लोकप्रिय सरकार की व्यवस्था के लिए संवैधानिक संघर्ष किया

By: Dec 19th, 2018 12:04 am

हिमाचल के अन्य कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश तथा दिल्ली में हिमाचल प्रदेश में लोकप्रिय सरकार की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार से संवैधानिक संघर्ष किया। अंततः केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश को ‘पार्ट सी स्टेट’ (ग श्रेणी का राज्य) का दर्जा देकर इसके लिए विधानसभा का प्रावधान किया …

गतांक से आगे …

हिमाचल: पूर्ण राज्यत्व की ओर:

15 अप्रैल, 1948ई. को हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व  में आने के साथ ही राजाओं तथा प्रजामंडल के नेताओं को दिए गए आश्वासनों पर भारत सरकार ने नौ सदस्यों की एक सलाहकार समिति का गठन किया, जिसमें जनता के छह प्रतिनिधि थे डा. यशवंत सिंह परमार, स्वामी पूर्णानंद, पंडित पद्मदेव, मेहता अवतार चंद, लाला शिव चरण दास तथा श्रीमती लीला देवी। राजाओं के तीन सदस्य थे-जोगेंद्र सेन राजा मंडी, लक्ष्मण सिंह, राजा चंबा और दुर्गा सिंह राजा बघाट। इस समिति का गठन सितंबर, 1948 ई. को किया गया। इसका उद्देश्य चीफ कमिश्नर  को आम नीति, विकास योजना तथा संविधान सलाह देना था, परंतु प्रशासन की ओर  से अपनी अनदेखी देखकर वे 1951 ई. में इससे अलग हो गए। इससे पहले डा. यशवंत सिंह परमार संविधान सभा के सदस्य बने। उन्होंने तथा हिमाचल के अन्य कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश तथा दिल्ली में हिमाचल प्रदेश में लोकप्रिय सरकार की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार से संवैधानिक संघर्ष किया। अंततः केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश को ‘पार्ट सी स्टेट’ का दर्जा देकर इसके लिए विधानसभा का प्रावधान किया। सन् 1952 ई. के आरंभ में प्रथम चुनाव हुए और 36 सदस्यों की सभा में 28 सदस्य कांग्रेस के चुने गए और शेष स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव जीते। 24 मार्च 1952 ई. में डा. यशवंत सिंह परमार ने हिमाचल प्रदेश के  प्रथम मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण की। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 29 दिसंबर, 1953 ई. को एक अधिसूचना द्वारा राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक आयोग बनाया। इस आयोग के अध्यक्ष सईद फजल अली और सदस्य हृदय नाथ कुंजरू और कवलभ माहवा पानीकर थे। इस आयोग के सदस्यों ने 1954 ई. में प्रदेश का भी दौरा किया। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने आयोग के सदस्यों को पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र-कांगड़ा, कुल्लू, लाहुल-स्पीति, शिमला, कोहीस्तान ऊना तहसील, डलहौजी, तथा मोरनी की हिमाचल प्रदेश में मिलाने के बारे में ज्ञापन दिया। हिमाचल प्रदेश की विधानसभा ने भी प्रो. तपींद्र सिंह की अध्यक्षता में एक ‘नैगोशियेटिंग कमेटी’ बनाकर एक रिपोर्ट तैयार करके भारत सरकार को पेश की। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार ने 23 अप्रैल, 1954 ई. को आयोग के अध्यक्ष सईद फजल अली को विस्तार से एक पत्र भी लिखा। आशा के विपरीत इस आयोग ने हिमाचल प्रदेश को पंजाब में मिलाने का सुझाव दिया, जिससे प्रदेश का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। रिपोर्ट आयोग के अध्यक्ष फजल अली ने अपना एक अलग नोट लगाकर हिमाचल प्रदेश को एक पृथक राज्य के रूप में रखने का सुझाव दिया था। लोगों ने पंजाब के साथ विलय का कड़ा विरोध किया और सभी दलों के नेताओं ने इस पर घोर रोष दिखा।                              – क्रमशः


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