बड़ी बहादुरी से लड़े थे राजपूत

By: Jan 23rd, 2019 12:05 am

क्रांति तथा विद्रोह का यह सिलसिला जारी रहा। राजा जसवान उमेद सिंह और उसके पुत्र जयसिंह दतारपुर के राजा जगत चंद और सिख कमांडर संत बेदी विक्रम सिंह ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति कर दी। ये सेना सहित कांगड़ा की ओर बढ़े, जबकि अपने राज्य पर इन्होंने पहले ही अधिकार कर लिया था…

गतांक से आगे …

सिख सेनापति बसपा सिंह ने पठानकोट में अधिकार स्थापित कर दिया। 16 नवंबर, 1848 ई. में अंग्रेज कमांडर लार्ड गुई ने रावी नदी पार कर शेर सिंह के साथ रामनगर में घमासन युद्ध किया। कांगड़ा से और अंग्रेज सेना पठानकोट पहुंचते ही कांगड़ा के राजा प्रबुद्ध चंद ने सेना पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों के लिए आक्रमण असहनीय था। पठानकोट से सेना वापस प्रबुद्ध चंद के विरुद्ध कांगड़ा बुला ली गई। तीन कंपनियों के साथ जिलाधीश कांगड़ा लौटा। वह टीहरा-सुजानपुर की ओर प्रबुद्ध चंद का सामना करने के लिए बढ़ा। क्रांति तथा विद्रोह का यह सिलसिला जारी रहा। राजा जसवान उमेद सिंह और उसके पुत्र जयसिंह दतारपुर के राजा जगत चंद और सिख कमांडर संत बेदी विक्रम सिंह ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति कर दी। ये सेना सहित कांगड़ा की ओर बढ़े, जबकि अपने राज्य पर इन्होंने पहले ही अधिकार कर लिया था। वे जिलाधीश बारनस को दोनों ओर से घेरना चाहते थे। हाजीपुर, रोपड़ आदि कई स्थानों में क्रांति हुई। राजपूत अपनी विजय के निकट थे। अंग्रेजों को जगह-जगह पर राजपूतों से जूझना पड़ रहा था। जिससे उनकी शक्ति काफी कमजोर हो गई थी। अतः उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’। शमशेर सिंह (राजा गुलेर) अंग्रेजों से मिल बैठा। उसने सारी योजना अंग्रेजों को बता दी। सूचना पाते ही कमिश्नर लारेंस भारी सेना लेकर कांगड़ा की ओर बढ़ गया। दूसरी ओर प्रबुद्ध चंद ने अपना विजय अभियान जारी रखा। उसने महलमोरी, टीहरा-सुजानपुर, रिथाई तथा अभियानपुर के किलों पर अधिकार जमा लिया। कटोच साम्राज्य की प्राचीन राजधानी में तोपों की सलामी दी गई। अंग्रेजों में भय छा गया। दिसंबर तक अंग्रेजों की भारी सेना सुजानपुर पहुंची और किले को घेर लिया गया। योजनानुसार दतारपुर तथा जसवान की सेना अंग्रेजों पर धावा बोलने के लिए पीछे से बढ़ रही थी। लगभग 800 राजपूत सतलुज पर कर चुके थे, परंतु  उनका दुर्भाग्य यह था कि शमेशर सिंह अंग्रेजों को सारी सूचनाएं दे रहा था। तभी अंग्रेजों ने योजना बनाई और कुछ सैनिक नदी के दूसरे घाट पर खाइयों में छिप गए। राजपूत सेना अंग्रेजों पर टूट पड़ी, जिससे अंग्रेजों को भारी क्षति पहुंची। राजपूत बहादुरी से लड़े, परंतु उनका सेनापति मारा गया। लारेंस ने भी अपनी सेना युद्ध में भेज दी। तोपों के पहुंचने से युद्ध में उनके पांव फिर जम गए। तोपों के सामने राजपूत टिक न पाए और पीछे हट गए। अब अंग्रेजों की सेना ने टीहरा-सुजानुपर पर आक्रमण कर दिया। जहां राजा प्रबुद्ध चंद ने कब्जा कर रखा था। वह अपने साथियों से सहायता चाहता था। वह वीरता से लड़ा, परंतु सहायता प्राप्त न होने के कारण उसने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। सुजानपुर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। उन्होंने राजा के किले को तोपों से उड़ा दिया।


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