पद्धति का मुआयना

By: Jan 2nd, 2019 12:06 am

इन्वेस्टर मीट की महत्त्वाकांक्षा में हिमाचल अपनी योग्यता, दक्षता, क्षमता और पद्धति की समीक्षा भी कर रहा है। जयराम सरकार की गंभीरता इन्वेस्टर मीट पर केंद्रित मंत्रिमंडलीय बैठकों से भी झलकती है। निवेश केवल चुनौती नहीं, सारी व्यवस्था को नए सांचे में प्रस्तुत करना भी है। निवेश की सतह पर वर्षों से खड़े प्रश्न तथा हिमाचली नजरिए में आधिपत्य जमाए बैठे सरकारी क्षेत्र के सामने निजी क्षेत्र को स्थापित करने के लिए महाप्रयास की आवश्यकता है। ऐसे में इन्वेस्टर मीट से पहले कई बिंदुओं पर निर्णायक होने के साथ-साथ नीतिगत फैसलों से ही निवेशक को लाने में सुविधा होगी। सरकार ने 85 हजार करोड़ के निवेश की जो राहें चुनी हैं, उनके आधार पर कोशिश के पैमाने वर्तमान नीतियों के हिसाब से पूरे नहीं हो सकते, लिहाजा कुछ परिवर्तन की आजमाइश आवश्यक है। जिस तरह रज्जु मार्गों की स्थापना में निवेशक को हर संभव सुविधाएं देते हुए सरकार ने आरंभिक चिंताओं से मुक्त किया है, उसी प्रकार निवेश के अन्य क्षेत्रों में कई तरह की छूट अभिलषित है। जाहिर तौर पर इन्वेस्टर मीट कराने का इरादा, निजीकरण को बढ़ावा देने सरीखा है। क्या सरकार इस दृष्टि से पीपीपी मोड पर अपने उद्देश्यों को कार्यान्वित करेगी। कई सार्वजनिक संस्थान अपनी प्रासंगिकता तथा विश्वसनीयता को प्रश्नांकित कर चुके हैं, तो क्या पीपीपी मोड के जरिए इन्हें दुरुस्त किया जाएगा। प्रदेश के विभिन्न सरकारी उपक्रमों में जारी घाटे पर विचार किया जाए, तो निगमों की कई इकाइयां बिक सकती हैं। उदाहरण के लिए पर्यटन क्षेत्र में निवेश की संभावनाएं यह भी पता करेंगी कि निगम के कितने होटल-रेस्तरां आइंदा लीज पर उठ सकते हैं। जाहिर है सरकारी दायित्व में पलते नाकामयाब उपक्रमों को अगर चलता किया जाए, तो राज्य की तरक्की के रास्ते बढ़ेंगे। देखना यह भी होगा कि रोजगार नीति को किस तरह नए आयाम तक पहुंचाया जाता है। वर्तमान रोजगार की शर्तों में हिमाचल का एकतरफा अधिकार तो है, लेकिन समझना यह होगा कि बीबीएन इस दृष्टि से कितना सफल रहा। निवेश के साथ बहुप्रतीक्षित रोजगार अगर हिमाचली युवा को स्थान देगा, तो इसके साथ प्रशिक्षण की माकूल व्यवस्था भी करनी होगी। इन्वेस्टर मीट के सामने हम अपने मानव संसाधन को किस तरह परोस पाएंगे, यह गौर करने की आवश्यकता है। इस मामले में तकनीकी विश्वविद्यालय, निजी विश्वविद्यालयों के अलावा अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों को मानव संसाधन को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करना पड़ेगा। निजी क्षेत्र के लायक क्षमता व मानसिकता का आरोहण फिलहाल हिमाचल की कमजोरी रहा है। इसी के साथ हमें अब तक के निवेश को बतौर मॉडल प्रस्तुत करना हो, तो किस औद्योगिक केंद्र, शहर या प्रस्तावित स्थान का नक्शा पेश करेंगे। दुर्भाग्यवश बीबीएन को हिमाचल अपनी आर्थिक राजधानी के रूप में नहीं संवार पाया। अभी तक एक भी आईटी पार्क स्थापित नहीं हो पाया, तो कब तरह-तरह के पार्कों के तहत निवेशक को अपना अड्डा जमाने में राहत मिलेगी। जाहिर है भूमि बैंक की परिपाटी में हिमाचल की नए सिरे से पैमाइश होगी। यह पहली बार हो रहा है जब सरकार रणनीति के तहत बेकार पड़ी जमीन को लाभकारी बनाने का पैमाना खोज रही है, वरना आज तक खैरात में बंटती भूमि ने केवल माफिया को ही जन्म दिया। नौतोड़ आबंटन के तहत बंटी जमीनें प्रायः बिक गईं, तो मुजारा कानून की जद में आई भूमि भी कृषि के काम न आई। आश्चर्य यह भी रहा कि आज तक सरकारी परियोजनाओं, दफ्तरों, स्कूलों व अस्पतालों के लिए जमीन तब तलाश की गई, जब धन आबंटित हो चुका था। राजस्व विभाग के अपने रिकार्ड में यह स्पष्ट नहीं है कि एक साथ कहां-कहां कितनी जमीन उपलब्ध है। कमोबेश किसी भी शहर को यह पता नहीं कि भविष्य की अधोसंरचना तथा नागरिक सुविधाओं के लिए उसके पास कितनी जमीन उपलब्ध है। ऐसे में भूमि बैंक की स्थापना के लिए मार्गदर्शन के बजाय नियम व नीति चाहिए। सरकार के अपने अधीन भी जो जमीन है, उसका ब्यौरा भी अनुपलब्ध है। विभागीय इमारतों ने अधिकांश जमीन जाया की है या बिना किसी आधार के भूमि का गलत इस्तेमाल किया है। कमोबेश हर शहर की जमीन का किफायती तथा सुव्यवस्थित इस्तेमाल करने के लिए यह जरूरी है कि सरकारी संपत्तियों का प्रबंधन एक स्वतंत्र एस्टेट प्राधिकरण करे। जिला स्तर पर कुछ अधिकारियों की कोठियां ही इतनी जमीन घेर कर बैठी हैं कि पूरी कालोनी बस जाए। इसी तरह पुलिस, कृषि, बागबानी तथा पशुपालन जैसे विभागों को शहरों के बजाय अब ग्रामीण अंचल में बसाया जा सकता है। दो-तीन शहरों के मध्य कर्मचारी, नगर, न्यायालय तथा कुछ अन्य कार्यालयों के परिसर स्थापित करते हुए जमीन की उपलब्धता बढ़ेगी। इन्वेस्टर मीट की सफलता का दारोमदार धारा 118 की नई व्याख्या पर टिका रहेगा। उत्तराखंड और हिमाचल के बीच का अंतर या निवेशक को अपनाने के बीच यही एक दीवार है, जो हर कोशिश को माथा पीटने पर विवश करती है। निवेश का कालीन फिलहाल धारा-118 के पास गिरवी है और अगर सरकार प्रमुख अड़चन को दूर कर देती है, तो यकीनन हिमाचल की गर्मजोशी में इन्वेस्टर मीट की सफलता सुनिश्चित हो जाएगी।

 


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