कलह के बीच आया नया साल

By: Jan 4th, 2019 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

सबसे पहले कांगे्रस ने यह महसूस किया कि चूंकि उसके लोकसभा में 543 सदस्यों में से केवल 44 सदस्य हैं, अतः वह पूरी ताकत के साथ प्रभावशाली तरीके से काम नहीं कर सकती है। इसलिए उसने अन्य दलों के साथ किसी भी शर्त पर समझौता कर लेने का निर्णय किया। उसने श्रेष्ठता की मनोग्रंथि को छोड़ दिया, हालांकि कुछ आलोचक अभी भी महसूस करते हैं कि वह अभी भी श्रेष्ठ है…

नया साल शुरू हो चुका है तथा इसके साथ ही क्षितिज में नई आशाएं व अपेक्षाएं अंगड़ाइयां लेने लगी हैं। पिछला साल कलहकारी वातावरण में गुजरा। सत्ताधारी पार्टी पर तीखे से तीखे हमले होते रहे तथा राज्य की ओर से शक्ति के जघन्य प्रयोग की परिपाटी जारी रही। इस प्रक्रिया में देश में न केवल विकास प्रभावित हुआ, बल्कि पूरे देश में अनिश्चितता या अविश्वास का माहौल भी पैदा हो गया। वर्ष 2018 में यह बात भी देखने को मिली कि कांग्रेस तथा उसके सहयोगियों की अनपेक्षित रूप से मंद गति से सत्ता में वापसी हो गई। कांग्रेस हालांकि कर्नाटक में बहुमत हासिल करने में सफल नहीं रही, किंतु उसने जीत को हासिल करने के लिए चतुर रणनीति के तहत एचडी देवेगौड़ा की उस पार्टी से समझौता कर लिया जो क्षेत्रीय शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।  सोनिया गांधी से देवेगौड़ा के लिए एक फोन काल ने इतिहास ही बदल दिया। वास्तव में कांग्रेस ने भाजपा की रणनीति का ही प्रयोग करते हुए उनकी पार्टी को मुख्यमंत्री पद देने की पेशकर की, हालांकि उसके पास उनसे ज्यादा विधायक थे। इस तरह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पुत्र कुमारस्वामी के नेतृत्व में सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया। किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि सत्ता के करीब पहुंची एक पार्टी इस तरह झुक जाएगी तथा अपने से कम विधायक संख्या वाले दल को मुख्यमंत्री का पद देकर सरकार का निर्माण कर लेगी। यह पार्टी पहले भी इस राज्य में शासन कर चुकी है। यह सोनिया गांधी की ओर से चतुराई से उठाया गया कदम था अन्यथा उनकी पार्टी करीब-करीब पूरे देश में ही सत्ता से बाहर हो गई होती। पार्टी की हो रही निरंतर हार से पार्टी का कैडर निरुत्साहित हो गया था तथा राहुल गांधी स्वयं भी कोई आशा की किरण नहीं जगा पा रहे थे। पार्टी का यह कदम पार्टी के लिए वास्तविक रूप में गेम चेंजर साबित हुआ। पार्टी ने तीन प्रमुख कारकों को महसूस किया तथा इस आधार पर कूटनीति बदली गई।

