हिमाचल में टैक्सी सेवा महंगी

By: Dec 7th, 2018 12:05 am

टैक्सी किराए में बढ़ोतरी का पैमाना अपने साथ तकलीफदेह घूंट भरने का आदेश भी दे रहा है। कहां तो हिमाचल खुद को पर्यटन राज्य के नए दौर में पहुंचने की इच्छाशक्ति दिखा रहा है और कहां टैक्सी किराए में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज हो रही है। भले ही इससे टैक्सी संचालन में स्वरोजगार को बल मिलेगा, लेकिन इसका उपभोक्ताओं पर प्रतिकूल असर ही पड़ेगा। अब तक का अनुभव बताता है कि हिमाचल में टैक्सी संचालन, पर्यटकों तथा आम यात्रियों के सामने असहज व निरंकुश स्वीकारोक्ति है। आश्चर्य यह कि ऐसे फैसले जिन जिरहों पर हो रहे हैं, वहां केवल एक वर्ग ही लाभान्वित होने लगा है तथा जनता खुद को ठगा महसूस करती है। बिना परिवहन नीति को सुदृढ़ व कारगर बनाए, हिमाचल सरकार ने बस किराए के बाद टैक्सी को भी महंगा किया है। हो सकता है सरकार के तर्क टैक्सी मालिकों के साथ समझौतावादी रहे हों या इनकी संवेदना आम जनता से कहीं अधिक अहम मानी गई हो, फिर भी कुछ सवाल उन असुविधाओं तथा तहजीब पर उठेंगे, जहां एक स्थापित माफिया इस व्यवसाय पर विशेष दखल रखता है। आश्चर्य है कि सरकारें मीटर टैक्सी की बात करती रही हैं, तो यह प्रश्न परिवहन मंत्री से क्यों न पूछा जाए कि वह इस दिशा में कब नीति लाएंगे। शिमला के साथ-साथ मनाली व धर्मशाला में भी निजी कंपनियां टैक्सी सेवाएं देने को इच्छुक हैं, तो सरकार जनता की सहूलियत के बजाय एकतरफा लूट को क्यों प्रश्रय देना पसंद कर रही है। हिमाचल के न केवल प्रमुख शहरों, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी टैक्सी जैसी परिवहन सेवाओं की जरूरत बढ़ रही है, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कि आम उपभोक्ता खुद को ऐसे वाहनों की लूट से बचा पाए। इतना ही नहीं, टैक्सी संचालन के मौजूदा तौर-तरीके एक तरह से सड़कों पर गुंडागर्दी का सर्टिफिकेट भी बन चुके हैं। आपराधिक तत्त्वों की शिनाख्त, पर्यटकों के साथ बदसलूकी या बलात्कार तक की घटनाओं में हिमाचल की टैक्सी सेवाएं निरंतर बदनाम हुई हैं, फिर भी इस दिशा में सख्त निर्देश देने के बजाय इसी पक्ष को व्यावसायिक सहूलियतों की बरसात हो रही है। नागरिक समुदाय से अगर पूछा जाए कि उन्हें किस तरह की टैक्सी सेवाएं चाहिएं, तो मालूम हो जाएगा कि वर्तमान ढर्रा केवल दादागिरी का साम्राज्य बन चुका है। प्रदेश भर के चौक-चौराहों तथा अहम स्थानों पर टैक्सियों के कब्जे अपने आप में निरंकुशता तथा सीनाजोरी का दम रखते हैं। बेशक आज के संदर्भों में इन्हें सुव्यवस्थित टैक्सी स्टैंड चाहिएं और यह आवश्यकता भी है। ऐसे में किराया वृद्धि में विशेष उपकर समाहित किया जाता, तो उससे व्यवस्थित टैक्सी सेवाओं की अधोसंरचना का निर्माण हो सकता है। परिवहन विभाग ने अगर टैक्सी किराए में वृद्धि का भारी उछाल देना ही था, तो इसे पर्यटन परिवहन की अपेक्षाओं और घरेलू यात्रियों की मांग व सुविधाआें से भी जोड़ा जा सकता था। क्या यह जरूरी नहीं कि हिमाचल में टैक्सी बुकिंग किसी सरकारी एजेंसी के मार्फत हो तथा इसकी निगरानी पूरी तरह सुरक्षा की गारंटी बने। पूरे विश्व में टैक्सी सेवाओं को जो श्रेष्ठता प्राप्त है, क्या उस प्रकार की छवि बनाने में किराया वृद्धि सहयोग करेगी। क्या टैक्सी आपरेशन की मॉनिटरिंग का कोई सिस्टम बन चुका है। क्या टैक्सी संचालन की संभावनाओं में सर्वेक्षण हो चुके हैं या यात्री मांग के अनुरूप टैक्सी परमिट देने की पद्धति अमल में लाई जा रही है। प्रदेश में पर्यटन के नजरिए से टैक्सी का संचालन कैसे बेहतर होगा या शहरी परिवहन में इन सेवाआें को कैसे सक्षम बनाया जाए, इस पर सिफारिशें मांग कर क्या सुधार हो रहा है। कुछ समय पहले मुद्रिका परमिट के जरिए शहरी परिवहन में हलके वाहनों को जोड़ा गया था, लेकिन आगे चलकर ऐसी सेवाओं का विस्तार नहीं हुआ। इसी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों की एक खेप उतारकर भी सरकार ने आगे मार्ग प्रशस्त नहीं किया, जबकि हिमाचल में इलेक्ट्रिक टैक्सियों के संचालन को प्रोत्साहन की सबसे अधिक जरूरत है। प्रदेश में स्थानीय व शहरी परिवहन की जरूरतों के मद्देनजर इलेक्ट्रिक टैक्सियों के परमिट तथा सबसिडी का प्रावधान किया जाए, तो किराया दरें कहीं अधिक व्यावहारिक दिखाई देंगी। कुल मिलाकर किसी भी तरह की किराया वृद्धि से पहले सरकार को टैक्सी सेवाओं में पर्यटक व यात्री सुविधाओं तथा सुरक्षित संचालन पर तवज्जो देते हुए परिवहन नीति के तहत संबोधित करना चाहिए था। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किराया वृद्धि पर्यटक से हिमाचली यात्री तक को पीड़ा कहीं अधिक दे रही है।

जीवनसंगी की तलाश है? तो आज ही भारत  मैट्रिमोनी पर रजिस्टर करें- निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App