भाजपा की नाव में जीएसटी का छेद

By: Dec 25th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

अब जीएसटी तो लागू हो ही गया है, अब इसकी भर्त्सना मात्र करने का कोई औचित्य नहीं है। उपाय यह है कि छोटे उद्योगों को कंपोजीशन स्कीम में इनपुट पर अदा किए गए जीएसटी का रिफंड लेने की सुविधा दे दी जाए। उपरोक्त उदाहरण में छोटा उद्यमी जो बिना छपे कागज को 94.40 रुपए में खरीदता है, उसमें अदा किए गए 14.40 रुपए के टैक्स को उसे रिफंड दे दिया जाए। तब उसकी बिना छपे कागज की शुद्ध लागत 80 रुपए ही पड़ेगी। उसमें 20 रुपए वैल्यू ऐड करके और एक प्रतिशत जीएसटी जोड़कर वह 101 रुपए में उसे बेच सकेगा, तब खरीददार के लिए बड़े उद्यमी से 100 रुपए में छपे हुए कागज को खरीदने की तुलना में 101 रुपए में छोटे उद्यमी से खरीदना लगभग बराबर पड़ेगा और छोटे उद्योगों को फिर से सांस मिलेगी। सरकार को चाहिए कि छोटे उद्यमियों के प्रति नर्म रुख अपनाए…

हाल के चुनाव में स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान आर्थिक नीतियों से जनता संतुष्ट नहीं है। जनता की विशेष मांग रोजगार की है, जो मुख्यतः अपने देश में छोटे उद्योगों द्वारा सृजित होता है, लेकिन जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों की परिस्थिति बिगड़ गई है और साथ-साथ देश की भी। यही मुख्य कारण दिखता है कि देश की विकास दर गिर रही है। वर्ष 2016-2017 में देश का जीडीपी 7.1 प्रतिशत से बढ़ा था। वर्ष 2017-18 में यह दर घट कर 6.7 प्रतिशत रह गई थी। वर्ष 2006 से 2014 तक हर वर्ष सरकार के राजस्व में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि होती थी, अब यह घट गई है। जुलाई 2017 में जीएसटी से 94 हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिला था, जो कि जून 2018 में 96 हजार करोड़ हो गया था। इसमें मात्र 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। राजस्व की वृद्धि दर 15 प्रतिशत से घटकर मात्र 2 प्रतिशत रह गई है। अर्थव्यवस्था के इस ढीलेपन में छोटे उद्योगों की विशेष भूमिका है। छोटे उद्योगों द्वारा श्रम अधिक एवं मशीन का उपयोग कम किया जाता है।

श्रम का अधिक उपयोग होने से इनके द्वारा वेतन अधिक दिया जाता है। इस वेतन को पाकर श्रमिक बाजार से छाते, किताब-कापी, कपड़े इत्यादि की खरीद करते हैं। इस खरीद से बाजार में मांग बनती है और निवेशक इन वस्तुओं के उत्पादन में बढ़कर निवेश करते हैं। इस प्रकार छोटे उद्योगों के माध्यम से खपत और निवेश का सुचक्र स्थापित होता है। यह सुचक्र जीएसटी के कारण टूट गया है, चूंकि जीएसटी का छोटे उद्योगों पर तीन प्रकार से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जीएसटी का छोटे उद्योगों पर प्रमुख नकारात्मक प्रभाव टैक्स के भार में वृद्धि से पड़ा है। कहने को जीएसटी के अंतर्गत छोटे उद्योगों को कंपोजीशन  स्कीम में मात्र 1 प्रतिशत का टैक्स देना होता है, परंतु यह पूरी कहानी नहीं बताता है। चूंकि कंपोजीशन स्कीम में इनपुट पर अदा किए गए जीएसटी का रिफंड नहीं मिलता है, इस कारण खरीददार को छोटे उद्योगों से माल खरीदना भारी पड़ता है। इसे एक उदाहरण से समझने की कृपा करें। मान लीजिए एक बड़ा उद्योग है। वह 80 रुपए के इनपुट की खरीद करता है। इस इनपुट पर वह 18 प्रतिशत से 14.40 रुपए का जीएसटी अदा करता है और कुल इनपुट की खरीद पर 94.4 रुपए अदा करता है। इसमें वह कुछ वैल्यू ऐड करता है, जैसे कागज पर उसने छपाई की,  इस छपे हुए कागज को वह 100 रुपए में बेचता है और इस पर पुनः 18 प्रतिशत से जीएसटी जोड़ करके कुल 118 रुपए में बेचता है। खरीददार द्वारा 118 रुपए में छपा हुआ कागज खरीदा जाता है, लेकिन वह खरीददार बड़े उद्योग द्वारा इस बिक्री पर दिए गए 18 रुपए का जीएसटी का सेट ऑफ का रिफंड प्राप्त कर लेता है।

