एमएसपी को सीमित करना होगा

By: Jan 29th, 2019 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

किसान की आय बढ़ाने के लिए फसलों के उत्पादन और मूल्य को बढ़ाने की नीति घातक है, चूंकि देश के पास इतना पानी ही नहीं है। अतः हमें उत्पादन घटाकर किसान की स्थिति में सुधार लाना होगा। इसके लिए हर किसान, चाहे वह युवा हो या वृद्ध, उसे एक निश्चित रकम पेंशन के रूप में हर वर्ष दे दी जानी चाहिए और इसके बाद उसे बाजार भाव पर फसलों का उत्पादन करने के लिए छोड़ देना चाहिए…

देश के किसानों की हालत सुधरती नहीं दिख रही है। सरकार का प्रयास है कि तमाम फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों को बढ़ाकर किसानों की आय में वृद्धि की जाए, लेकिन किसान की हालत सुधर नहीं रही है। समर्थन मूल्य बढ़ाए जाने के बावजूद कुछ फसलों के बाजार में दाम न्यून बने हुए हैं। दूसरी फसलों के समर्थन मूल्य बढ़ाकर मिल रहे हैं, परंतु बहुत विलंब से। इन फसलों का उत्पादन बढ़ने से भंडारण की समस्या भी उत्पन्न हो रही है। इसका एक उदाहरण गन्ने का है। गन्ने का उत्पादन बढ़ने से देश में चीनी का उत्पादन बढ़ रहा है, जिसे चीनी कंपनियां बेच नहीं पा रही हैं। वे किसानों को गन्ने का पेमेंट नहीं कर पा रही हैं। आइए इस समस्या के कथित हलों पर नजर डालें। एक प्रस्तावित हल है कि चीनी के अधिक उत्पादन का निर्यात कर दिया जाए। यहां समस्या यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी का दाम भारत की तुलना में कम है, चूंकि भारत में गन्ने का दाम लगभग 300 रुपए प्रति क्विंटल यानी 43 डालर प्रति टन है, जबकि अमरीका में गन्ने का दाम 31 डालर प्रति टन है। तदानुसार विश्व बाजार में चीनी के दाम भी कम हैं। ऐसे में सरकार को गन्ने के बढे़ हुए उत्पादन से बनी चीनी का निर्यात करने को दोहरी सबसिडी देनी पड़ेगी। पहले सस्ती बिजली एवं सस्ते फर्टिलाइजर देकर हम गन्ने का उत्पादन बढ़ाएंगे। इसके बाद इस बढ़े हुए चीनी के उत्पादन का निर्यात करने के लिए दोबारा उस पर निर्यात सबसिडी देंगे।

