नई तकनीकों का आविष्कार करें

By: Jan 15th, 2019 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

अपने देश में वैज्ञानिकों के वेतन न्यून हैं। अतः नई तकनीकों का आविष्कार करने में भारत में लागत कम आएगी। समस्या यह है कि हमारी शोध संस्थाएं लचर हैं। हमारे वैज्ञानिक विदेश में जाकर अच्छा काम करते हैं और अपने देश में उन्हें अनुकूल वातावरण नहीं मिलता है कि वे आविष्कार कर सकें। इसलिए सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए कि भारत में नई तकनीकों के आविष्कार का रास्ता खोले।  इस परिस्थिति में सरकार को चाहिए कि अपने विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं में जवाबदेही स्थापित करने के लिए कारगर कदम उठाए और इनमें रिसर्च का वातावरण स्थापित करे…

रामायण में प्रसंग आता है कि भगवान राम पुष्पक विमान पर आरूढ़ होकर लंका से अयोध्या पहुंचे। यह शोध का विषय है कि यह विमान आकाश में चलने वाला वायुयान था अथवा पानी पर चलने वाला जहाज। बहरहाल पूर्व में भारत में वायुयान चलते भी हों, तो भी इस तथ्य को नहीं नकारा जा सकता कि बीती दो शताब्दियों में तकनीकी दृष्टि से हम बहुत पीछे रह गए हैं। पिछली शताब्दी के प्रमुख तकनीकी आविष्कार अमरीका में हुए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमरीका में एटम बम का निर्माण हुआ, जो बाद में परमाणु ऊर्जा के रूप में विकसित हुआ। सत्तर के दशक में अमरीका में कम्प्यूटर का आविष्कार हुआ, जो आज के दिन मोबाइल फोन में भी एंड्रायड के रूप में चल रहा है। नब्बे के दशक में इंटरनेट का आविष्कार हुआ। इन आविष्कारों की बदौलत अमरीका आज विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन चुका है। अपने नए तकनीकी आविष्कारों को महंगा बेचकर अमरीका भारी रकम कमा रहा है। जैसे अमरीकी कंपनी माइक्रोसाफ्ट द्वारा विंडो साफ्टवेयर बनाने में लागत एक डालर से भी कम आती है, जबकि वह कंपनी विश्व बाजार में लगभग 10 डालर में बेच रही है। अपने उच्च तकनीकी माल को महंगा बेचकर और भारत से बासमती चावल और गलीचों को सस्ता खरीदकर अमरीका समृद्ध हो गया है।

इस विपरीत परिस्थिति में फिर भी विश्व बाजार में भारत टिका हुआ है, क्योंकि भारत में गरीबी है और श्रम सस्ता है। कुछ माल में श्रम का हिस्सा ज्यादा होता है, जैसे बासमती चावल अथवा गलीचों के उत्पादन में श्रम अधिक लगता है। इस श्रम सघन माल की उत्पादन लगत भारत में कम आती है। इस माल को भारत बेचता है। भारत और अमरीका के बीच व्यापार अमरीका की उच्च तकनीकों और भारत के सस्ते वेतन पर अब तक टिका हुआ है। अमरीका उच्च तकनीकों के माल हमें बेचता है और हम सस्ते वेतन से बने माल अमरीका को बेचते हैं। वर्तमान तकनीकी आविष्कारों से भारत के सस्ते वेतन का जो लाभ है वह समाप्तप्रायः होता जा रहा है। अमरीका एवं विकसित देशों में रोबोट का प्रचलन बढ़ रहा है। ऐसी दुकानें बनी हैं, जिनमें आप अपने मनचाहे प्रकार का हमबर्गर मशीन से बनवा सकते हैं। आप उसमें लिख सकते हैं कि आपको उसमें कौन सा सॉस चाहिए, चीज कितनी चाहिए, कितना नर्म या  कितना हार्ड चाहिए इत्यादि, मशीन वैसा ही हमबर्गर बनाकर दे देती है। इस उत्पादन में मनुष्य कर्मी की कोई भूमिका नहीं होती। इसी प्रकार कार बनाने के कारखानों में रोबोटों का उपयोग होने लगा है।