इस प्रकार खरीददार के लिए उस छपे हुए कागज की कीमत केवल 100 रुपए पड़ती है। अब इसी प्रक्रिया को छोटे उद्योग के लिए समझें। वही 80 रुपए का कागज उसी 18 रुपए का जीएसटी लगाकर छोटा उद्यमी 94.4 रुपए में खरीदता है, जैसे बड़ा उद्यमी खरीदता है। इसमें वह 20 रुपए की वैल्यू एड करता है, जैसे बड़ा उद्यमी करता है। इस छपे हुए कागज की कीमत 114.40 रुपए पड़ती है। इस पर वह कंपोजीशन स्कीम के अंतर्गत एक प्रतिशत का जीएसटी अदा करके इससे 115.80 रुपए में बेचता है, लेकिन छोटे उद्यमी से खरीदे गए छपे हुए कागज पर खरीददार को 14.40 रुपए का जीएसटी का रिफंड नहीं मिलता है, जो कि उसे बड़े उद्यमी से खरीदने पर मिलता। इस प्रकार खरीददार को छोटे उद्यमी से छपे हुए कागज खरीदने की शुद्ध लागत 115.80 रुपए पड़ती है। बड़े उद्यमी से छपे हुए कागज खरीदने की शुद्ध लागत मात्र 100 रुपए पड़ती। इसलिए छोटे उद्योग कराह रहे हैं। वेतन, मांग एवं निवेश का सुचक्र टूट गया है। यही कारण है कि हमारी विकास दर बढ़ नहीं रही और जीएसटी का संग्रह भी कछुए की चाल से बढ़ रहा है। साथ-साथ छोटे उद्योगों पर रिटर्न भरने का टंटा आ पड़ा है। मेरी कई बड़े उद्यमियों से बात हुई, उनको जीएसटी में कोई टंटा नहीं महसूस हो रहा है, उनके पास आफिस स्टाफ एवं कम्प्यूटर आपरेटर हैं। पूर्व के सेंट्रल एक्साइज एवं सेल टैक्स से जीएसटी में परिवर्तित होने में उन्हें तनिक भी परेशानी नहीं हुई है, बल्कि उन्हें आराम ही हुआ है, लेकिन छोटे उद्यमी के लिए वही कागजी कार्य भारी पड़ गया है, इसलिए आम आदमी परेशान है। जीएसटी का छोटे उद्यमियों पर तीसरा प्रभाव अंतरराज्यीय व्यापार को सरल बनाने का है। प्रथम दृष्टया लगता है कि अंतरराज्यीय व्यापार सुगम होने से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। यह बात सही है लेकिन यह गति बड़े उद्यमियों के माध्यम से आएगी, क्योंकि बड़े उद्यम ही अंतरराज्यीय व्यापार अधिक करते हैं। जैसे मान लीजिए हरिद्वार में एक पर्दे बनाने की छोटे उद्यमी की फैक्टरी है।

पूर्व में सूरत से पर्दों को लाना और उन्हें हरिद्वार में बेचना कठिन था, क्योंकि उत्तराखंड की सरहद पर टैक्स अदा करना पड़ता था। हरिद्वार के निर्माता को सूरत के निर्माता से सहज ही प्राकृतिक संरक्षण मिलता था और वह अपने माल को बेच पाता था। अब सूरत के पर्दे बेरोकटोक हरिद्वार में बिक रहे हैं और हरिद्वार का छोटा पर्दा निर्माता दबाव में आ गया है, उसका धंधा बंद होने की कगार पर है। इन तीनों कारणों से जीएसटी ने छोटे उद्योगों को संकट में डाला है और इनके संकट से श्रम की मांग कम हुई है। रोजगार नहीं बन रहे हैं, इसलिए आम चुनाव में रोजगार मुख्य मुद्दा रहा है, लेकिन अब जीएसटी तो लागू हो ही गया है, अब इसकी भर्त्सना मात्र करने का कोई औचित्य नहीं है। उपाय यह है कि छोटे उद्योगों को कंपोजीशन स्कीम में इनपुट पर अदा किए गए जीएसटी का रिफंड लेने की सुविधा दे दी जाए।

उपरोक्त उदाहरण में छोटा उद्यमी जो बिना छपे कागज को 94.40 रुपए में खरीदता है, उसमें अदा किए गए 14.40 रुपए के टैक्स को उसे रिफंड दे दिया जाए। तब उसकी बिना छपे कागज की शुद्ध लागत 80 रुपए ही पड़ेगी। उसमें 20 रुपए वैल्यू ऐड करके और एक प्रतिशत जीएसटी जोड़कर वह 101 रुपए में उसे बेच सकेगा, तब खरीददार के लिए बड़े उद्यमी से 100 रुपए में छपे हुए कागज को खरीदने की तुलना में 101 रुपए में छोटे उद्यमी से खरीदना लगभग बराबर पड़ेगा और छोटे उद्योगों को फिर से सांस मिलेगी। सरकार को चाहिए कि छोटे उद्यमियों के प्रति नर्म रुख अपनाकर इस परिवर्तन पर विचार करे।


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