सबसे पहले कांगे्रस ने यह महसूस किया कि चूंकि उसके लोकसभा में 543 सदस्यों में से केवल 44 सदस्य हैं, अतः वह पूरी ताकत के साथ प्रभावशाली तरीके से काम नहीं कर सकती है। इसलिए उसने अन्य दलों के साथ किसी भी शर्त पर समझौता कर लेने का निर्णय किया। उसने श्रेष्ठता की मनोग्रंथि को छोड़ दिया, हालांकि कुछ आलोचक अभी भी महसूस करते हैं कि वह अभी भी श्रेष्ठ है। इसके कारण यह संभव हो पाया कि उसने अन्य दलों की ओर समानता के भाव से देखना शुरू किया तथा अपने आदर्शों की कीमत पर भी उनसे समझौता कर लेने के लिए स्वयं को तैयार किया। यह एहसास महागठबंधन को जन्म दे रहा है। दूसरी चीज जो कांग्रेस ने महसूस की, वह यह है कि उसे एहसास हो गया कि वह नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकती है क्योंकि उनकी छवि साफ है तथा वह भ्रष्टाचार के किसी केस में भी संलिप्त नहीं हैं। उनके खिलाफ कांग्रेस के पास ऐसा कुछ नहीं था जिसके जरिए उन्हें बदनाम किया जा सके। लोग उनसे उनकी ईमानदारी व राष्ट्रीय नजरिए के कारण प्रेम भाव रखते हैं। वह हिंदू मतों पर अपनी कमान रखते हैं क्योंकि वह कट्टर हिंदू हैं, हालांकि उन्होंने यह घोषणा भी कर रखी है कि वह अन्य समुदायों का भी सम्मान करेंगे। इसके कारण वह सबसे ज्यादा स्वीकार्य नेता के रूप में उभरे हैं। कांग्रेस ने उनकी स्वच्छ छवि को कलंकित करने के लिए राफेल विमान खरीद घोटाले का मसला उठाया है, हालांकि यह एक तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट को मोदी के खिलाफ इस सौदे में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है। इसके बावजूद कांग्रेस राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है तथा मोदी की स्वच्छ छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मोदी को क्लीन चिट देने के बावजूद इतनी ज्यादा झूठी धूल उड़ाई जा रही है कि इस धूल को साफ करना मुश्किल हो रहा है। सरकार का बचाव तथा मोदी का खंडन यूपीए के बार-बार झूठ बोलने के प्रयासों से मेल नहीं खाता है। सच क्या है, जनता को इसमें भेद करना मुश्किल हो गया है। तीसरी बात जो कांग्रेस ने महसूस की, वह यह है कि वह हिंदू मतों की मोदी की शक्ति को पहचान गई है तथा राम मंदिर भी इसी कड़ी को जोड़ता है। यह सब जानते हुए ही राहुल गांधी ने स्वयं को ब्राह्मण घोषित किया तथा अब वह मंदिर-मंदिर जाकर घूम रहे हैं। यह पूरा नाटक एक पाखंड लगता है किंतु इससे मतदाताओं की अवधारणा पर प्रभाव जरूर पड़ रहा है। मुसलमानों के वोट पहले ही कांग्रेस के पास हैं तथा इस बदलाव के कारण वह हिंदू वोट कब्जाने का भी भरपूर प्रयास कर रही है। हाल में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उनमें से तीन राज्यों नामतः राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर करते हुए जीत हासिल की और वहां अपनी सरकारें बना ली हैं। अब इन परिस्थितियों में वर्ष 2019 में जो लोकसभा चुनाव होने हैं, उनमें कड़ा मुकाबला होने की संभावना बन गई है तथा यह चुनाव निर्णायक साबित होंगे। नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी को अब तक अपराजेय समझा जा रहा था, लेकिन राहुल गांधी की चतुराई वाली रणनीति ने यह स्थिति अब बदल दी है।

राहुल गांधी, जिन्हें अभी तक गंभीरता के साथ नहीं लिया जाता था, वह अब पार्टी के सशक्त नेता के रूप में उभरे हैं। आने वाले साल में महागठबंधन एक अन्य उपलब्धि होगी, अगर वह चुनाव जीत जाता है तो। इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि भाजपा अभी भी मुकाबले में है तथा उसने अभी गेम को खोया नहीं है। भाजपा अगर अपने अभियान में रणनीतिक बदलाव करे तथा चुनाव प्रबंधन के नए नजरिए विकसित कर ले, तो वह सत्ता में बनी रह सकती है। स्वच्छ रिकार्ड होने के बावजूद एक सही छवि को प्रोजेक्ट करना क्यों मुश्किल हो रहा है तथा सरकार की उपलब्धियों का लाभ क्यों नहीं प्राप्त किया जा रहा? यह सही समय है जब भाजपा को अपने अभियान तथा एक्शन प्रोग्राम में आमूल-चूल बदलाव करना चाहिए। देश में व्यापक विकास हुआ है, उससे जनता को अवगत कराया जाना चाहिए। देश में स्थिरता है तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों व आर्थिक क्षेत्र में जो उपलब्धियां हासिल की जा रही हैं, उनसे भी जनता को अवगत कराया जाना चाहिए। विमुद्रीकरण तथा वस्तु एवं सेवा कर कानून के भूत जला दिए जाने चाहिए क्योंकि इनसे अंततः देश को लाभ ही होगा।

यह बात भी समझाई जानी चाहिए कि अर्थव्यवस्था का इस हद तक उदारीकरण साहस व त्याग के बिना संभव नहीं था। इसके अलावा भाजपा को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से अपने संबंधों को पुनः परिभाषित करना चाहिए तथा जरूरत से ज्यादा जोर अपनी हिंदूवादी सोच पर नहीं देना चाहिए। उसे काम अथवा रोजगार के नए अवसर पैदा करके अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी ग्राह्या दृष्टिकोण को आत्मसात करना चाहिए। नए साल में कांग्रेस जहां सत्ता हथियाने के भरपूर प्रयास करती रहेगी, वहीं यह देखने वाली बात होगी कि भाजपा किस तरह नई रणनीति व नया विजन लेकर आती है।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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