यह इस प्रकार हुआ कि हम बाजार से एक कट्टा आलू घर लाए और उसके बाद कुली को पैसा दिया कि इसे कूड़ेदान में डाल आओ। इस प्रकार गन्ने के उत्पादन की वृद्धि का कोई औचित्य नहीं है। समस्या का दूसरा हल यह सुझाया जा रहा है कि ब्राजील की तरह गन्ने का उपयोग एथनॉल या डीजल बनाने को कर लिया जाए। ब्राजील ने इस पालिसी को बखूबी अपनाया है। वहां जब विश्व बाजार में चीनी के दाम अधिक होते हैं, तो गन्ने से चीनी का उत्पादन किया जाता है और उस चीनी को ऊंचे दामों पर निर्यात कर दिया जाता है। इसके विपरीत जब विश्व बजार में चीनी के दाम कम होते हैं, तो उसी गन्ने से एथनॉल बनाया जाता है। एथनॉल का उपयोग डीजल की तरह कार चलाने के लिए किया जा सकता है। एथनॉल का उत्पादन करके ब्राजील द्वारा ईंधन तेल का आयात कम कर दिया जाता है। ब्राजील अपनी ईंधन की जरूरतों को एथनॉल से पूरा कर लेता है। इस प्रकार ब्राजील गन्ने के उत्पादन को लगातार बढ़ाता जा रहा है और जरूरत के अनुसार उससे चीनी अथवा एथनॉल बना रहा है। इस पालिसी को भारत में भी लागू करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन ब्राजील और भारत की परिस्थिति में मौलिक अंतर है। ब्राजील में प्रति वर्ग किमी भूमि पर औसतन 33 व्यक्ति रहते हैं, जबकि भारत में 416 व्यक्ति। ब्राजील में औसतन 1250 मिलीमीटर वर्षा एक साल में पड़ती है, जबकि हमारे यहां केवल 500 मिलीमीटर। इस प्रकार भारत में जनसंख्या का दबाव लगभग बारह गुना है, जबकि बरसात आधे से भी कम। ऐसी परिस्थिति में यहां गन्ने का उत्पादन लगातार बढ़ाना हमारे लिए घातक होगा। देश के भूमिगत जल का स्तर वर्तमान में ही लगातार गिरता जा रहा है, क्योंकि हम गन्ने जैसी फसलों का उत्पादन करने के लिए भूमिगत जल का अधिक दोहन कर रहे हैं। ऐसे में गन्ने का उत्पादन बढ़ाकर एथनॉल बनाने से भूमिगत जल का स्तर और तेजी से गिरेगा। हमारी दीर्घकालीन कृषि व्यवस्था चरमरा जाएगी, क्योंकि भूमिगत जल का भंडार हमें जो विरासत में प्राप्त हुआ है, वह समाप्त हो जाएगा। इसके बाद गेहूं और चावल का उत्पादन करना भी कठिन हो जाएगा। इसलिए हमें ब्राजील की गन्ने के उत्पादन को बढ़ाने की नीति नहीं अपनानी चाहिए। समस्या का तीसरा उपाय यह बताया जा रहा है कि फूड कारपोरेशन द्वारा चीनी के अधिक उत्पादन को बफर स्टॉक या भंडार के रूप में खरीदकर रख लिया जाए। वर्ष 2018 में फूड कारपोरेशन के पास दस मिलियन टन चीनी का स्टॉक पहले ही था। वर्ष 2017-18 में हमारा चीनी का उत्पादन 36 मिलियन टन का है, जबकि खपत लगभग 26 मिलियन टन की है। अतः दस मिलियन टन का भंडार और बढ़ जाएगा। यदि हर वर्ष गन्ने और चीनी का उत्पादन बढ़ाते रहे, तो हर वर्ष फूड कारपोरेशन को दस मिलियन टन चीनी खरीदकर भंडारण करना पड़ेगा। यह सिलसिला ज्यादा दिन जारी नहीं रह सकता है। हमारे लिए एकमात्र उपाय यह है कि हम गन्ने का उत्पादन कम करें। कमोबेश यही पालिसी दूसरी फसलों पर भी लागू होती है। गेहूं का उत्पादन बढ़ाकर हमें कुछ वर्ष पूर्व उसका भी निर्यात करने के लिए सोचना पड़ा था।

न्यूनतम समर्थन मूल्य का उद्देश्य देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। इसके लिए गेहूं और धान की फसलों पर मात्र न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना चाहिए, जिससे देश की जरूरत के लिए इन मूल फसलों का पर्याप्त उत्पादन हो। शेष फसलों, जैसे सरसों, गन्ना इत्यादि पर समर्थन मूल्य की व्यवस्था को हटा देना चाहिए। ऐसा करने से गन्ने का दाम जो वर्तमान में 300 रुपए प्रति क्विंटल है, वह घटकर लगभग 200 रुपए प्रति क्विंटल हो जाएगा, जोकि अंतरराष्ट्रीय दाम के बराबर होगा। तब किसानों द्वारा गन्ने का उत्पादन कम किया जाएगा, फैक्टरियों द्वारा चीनी का उत्पादन कम किया जाएगा और चीनी के अतिरिक्त उत्पादन के निस्तारण की समस्या अपने आप ही समाप्त हो जाएगी।

साथ-साथ पानी का जो अति दोहन हो रहा है, उससे भी हम छुटकारा पाएंगे। बिजली और फर्टिलाइजर पर सरकार जो सबसिडी दे रही है और पुनः निर्यात के लिए जो सबसिडी दे रही है, उससे भी देश की अर्थव्यवस्था को छुट्टी मिल जाएगी। किसान की आय बढ़ाने के लिए फसलों के उत्पादन और मूल्य को बढ़ाने की नीति घातक है, चूंकि देश के पास इतना पानी ही नहीं है। अतः हमें उत्पादन घटाकर किसान की स्थिति में सुधार लाना होगा। इसके लिए हर किसान, चाहे वह युवा हो या वृद्ध, उसे एक निश्चित रकम पेंशन के रूप में हर वर्ष दे दी जानी चाहिए और इसके बाद उसे बाजार भाव पर फसलों का उत्पादन करने के लिए छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से किसान खुश होगा, क्योंकि उसे एक निश्चित रकम नगद में मिल रही होगी और देश की कृषि व्यवस्था भी ठीक हो जाएगी। चूंकि अधिक उत्पादन के निस्तारण की समस्या से हमें छुट्टी मिल जाएगी। भूमिगत जल का अति दोहन बंद हो जाएगा और हमारा भविष्य खतरे में नहीं पड़ेगा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App