विदेशी दलाल की देशी पैरवी

By: Dec 8th, 2018 12:05 am

अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले के ‘विदेशी बिचौलिए’ के तीन वकील हैं, जो बुनियादी तौर पर कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। एल्जो जोसेफ युवक कांग्रेस के कानून प्रकोष्ठ के प्रमुख थे। विष्णु शंकर केरल कांग्रेस के एक बड़े नेता के पुत्र हैं और यह पार्टी केरल में कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ की एक घटक है। श्रीराम प्रकट एनएसयूआई के सदस्य रहे हैं। बेशक यह तथ्य सार्वजनिक होने के बाद उन्हें कांग्रेस से बर्खास्त करने का नाटक किया गया है। दूसरा पक्ष यह है कि सिर्फ जोसेफ  को ही पार्टी से निकाला गया है, सभी को नहीं। अहम सवाल यह है कि जिस ‘विदेशी दलाल’ का करीब 3600 करोड़ रुपए के घोटाले में दुबई से प्रत्यर्पण कर भारत लाया गया है, उसकी पैरवी करने की जिम्मेदारी इन तीन जूनियर कांग्रेसी वकीलों को कैसे मिली? मिशेल और उनके बीच करारनामा किसने कराया? ‘वह’ कौन है, जिसके आदेश पर इन तीनों ने घोटाले के ‘प्रमुख राजदार’ के वकील बनना तय किया? बेशक वकालत एक स्वतंत्र पेशा है और राजनेताओं की एक लंबी जमात विवादास्पद मामलों में पैरवी करती रही है। राम जेठमलानी एक प्रख्यात नाम है, जो भाजपा-एनडीए की वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं, लेकिन एक सांसद रहते हुए भी उन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की पैरवी की और उसे भारत लाने की कोशिशें भी कीं। जेठमलानी ने इससे पहले पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कथित हत्यारों की भी पैरवी की, लेकिन मिशेल और इन मामलों में बुनियादी अंतर है। अरुण जेतली और रविशंकर प्रसाद भी अलग-अलग विवादित मामलों में वकील बनते रहे हैं, लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उन्होंने वकालत का पेशा ही छोड़ दिया। कांग्रेस में कपिल सिब्बल सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या विवाद पर कथित बाबरी मस्जिद के पक्षकारों की पैरवी कर रहे थे और अभिषेक मनु सिंघवी एक विवादास्पद लॉटरी का केस लड़ रहे थे। कांग्रेस नेतृत्व के दखल से उन्हें ये केस छोड़ने पड़े, लेकिन उन्हें पार्टी से क्यों नहीं निकाला गया? मिशेल के पैरोकार होने के बाद तीन जूनियर वकीलों को ही कांग्रेस से निष्कासन क्यों झेलना पड़ा है? क्या हितों के टकराव के बावजूद ऐसा किया गया है? अब जो ‘कांग्रेसी’ वकील अगस्ता घोटाले के ‘विदेशी दलाल’ की पैरवी कर रहे हैं, वे सिब्बल और सलमान खुर्शीद सरीखे वरिष्ठ कांग्रेसी वकीलों के ‘सहायक’ भी रहे हैं। दरअसल चिंता का आधार यह है कि यह घोटाला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और रक्षा सौदे का दलाल भी विदेशी है। यह मामला भी अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। चूंकि अभी सीबीआई ‘घोटाले के राजदार’ से सवाल-जवाब भी करेगी और तीनों वकीलों को उस दौरान मौजूद रहने की इजाजत भी दी गई है। वकील दिन में दो बार तीन-तीन घंटे के लिए मिशेल से मुलाकात भी कर सकते हैं, लिहाजा जांच एजेंसी और अभियुक्त के संवाद की गोपनीयता भंग हो सकती है। नतीजतन इतने संवेदनशील मामले की जांच भी प्रभावित हो सकती है। यह राष्ट्रहित में नहीं होगा। बेशक इस व्यवस्था में कई छिद्र और दोष हैं। सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि क्या वकील कांग्रेस नेतृत्व तक सूचनाएं ‘लीक’ कर सकते हैं कि मिशेल ने सीबीआई की पूछताछ के दौरान क्या-क्या खुलासे किए हैं? यह भी राष्ट्रहित में नहीं होगा। इस केस के संदर्भ में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने 25 मार्च, 2013 को लोकसभा में बयान दिया था कि अगस्ता हेलीकॉप्टर सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है और घूस भी दी-ली गई है। चूंकि सरकार कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए की थी, तो जाहिर है कि घूस किसे दी गई होगी! मिशेल से उसी बंदरबांट के खुलासे कराए जाने हैं कि घूस किन-किन हाथों में गई? इस रक्षा सौदे में भारत सरकार को नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि कुल राशि का 30 फीसदी हिस्सा अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी को भुगतान किया जा चुका है। उसमें से कितनी राशि वापस आई है, यह भी एक सवाल है। हालांकि अगस्ता के तीन हेलीकॉप्टर भारत सरकार के कब्जे में हैं। दरअसल यह जानना भी जरूरी है कि सत्ता के गलियारे में कौन-कौन ‘दलाली’ खाता है? उसमें नेताओं संग नौकरशाह, सेना विशेषज्ञ, सेना प्रमुख आदि शामिल हो सकते हैं, लिहाजा मिशेल एक बेहद महत्त्वपूर्ण कड़ी है। उसके खुलासों को गोपनीय रखना भी राष्ट्रहित में ही होगा।

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