मुट्ठी भर श्रमिक कार का उत्पादन कर देते हैं। चीन में एक फैक्टरी बनी है, जिसमें एक भी श्रमिक नहीं है। कच्चे माल को मशीन में डालना, उससे तैयार माल बनाना, उसकी पैकिंग करना, गोदाम में रखना इत्यादि सभी काम रोबोटों से किए जाते हैं। रोबोटों के आविष्कार से उत्पादन में श्रम का हिस्सा कम होता जा रहा है। श्रम का हिस्सा कम होने से भारत को सस्ते श्रम का जो लाभ अब तक मिल रहा था, वह समाप्तप्रायः होने को है। अब कार बनाने की फैक्टरी में श्रम की जरूरत कम है। सारा काम रोबोट से होगा। ऐसे में श्रम भारत में सस्ता पड़ता है अथवा अमरीका में महंगा पड़ता है, इसका कोई प्रभाव नहीं रह जाता है। इसलिए आने वाले समय में भारतीय माल को अब तक मिल रहा सस्ते श्रम का लाभ कम होता जाएगा। और भी अधिक खतरा इस बात का है कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के आविष्कार से सेवा क्षेत्र से उत्पन्न हो रहे तमाम रोजगार भी खतरे में पड़ेंगे, जैसे कानूनी रिसर्च, मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन, इंश्योरेंस क्लेमों का निस्तारण आदि कार्य अब कम्प्यूटर साफ्टवेयर द्वारा किए जाने की तरफ हम बढ़ रहे हैं। आने वाले समय में कॉल सेंटर के कार्य भी कम्प्यूटर द्वारा किए जा सकते हैं। जिस प्रकार आज मोबाइल कंपनी को फोन करने पर कम्प्यूटर द्वारा आपको अधिकतर उत्तर दे दिए जाते हैं, वह कार्य आने वाले समय में कॉल सेंटर में भी होने लगेगा, ऐसी संभावना बनती है। रोबोटों द्वारा मेन्युफैक्चरिंग तथा आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस द्वारा सेवा क्षेत्र में भारत में उत्पन्न होने वाले रोजगार संकट में पड़ने की तरफ बढ़ रहे हैं। इस परिस्थिति में हमें नई तकनीकों के विकास पर ध्यान देना चाहिए। हमें नई तकनीकों का आविष्कार करना होगा, जैसे कृषि में टिशु कल्चर का उपयोग करके हम मनवांछित प्रकार के फूल अथवा सब्जियां उत्पादित कर सकते हैं। अंतरिक्ष यात्रा के लिए हम अंतरिक्ष यान बना सकते हैं। डाटा प्रोसेसिंग से हम विश्व में बीमारियों के प्रसार का अंदाज लगा सकते हैं। एक भाषा से दूसरी भाषा में पुस्तकों का अनुवाद करने वाला साफ्टवेयर बना सकते हैं। इन नए क्षेत्रों में रोजगार बन सकते हैं।

अपने देश में वैज्ञानिकों के वेतन न्यून हैं। अतः नई तकनीकों का आविष्कार करने में भारत में लागत कम आएगी। समस्या यह है कि हमारी शोध संस्थाएं लचर हैं। हमारे वैज्ञानिक विदेश में जाकर अच्छा काम करते हैं और अपने देश में उन्हें अनुकूल वातावरण नहीं मिलता है कि वे आविष्कार कर सकें। इसलिए सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए कि भारत में नई तकनीकों के आविष्कार का रास्ता खोले। हमारे विश्वविद्यालयों में अध्यापकों में रिसर्च करने की रुचि नहीं होती है। काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च जैसी संस्थाओं द्वारा तमाम प्रयोगशालाएं चलाई जाती हैं। ये प्रयोगशालाएं भी राजनीति का अड्डा बन चुकी हैं। इस परिस्थिति में सरकार को चाहिए कि अपने विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं में जवाबदेही स्थापित करने के लिए कारगर कदम उठाए और इनमें रिसर्च का वातावरण स्थापित करे। हर प्रोफेसर एवं वैज्ञानिक का पंचवर्षीय मूल्यांकन कराना चाहिए और इनमें जो अकुशल पाए जाएं उन्हें कंपल्सरी रिटायर कर देना चाहिए। रिसर्च के कार्यों को आउटसोर्स भी किया जा सकता है। निजी विश्वविद्यालयों अथवा रिसर्च कंपनियों को रिसर्च करने के ठेके दिए जा सकते हैं। इस प्रकार के कदमों से देश में नई तकनीकों का आविष्कार होगा और हम आने वाले समय के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकेंगे, जैसे आज अमरीका ने किया है। आज से चार हजार वर्ष पूर्व भगवान राम के समय देश में वायुयान चलते थे या नहीं, यह तो खोज का विषय है, परंतु बड़ी चुनौती इस समय वर्तमान में तकनीकी आविष्कार करने की है। पुराने वैभव के आधार पर हम बहुत आगे नहीं बढ़ सकते हैं।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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