सोई हुई हैं जिला खेल परिषदें

By: Dec 7th, 2018 12:07 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

अब वर्षों से सोई पड़ी जिला खेल परिषदों को जाग कर सभी खेल संघों के साथ साल में आवश्यकतानुसार बैठक कर प्रदेश में किशोरों व युवाओं को फिटनेस व मनोरंजन के साथ जोड़कर भविष्य के अच्छे नागरिक बनाने में सहायता करनी चाहिए…

भारत में खेलें शिक्षा की तरह राज्य सूची का विषय है, किसी भी राज्य में खेलों के प्रचार व प्रसार के लिए राज्य खेल परिषद का गठन किया होता है। इस परिषद में सभी राज्य खेल संघों के अध्यक्ष व सचिव सदस्य होते हैं। कुछ सदस्यों को मनोनीत राज्य सरकार करती है। प्रदेश का मुख्यमंत्री राज्य खेल परिषद का अध्यक्ष तथा युवा सेवाएं एवं खेल विभाग का मंत्री उपाध्यक्ष व निदेशक सचिव होता है। राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग का निदेशालय  ही इस राज्य खेल परिषद का कार्यालय होता है। राज्य स्कूली क्रीड़ा परिषद के साथ-साथ राज्य में चल रहे विश्वविद्यालयों की क्रीड़ा परिषद के अध्यक्ष व सचिव भी राज्य क्रीड़ा परिषद के सदस्य होते हैं। राज्य में खेल गतिविधियों के लिए राज्य खेल परिषद ही सर्वोच्च संस्था है। इस सबके साथ जिला स्तर पर भी हर जिला में जिला खेल परिषद का गठन हुआ है। जिला के सभी खेल संघों के सचिव व अध्यक्ष इसके सदस्य होते हैं। जिलों का उपायुक्त इस परिषद का अध्यक्ष तथा जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी इसका सचिव होता है। राज्य स्तर पर तो दो एक वर्षों में खेल परिषद की बैठक हो जाती है, मगर जिला स्तर पर एक-दो जिलों को छोड़कर शायद ही किसी जिला में खेल परिषद की बैठक पिछले कई वर्षों से आयोजित हुई हो। प्रदेश में मंडी जिला अपनी खेल परिषद की बैठक लगभग हर वर्ष करवाता है।

इस परिषद के पास मंडी पड्डल स्टेडियम की दुकानों से काफी धनराशि किराए के रूप में मिलती है। शिवरात्रि को जब पड्डल मैदान को प्लाटों में बेचा जाता है, वह धन भी खेल परिषद के खाते में ही जाता है। जब मंडी के उपायुक्त संदीप कदम थे तो उन्होंने खेल परिषद के माध्यम से जोगिंद्रनगर व सुंदरनगर प्रशिक्षण केंद्रों को धन देकर काफी खेल सुविधा जुटाई थी। यही नहीं, आधारभूत ढांचे के साथ-साथ उभरते हुए खिलाडि़यों को वजीफे का भी प्रबंध किया हुआ था। आज राज्य में कई इंडोर स्टेडियम हैं। ऊना तथा मंडी में तरनताल हैं। धर्मशाला व हमीरपुर में सिथेंटिक ट्रैक हैं। क्या इन जिलों की खेल परिषदें अपने यहां खेल सुविधा लेने वालों से थोड़ी बहुत राशि प्रवेश शुल्क के रूप में लेकर इन विश्व स्तरीय खेल सुविधाओं का सही उपयोग करवाएं। जिला खेल परिषद का अध्यक्ष उस जिला का उपायुक्त थोड़ा समय निकाल कर वर्ष में कम से कम दो बार जिला खेल परिषद की बैठक बुलाए और उस जिला की खेल सुविधाओं का उपयोग उस जिला के खिलाडि़यों के लिए उचित तरीके से करे, ताकि  प्रदेश में खेलों को सही दिशा मिल सके। जिला का हर खेल संघ जब परिषद का सदस्य है तो फिर हर खेल के उत्थान के लिए खेल परिषद भी उत्तरदायी हो जाती है। कई जिलों के पास साहसिक खेलों के लिए बहुत ही उम्दा प्ले फील्ड है।

गोविंदसागर व पौंग डैम में पानी की खेलों के लिए जिला बिलासपुर व कांगड़ा में काफी संभावनाएं हैं। कांगड़ा का जिला पैराग्लाइडिंग का स्वर्ण है, इस खेल के लिए वहां पर खेल परिषद काफी कुछ कर सकती है। जिला कुल्लू, शिमला, किन्नौर, मंडी तथा चंबा में बर्फ पड़ती है, यहां पर कई जगह अच्छी ढलानें हैं, वहां पर बर्फ की खेलों के लिए काफी काम किया जा सकता है। पहाड़ पर मोटर-कार दौड़ के साथ लंबी दूरी की मैराथन दौड़ों के लिए भी कई जिलों में बहुत अच्छे ट्रैक हैं, जहां प्रशिक्षण व प्रतियोगिता सुविधा जुटाई जा सकती है। खेल संघों को चाहिए कि अपनी-अपनी प्राथमिकताओं पर अपने संघ कार्यसमिति में चर्चा कर फिर जिला खेल परिषद के अध्यक्ष उस जिला के उपायुक्त तथा सचिव जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी के पास अपनी-अपनी योजनाओं की चर्चा करें तथा जो भी सहायता हो सकती है, उसे सभी जिला के उपायुक्त वहां मौजूद सुविधाओं के आधार पर उन्हें दिलाएं। कई जिलों में कई स्वयंसेवी होकर प्रशिक्षण कार्य कर रहे प्रशिक्षकों को चिन्हित कर उन्हें जहां तक संभव हो सुविधा प्रदान करवाएं।

हिमाचल के हजारों युवा सेना व सुरक्षा बलों की भर्ती के लिए पूरा वर्ष सड़कों व मैदानों में सवेरे-शाम दौड़ लगाते देखे जा सकते हैं। निजी अकादमियों में गरीब लोगों को काफी धन देकर घर से दूर बाहर किराए पर रहकर भी भर्ती होने के लिए ट्रेनिंग लेनी पड़ रही है। अच्छा होता मध्य प्रदेश की तरह हर जिला स्तर पर खेल परिषद की ओर से इन युवाओं के लिए प्रशिक्षण सुविधा दी जाती, ताकि वे अपने जिला में घर के नजदीक ही ट्रेनिंग ले पाते। पिछले कुछ वर्षों से राज्य में नशे का चलन पंजाब की तरह यहां भी बहुत अधिक हो गया है। इसलिए भी अधिक से अधिक किशारों व युवाओं का खेल मैदान की ओर रुख कराना जरूरी हो जाता है। अब वर्षों से सोई पड़ी जिला खेल परिषदों को जाग कर सभी खेल संघों के साथ साल में आवश्यकतानुसार बैठक कर प्रदेश में किशोरों व युवाओं को फिटनेस व मनोरंजन के साथ जोड़कर भविष्य के अच्छे नागरिक बनाने में सहायता करनी चाहिए। आशा करते हैं जिला खेल परिषदों के अध्यक्ष यानी जिलों के उपायुक्त कुछ समय निकालकर इस नजर से भी राज्य में खेलों को देखने का प्रयास करेंगे।

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