खेलो इंडिया एक अच्छी शुरुआत

By: Jan 11th, 2019 12:07 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

आज खेल देश में बहुत बड़ा व्यवसाय बनने जा रहा है। हर अभिभावक अपने बच्चों का भविष्य आज खेल के मैदान में भी देख सकता है। किसी भी पढ़ाई में स्कूली स्तर पर यह बहुत बड़ा वजीफा है। खेलो इंडिया में खिलाड़ी आगे निकलकर ओलंपिक पोडियम योजना में चयनित होकर प्रतिवर्ष चालीस लाख रुपए अपने प्रशिक्षण पर खर्च कर सकता है। हिमाचल में आज लगभग हर खेल के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रशिक्षण सुविधा है। खिलाड़ी खेलो इंडिया तक पहुंचकर वजीफा भी जीत रहे हैं…

खेलों से आज के आधुनिक युग में किसी भी देश की प्रौद्योगिकी, चिकित्सा व अन्य सब प्रकार की तरक्की का पता आसानी से चल जाता है। कौन देश कितना खुशहाल व सुविधा वाला जीवन जीता है, यह भी उस देश के खिलाडि़यों द्वारा ओलंपिक तथा अन्य खेलों में जीते गए पदकों से साफ पता चल जाता है। विश्व के सबसे विकसित देश अमरीका, रूस, ब्रिटेन के साथ-साथ अब तो चीन को भी ओलंपिक खेलों की पदक तालिका में ऊपर देखा जा सकता है। पिछले तीन दशकों से चीन ने जहां स्वयं को विकासशील देशों की सूची से आज विकसित देशों की कतार में खड़ा कर लिया है, तो इस सबके पीछे उसकी शिक्षा नीति में शारीरिक संस्कृति को प्रमुखता देना सबसे बड़ा कारण रहा है।

खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने के लिए लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को शारीरिक जागरूकता से जोड़कर जहां उसने भविष्य के फिट नागरिक तैयार किए, वहीं पर उसने प्रतिवर्ष हजारों प्रतिभावान खिलाडि़यों को खोजकर उनके प्रशिक्षण का प्रबंध किया है। इस सबसे जहां चीन के नागरिकों ने अपने देश की अभूतपूर्व तरक्की में योगदान दिया, वहीं पर वह खेल की दुनिया में एक ताकत बनकर सामने आए हैं। 2008 ओलंपिक में तो वह पदक तालिका के शीर्ष तक पहुंच गया। इसलिए आज वह खेलों के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र में भी एक बहुत बड़ी ताकत बनकर उभरा है। भारतवर्ष में दशक पूर्व कैच कैम यंग नामक योजना के अंतर्गत पूरे देश में हर जिला से लेकर राष्ट्र स्तर तक अंडर-16 वर्ष आयु वर्ग के लिए ग्रामीण खेलों का आयोजन शुरू हुआ, बाद में इसे पायका का नाम दिया गया और राजीव गांधी खेल अभियान तक पहुंच कर यह कार्यक्रम बंद कर दिया गया। इस कार्यक्रम में अंडर-16 वर्ष आयु वर्ग के लिए विभिन्न खेलों में प्रतियोगिता करवाकर जरूर प्रतिभाओं की खोज तो की जाती थी, मगर उनके लिए भविष्य में प्रशिक्षण जारी रखने के लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं था।

खिलाड़ी बनने के लिए पहला चरण प्रतिभा खोज तो कैसे न कैसे आधा-अधूरा कर लिया जाता था, मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने के लिए जो अगले आठ-दस वर्षों का गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम होता था, उसके लिए कोई भी प्रबंध नहीं था। खेलो इंडिया में इस समय दो तरह के खिलाडि़यों को वजीफा प्राप्त करने का मौका दिया जा रहा है। पहला अंडर-17 आयु वर्ग के खिलाड़ी को, स्कूली राष्ट्रीय खेलों तथा यूथ राष्ट्रीय खेलों में पहले छह स्थानों तक आए हैं, उन्हें यहां मौका मिलता है। दूसरा वर्ग अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों के साथ अंडर-20 वर्ष आयु वर्ग के खिलाडि़यों को भी इसमें मौका दिया जा रहा है। आजकल महाराष्ट्र के पुणे में खेलो इंडिया की खेल प्रतियोगिता जारी है। इसमें हिमाचल की तरफ से भी एथलेटिक्स, मुक्केबाजी, भारोत्तोलन, कुश्ती, जूडो व कबड्डी आदि खेलों में लगभग दो दर्जन से भी अधिक खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। पिछले वर्ष से एक एथलेटिक्स तथा तीन कबड्डी की खिलाडि़यों को वजीफा मिलना शुरू हो गया है।

इस वजीफे में प्रतिवर्ष पांच लाख रुपए प्रति खिलाड़ी अगले आठ वर्षों तक मिलता रहेगा, इमसें खिलाड़ी को हर महीने दस हजार रुपए जेब खर्च तथा उसके रहने, खाने व प्रशिक्षण सुविधा का प्रबंध खेल अकादमी में किया जाता है। खेल प्रतियोगिताओं का यात्रा व दैनिक भत्ता भी इसी में दिया जाता है। अब इस वजीफे को दस लाख रुपए सालाना तथा अगले दस वर्षों तक खिलाड़ी को देने की बात हो रही है। यानी खिलाड़ी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने के लिए सरकार प्रति खिलाड़ी एक करोड़ खर्च करने को तैयार बैठी है। आज खेल देश में बहुत बड़ा व्यवसाय बनने जा रहा है। हर अभिभावक अपने बच्चों का भविष्य आज खेल के मैदान में भी देख सकता है। किसी भी पढ़ाई में स्कूली स्तर पर यह बहुत बड़ा वजीफा है। खेलो इंडिया में खिलाड़ी आगे निकलकर ओलंपिक पोडियम योजना में चयनित होकर प्रतिवर्ष चालीस लाख रुपए अपने प्रशिक्षण पर खर्च कर सकता है।

उसे पचास हजार रुपए हर महीने जेब खर्च भी मिलेगा। हिमाचल में आज लगभग हर खेल के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रशिक्षण सुविधा है। खिलाड़ी खेलो इंडिया तक पहुंचकर वजीफा भी जीत रहे हैं। आशा करते हैं कि अधिक से अधिक अभिभावक अपने प्रतिभावान बच्चों का भविष्य खेलों में तलाशने के लिए बचपन से ही प्रयास शुरू करेंगे, ताकि इस बर्फ के प्रदेश के खिलाड़ी भी तिरंगे को विश्व में सबसे ऊपर उठा सकें।

ई-मेल : bhupindersinghhmr@gmail.com

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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