आत्म पुराण

By: Jan 12th, 2019 12:05 am

कर्म कांड वालों के गुरु तो उनको इस तरह उपदेश देते हैं कि पिता ने और गुरु ने जिस-जिस मार्ग को ग्रहण किया है पुत्र और शिष्य को भी नेत्र बंद कर उसी पर चलना चाहिए। हे नचिकेता! केवल प्रत्यक्ष प्रमाण को ही मानने वाले स्वार्गादि लोकों की इच्छा नहीं करते। वे इसी लोक में स्त्री-पुत्र-धन आदि की इच्छा करते हैं और इनको प्राप्त करने में चोरी, निंदा, हिंसा आदि पाप कर्मों में भी संकोच नहीं करते। ऐसे दुष्कर्म करने वालों को रौरव नरक में जाना पड़ता है और फिर कीट-पतंग के क्षुद्र शरीर को प्राप्त होते हैं। इन दोनों प्रकार के सकाम पुरुषों को हृदय में स्थित स्वयं ज्योति आत्मा का अनुभव नहीं होता। इसलिए आनंद स्वरूप आत्मा का ज्ञान भी उनको कभी नहीं होता। हे नचिकेता! अब जो पुरुष आत्मा पर अविश्वास करके केवल प्रत्यक्ष प्रमाण को मानने की बात कहते हैं, उनके कुतर्कों पर भी विचार करो। वे प्रश्न करते हैं कि समस्त लोगों के शरीरों में आत्मा एक है कि अनेक हैं।  अगर प्रथम बात को माना जाए, तो यह संभव नहीं, क्योंकि फिर सभी लोग बातचीत में ‘तू’ ‘मैं’ वे इस तरह के शब्दों का प्रयोग क्यों होता है? इससे तो यही विदित होता है कि सब लोगों में एक आत्मा नहीं है। फिर यदि सब मनुष्यों की देह में अलग-अलग आत्मा मानी जाए, तो आत्मज्ञान वादियों का यह कथन असत्य हो जाएगा कि आत्मा अद्वितीय है। फिर यदि यह माना जाए कि आत्मा एक होने पर भी शरीर की उपाधि से अलग-अलग जान पड़ती हैं, तो यह संशय उत्पन्न होगा कि एक ही आत्मा को एक ही समय में अलग-अलग शरीर किस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं? फिर यदि सब शरीरों में एक ही आत्मा होती, तो एक पुरुष को जो सुख अथवा कष्ट होता है, उसको दूसरा पुरुष अपने शरीर में अनुभव क्यों नहीं करता? हे नचिकेता! इस प्रकार समस्त बहिर्मुख लोग इसी तरह के अनेक कुतर्क करके आत्मा के अस्तित्व को ही मिटा देना चाहते हैं। पर ये सब तर्कश्रुति के विरुद्ध है अतएव माननीय नहीं हो सकते। इस प्रकार के कुतर्कों से आत्मा में विश्वास रखने वाले पुरुषों में भी श्रद्धा घटने लगती है, क्योंकि सब लोगों में एक-सा धैर्य और दृढ़ता नहीं पाई जाती। हे नचिकेता! इस दृष्टि से तुम्हारा धैर्य सराहनीय है। मैंने तुमको सांसारिक वैभव का कितना अधिक प्रलोभन दिया, पर तुम्हारी आत्मज्ञान संबंधी दृढ़ता बराबर बनी रही। तुम्हारी त्याग बुद्धि के समान उदाहरण अन्य कहीं मिलना संभव नहीं है। हे नचिकेता स्त्री, पुत्र, संपत्ति सबका लालच छोड़ देने से जिस आनंद स्वरूप आत्मा से तुमको प्रेम हुआ है, वह आत्मा बुद्धि आदि सर्व संघात का साक्षी रूप है। ऐसे आनंद स्वरूप आत्मा का साक्षात्कार करके जैसे तू हर्ष-शोक से रहित हुआ है, वैसे ही अन्य अधिकारी पुरुष गुरु और शास्त्र के उपदेश से आत्मा का साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं और कृत-कृत्य हो सकते हैं। नचिकेता-हे यमराज! जो वस्तु धर्म-अधर्म से रहित है, कार्य-कारण भाव से रहित है, भूत-भविष्यत-वर्तमान से रहित है, सुख-दुःख से रहित है ऐसी वस्तु को आप ही भली प्रकार जानते हैं। अतएव आप उसी वस्तु का उपदेश मुझ नचिकेता को शिष्य मानकर करिए। यमराज-हे नचिकेता! जिस पर ब्रह्म का अधिकारी पुरुष ब्रह्मचर्यादि साधनों से साक्षात्कार करते हैं,जिस ब्रह्म को ऋग् आदि चारों वेद कथन करते हैं, जिस ब्रह्म को अनेक प्रकार के तप करके पाया जाता है, उस परब्रह्म को तुम प्रणव के रूप में जानो।


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