विष्णु पुराण

By: Dec 15th, 2018 12:05 am

सर्व शक्तिमय भगवान विष्णु ही ब्रह्म के परम स्वरूप एवं मूर्त्त रूप हैं, योगारंभ के पूर्व योगीजन उन्हीं का चिंतन किया करते हैं। हे मुने! इस विष्णु भगवान में मन को भली प्रकार तन्मय करने वालों को आलंबक युक्त सबीज महायोग की सिद्धि होती है…

श्री योगीजन उक्त अन्य जनों का छोड़कर इस चतुर्थ ज्ञान में ही लीन हो जाते हैं, वे इस संसार रूपी खेत में बीजारोपण रूप कर्म क ेलिए निर्जीव होते हैं। इस प्रकार का अमल, नित्य, व्यापक, अक्षय और सबहैय गुणों से परे वह विष्णु संज्ञक परमपद है।

पुण्य-पाप के निर्मूल और क्लेश की निवृत्ति से अत्यंत निर्मूल हुआ योगी ही उस पर ब्रह्म के आश्रय में जाकर पुनरावर्त्तन चक्र में नहीं पड़ता।

द्वे रूपे ब्रह्मणस्थ मूर्त चामूर्तेमेच च।

क्षराक्षरस्वरूपे ते सर्वभूतेष्वस्थिते।

अक्षरं तत्पर ब्रह्म क्षर सर्वमिदं जगत्।

एवदेशस्थितस्याग्नेर्ज्योत्स्ना विस्तारिणी यथा।

तत्राप्यासन्नदूरत्वाद्बहुत्वातयमः।

ज्योत्स्नोऽस्ति तच्छक्तेद्वंमैत्रेय विद्यते।

ब्रह्माविष्णुशिवा ब्रह्मन्प्रधान ब्रह्मशक्यः।

ततश्च देवमैत्रेय न्यूना दक्षादयंस्ततः।

ततो मनुष्याः पशवो मृगपक्षिसरीसृपा।

न्यूनान्यूनतराश्चैव वृक्षागुल्मादयास्तथा।

तदंतदक्षरं नित्य जगन्मुनिवराखिलम्।

आविर्भावतिरोभावजन्मनाविकल्पपवत।

इस ब्रह्मा के दो रूप हैं, मूर्त्त और अमूर्त्त, वे ही क्षर तथा अक्षररूप से भी प्राणियों में स्थित रहते हैं। जैसे एक स्थान पर प्रज्वलित हुए अग्नि का प्रकाश सर्वत्र रहता है, वैसे यह संपूर्ण विश्व एक परब्रह्म की ही शक्ति है। हे मैत्रेयजी! जैसे अग्नि के समीस्य और भेद दूरस्थ से प्रकाश में अधिकता और न्यूनता हो जाती है। वैसे ही ब्रह्म की शक्ति में समझो। हे ब्रह्मण! ब्रह्म, विष्णु, शिव यह तीनों ब्रह्म को प्रधान शक्ति, है, उनसे न्यू देवता और उनसे भी न्यून अक्ष आदि प्रजा पति हैं। उनके भी न्यू क्रमशः मनुष्य पशु-पक्षी भृगु, एवं मरीमृपाद तथा उनसे भी न्यून, गुल्म, लता आदि है। इसलिए हे मुनि श्रेष्ठ! अविर्भाव, तिरोभव, जन्म नाश आदि विकल्प वाला यह विश्व यथार्थ में तो नित्य और अक्षर ही है।

सर्वशक्तिमयो विष्णुस्वरूपं ब्रह्मयांः परम।

मूर्त यद्योनिभिः पूर्व योगारंभेषु चिंत्यते।

सालंबनो महायोगः सबीजी यत्र संस्थितः।

मनस्यव्याहते सम्यग्ञ्जतां जायते मुने।

स परः परक्तीनां ब्रह्मणः समनन्तणम्।

मूर्त ब्रह्म महाभाग शर्व ब्रह्ममयो हरिः।

तत्र सर्वमिदं प्रोतमोतं चैंवाखिल  जगत।

ततो जगज्जगतत्तमिस्मम्न जगच्चखिलं मनुे।

क्षराक्षरमयो विष्णुर्विभर्त्यखिमीश्बरः।

पुरुषाकृतमय भूषणास्त्रस्स्वरूपवत।

सर्व शक्तिमय भगवान विष्णु ही ब्रह्म के परम स्वरूप एवं मूर्त्त रूप हैं, योगारंभ के पूर्व योगीजन उन्हीं का चिंतन किया करते हैं। हे मुने! इस विष्णु भगवान में मन को भले प्रकार तन्मय करने वालों को आलंबक युक्त सबीज महायोग की सिद्धि होती है।  वे सर्व ब्रह्ममय विष्णु हो सब पर शक्तियों में प्रधान तथा ब्रह्म के समीपतम मूर्त्त ब्रह्म स्वरूप हैं। हे मुने! यह संपूर्ण विश्व उन्हीं में स्थित है तथा वे स्वयं ही संपूर्ण विश्व हैं। क्षर अक्षर विष्णु ही उस प्रकृति पुरुषात्मक विश्व को अपने आभूषण तथा आयुध के रूप में धारण करते हैं।


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