नागरिकता का जमीनी आधार

By: Jan 12th, 2019 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

नागरिकता संशोधन बिल द्वारा नरेंद्र मोदी की सरकार ने कांग्रेस के 1947 में किए गए इसी पाप को धोने का प्रयास किया है। उसमें कहा है कि इन तीन देशों में रहने वाला कोई भी हिंदू-सिख, बौद्ध या जैन अपने घर वापस आ सकता है, उसे भारत की नागरिकता दी जाएगी, लेकिन विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि किसी विदेशी को भारत की नागरिकता देने के लिए मजहब को आधार नहीं बनाया जा सकता। उनकी बात ठीक है, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान, बांग्ला देश या अफगानिस्तान में बसने वाले हिंदू-सिख, बौद्ध या जैन विदेशी नहीं हैं, बल्कि वे, वह भारतीय हैं जिनसे उनकी इच्छा के विपरीत भारत की नागरिकता छीन ली गई थी…

पिछले दिनों लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पारित हुआ, जिसको लेकर विरोध पक्ष के राजनीतिक दल बवाल मचा रहे हैं। मोटे तौर पर सरकार ने तय किया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आकर यदि कोई हिंदू या सिख भारत का नागरिक बनना चाहता है, तो सरकार उसे नागरिकता देगी। इसके लिए कुछ शर्तों का प्रावधान है, जिन्हें पूरा करना अनिवार्य है। कांग्रेस समेत अधिकांश राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं। इस संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी, इस पर विचार करना जरूरी है। 1947 से पहले पाकिस्तान में रहने वाले सभी लोग भारत का ही हिस्सा थे।

मुस्लिम लीग के नेतृत्व में यहां के मुसलमानों ने भारत का नागरिक बने रहने से इनकार कर दिया और मजहब के नाम पर एक नए देश की मांग की। अपनी इस मांग को उन्होंने भारत विभाजन के माध्यम से पूरा भी करवा लिया। एक नया देश पाकिस्तान बना लिया और वहां रहने वाले करोड़ों भारतीय रातोंरात भारत के नागरिक न रह कर पाकिस्तान के नागरिक बन गए । पाकिस्तान से अभिप्राय में बांग्ला देश भी शामिल है। पाकिस्तान के क्षेत्र में रह रहे मुसलमानों के लिए तो यह नई नागरिकता उनके स्वप्न का पूरा होना ही था, क्योंकि वे भारत का नागरिक नहीं रहना चाहते थे, लेकिन वहां रहने वाले हिंदू-सिखों के लिए तो एक रात में ही घर से बेघर होने का मामला था। यह विभाजन टल सकता था, ऐसा उस समय की कांग्रेस के मुखिया नेहरू भी मानते थे, लेकिन नेहरू का मानना था कि इसके लिए मुझे और मेरे साथियों को कुछ दिन और जेल में

जाना पड़ता। नेहरू स्वीकार करते हैं कि उस उम्र में हममें से कोई भी जेल जाना नहीं चाहता था। अतः पाकिस्तान बन गया। यदि नेहरू और उनके साथी चार दिन और जेल चले जाते, तो पाकिस्तान न बनता और पाकिस्तान से निकल कर शेष बचे हिंदोस्तान में आने का प्रयास कर रहे लाखों हिंदू-सिख मारे न जाते। जाहिर है करोड़ों हिंदू-सिख जिनसे रातोंरात उनकी इच्छा के विपरीत भारत की नागरिकता छीन ली गई, पाकिस्तान में एक प्रकार से दोयम दर्जे के नागरिक बन कर रह गए। उनमें से बहुत लोगों ने भागकर शेष बचे हिंदोस्तान में आने की कोशिश की, ताकि वे भारत के ही नागरिक रह सकें। कुछ आ गए, कुछ इस प्रयास में मारे गए और कुछ अभी तक वहीं फंसे हुए हैं। जिनको अफगानिस्तान नजदीक लगता था, वे भाग कर वहीं चले गए। बनने के कुछ साल बाद ही पाकिस्तान ने अपने आप को इस्लामी देश घोषित कर दिया, वहां हिंदू-सिखों का रहना मुश्किल हो गया। उनके लिए उन्नति और नौकरियों के सब रास्ते बंद होने लगे। बहुत से हिंदू-सिख इच्छा से या अनिच्छा से मुसलमान बनने लगे। उधर अफगानिस्तान पर भी कट्टरपंथी तालिबान का कब्जा हो गया, वहां हिंदू-सिख का रहना मुश्किल हो गया। अनेक लोगों को तो बलपूर्वक मुसलमान बना लिया गया, लेकिन मुख्य प्रश्न था कि पाकिस्तान, बांग्ला देश और अफगानिस्तान में रहने वाले लाखों हिंदू-सिख जिनसे उनकी इच्छा के बिना कांग्रेस द्वारा किए गए विभाजन के पाप के फलस्वरूप भारत की नागरिकता छीन ली गई थी, भाग कर कहां जाएं?

उनके पास दो ही विकल्प हैं या तो वे पाकिस्तान, बांग्ला देश और अफगानिस्तान में मुसलमान बन जाएं या फिर हिंदोस्तान में आ जाएं, लेकिन दुर्भाग्य से हिंदोस्तान उन्हें अपने यहां की नागरिकता देने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस तो ऐसा कर ही नहीं सकती थी, क्योंकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के ये हिंदू-सिख कांग्रेस के पाप को ही तो दशकों से अपने कंधों पर ढो रहे थे। इसलिए कांग्रेस में इनका सामना करने की हिम्मत नहीं थी। कांग्रेस इनसे आंख से आंख मिला कर बात ही नहीं कर सकती थी। नागरिकता संशोधन बिल द्वारा नरेंद्र मोदी की सरकार ने कांग्रेस के 1947 में किए गए इसी पाप को धोने का प्रयास किया है। उसमें कहा है कि इन तीन देशों में रहने वाला कोई भी हिंदू-सिख, बौद्ध या जैन अपने घर वापस आ सकता है, उसे भारत की नागरिकता दी जाएगी, लेकिन विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि किसी विदेशी को भारत की नागरिकता देने के लिए मजहब को आधार नहीं बनाया जा सकता। उनकी बात ठीक है, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान, बांग्ला देश या अफगानिस्तान में बसने वाले हिंदू-सिख, बौद्ध या जैन विदेशी नहीं हैं, बल्कि वे, वह भारतीय हैं जिनसे उनकी इच्छा के विपरीत भारत की नागरिकता छीन ली गई थी।

भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस के उस पाप को किसी सीमा तक धोने का प्रयास कर रही है। जहां तक इन देशों के हिंदू-सिखों को मजहब के आधार पर भारत की नागरिकता देने का प्रश्न है, जब कांग्रेस ने मजहब के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण किया था, तो वहां रहने वाले हिंदू-सिखों की घर वापसी का आधार भी मजहब ही हो सकता है। अलबत्ता भारत सरकार की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसने इन तीन देशों में बसने वाले ईसाइयों, जिनके साथ इन देशों में मजहब के आधार पर अन्याय होता है, उनको भी भारत की नागरिकता देने का रास्ता खुला रखा है।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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