भारत लोकतंत्र या नेतातंत्र

By: Jan 30th, 2019 12:04 am

 राजेश कुमार चौहान, जालंधर

आज हमारे देश के गण के तंत्र में दोष आ गए हैं, लेकिन फिर भी हमारा देश दुनिया का सबसे निराला देश है। यहां संविधान में हर धर्म, संप्रदाय और जातिवर्ग को एक समान मूल अधिकार और कर्त्तव्यों का प्रावधान है। हमारे देश के गण के तंत्र में जो कुछ दोष आए हैं, उसके लिए कोई बाहरी तत्त्व जिम्मेदार नहीं है, बल्कि देश के अंदर के ही स्वार्थी तत्त्व जिम्मेदार हैं। हरिवंश राय बच्चन की इन पंक्तियों को 26 जनवरी के राष्ट्रीय पर्व पर एक कविता में लिखा था कि ‘कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना, कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना, गैरों से कहना क्या, मुश्किल अपने घर की राह।’ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र दिन प्रतिदिन कुछ स्वार्थी लोगों के कारण नेतातंत्र बनता जा रहा है। स्वार्थ के इस दौर में सबको अपने पेट और तिजोरियां भरने की चिंता है, लोकतंत्र की किसको परवाह है? गणतंत्र वह शासन प्रणाली होती है जिसमें प्रजा पर शासन करने वाला कोई राजा या रानी नहीं बल्कि जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है। लेकिन आज कुछ राजनेताओं ने इस परिभाषा को ही बदल कर रख दिया है, अब देश नेतातंत्र बन गया है। सत्ताधारियों को चुनती तो आम जनता है, लेकिन कुछ लोग तानाशाही रवैये से सरकारें चलाने से भी बाज नहीं आते हैं। यह स्थिति भारत के लिए खतरनाक है।

 


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