान है। स्कूल से कालेज शिक्षा तक के सफर में नए करियर की परिभाषा को न तो पाठ्यक्रम पूरा कर पा रहे हैं और न ही उपलब्ध अधोसंरचना में ऐसी कोई गारंटी है। भले ही किसी स्कूल के वार्षिक समारोह में बच्चे फिल्मी गीतों पर नाच लें या विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद कोई नेता प्रशंसा भी कर दे, लेकिन औचित्यहीन प्रदर्शनों के बीच छात्रों का मार्गदर्शन कैसे होगा। स्कूलों में न तो गीत-संगीत की शिक्षा का कोई उचित प्रबंध और न ही खेल प्रशिक्षण की सुविधाएं मुकम्मल हो पाई हैं। नतीजतन छात्र समुदाय अपने जुनून और अभिभावकों के मार्गदर्शन में ही नए करियरों की ओर मार्ग प्रशस्त कर पाता है। ऐसे अनेक उदाहरण अब हिमाचल में मिल जाएंगे, जहां अभिभावकों ने बच्चों की प्रतिभा की खातिर दिल्ली-मुंबई तक कूच करके प्रशिक्षण उपलब्ध कराए। खेल संगठनों के रूप में भी देखें, तो सियासी कारवां कहीं अधिक फैला, जबकि सुविधाओं में तरक्की का खाका कमजोर ही रहा। एकमात्र क्रिकेट एसोसिएशन ही इस दृष्टि से कामयाब उदाहरण पेश कर सकी है और इसके लिए सांसद अनुराग ठाकुर के नेतृत्व की धार हमेशा ही मूल्यावान आंकी गई। आज अगर आईपीएल में हिमाचली क्रिकेटर जगह बना रहे हैं, तो इसके लिए खेल का उपलब्ध ढांचा, प्रशिक्षण तथा माहौल का योगदान रहा है। प्रदेश के खेल छात्रावासों ने भी राष्ट्र को कई खिलाड़ी दिए हैं और इसी के परिणामस्वरूप प्रो कबड्डी व वालीबाल जैसी टीमों में हिमाचली युवा अपना करियर बना रहे हैं। कमजोरी स्कूली खेलों में जरूर रही है और जहां सुधार की गुंजाइश को पूरा करना होगा। प्रदेश में विभिन्न खेलों की अकादमियां, खेल प्राधिकरण तथा स्कूल-कालेज स्थापित करके इन्हें करियर के प्रसार में सहायक बनाना होगा। इसी तरह स्कूल से ही गीत-संगीत शिक्षा को प्रसारित करते हुए प्रादेशिक लोककलाओं के संरक्षण की दिशा में बढ़ना होगा। चंबा की धरोहर पृष्ठभूमि के दृष्टिगत कला कालेज की बुनियाद जहां जरूरी हो जाती है, वहीं मंडी के सांस्कृतिक महत्त्व के साथ एक राज्य स्तरीय कला केंद्र की स्थापना की जाए। हिमाचली गायक निरंतर लोक परंपराओं और उसके बाहर अपना स्थान बना रहे हैं, अतः इस विधा को करियर के रूप में पारंगत करना होगा। कहना न होगा कि ‘दिव्य हिमाचल’ ने जब से हिमाचली प्रतिभाओं का आकाश खोला है, प्रदेशभर में गीत-संगीत व नृत्य की अकादमियां, जिम तथा फुटबाल जैसे खेल के प्रशंसक व प्रश्रयदाता भी बढ़े हैं। इसका एक सबूत बनकर अंकुश भारद्वाज तथा नितिन आज अगर इंडियन आइडल की अंतिम पायदान तक पहुंचे हैं, तो इन सीढि़यों को थामकर ‘दिव्य हिमाचल’ भी प्रदेश में खड़ा है। हमने अंकुश और नितिन के भविष्य में भले ही अंजुलि भर योगदान किया हो, लेकिन ऐसी कोशिश के सामूहिक दर्पण पर हिमाचली प्रतिभा को हम सब मिलकर बहुत आगे बढ़ा सकते हैं। केवल दो दिन बाद अंकुश और नितिन की अग्निपरीक्षा है अतः राष्ट्रीय मंच पर पांच नगीनों के बीच इन दो हिमाचलियों का समर्थन करेंगे, तो मंजिलों पर हमारा भी नाम लिखा जाएगा। प्रदेश की जनता को अब हिमाचली प्रतिभा को प्रश्रय देना होगा, ताकि जब कभी सफलता लिखी जाए तो गौरव की दिवाली घर-घर मनाई जाए। चार युवा हिमाचलियों की शान में आइए इन गौरव के क्षणों को स्वर्णिम बनाएं, ताकि कल इसी तरह आसमान पर प्रदेश की सुनहरी कहानी लिखी जाए।


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