हिमालय में स्वर्ण की खोज

By: Jan 4th, 2019 12:05 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

खेल में प्रतिभावान लाखों में एक मिलता है। खंड स्तर पर अधिक बजट का प्रावधान कर हमें हर पंचायत स्तर तक यह प्रतिभा खोज प्रक्रिया अपनानी चाहिए। हर स्कूल अपने यहां अपने विद्यार्थियों का शारीरिक क्षमता का टेस्ट ले, जिसमें स्पीड पर अधिक ध्यान केंद्रित हो, क्योंकि भारत अगर सबसे ज्यादा खेल क्षेत्र में कमजोर है, तो वह कारण स्पीड ही है…

जहां देश में खेल मंत्रालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने के लिए खिलाडि़यों के लिए किशोरावस्था से लेकर वयस्क होने तक विभिन्न खेल योजनाओं के माध्यम से खेलो इंडिया व ओलंपिक पोडियम जैसे कार्यक्रम चला रहा है, वहीं पर कई गैर सरकारी संस्थाएं भी उभरते खिलाडि़यों के लिए वजीफे तथा अन्य खेल सुविधाओं का प्रबंध कर रही हैं। हिमालय के राज्यों में स्वर्ण की खोज के लिए चल रही प्रतिभा खोज एनईएसटी नामक ट्रस्ट ओएनजीसी के लिए आयोजक की भूमिका अदा कर रहा है। उत्तर पूर्व की सात बहनों वाले राज्यों के साथ-साथ बंगाल हिल्ज तथा सिक्किम के लिए वर्ष 2018 के अंतिम माह में हर राज्य से चुने गए धावक व धाविकाआें की प्रतियोगिता करवाकर इनमें से भविष्य में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को वजीफा व अन्य सुविधा दी जाएगी। हिमाचल प्रदेश में पहले राज्य स्तर पर यह प्रतियोगिता जोगिंद्रनगर में आयोजित हुई। इसमें सैकड़ों धावकों व धाविकाओं ने भाग लिया। यहां से चयनित छह धावक व छह धाविकाएं उत्तराखंड व जे एंड के के चुनिंदा धावकों के साथ हमीरपुर में पांच जनवरी को प्रतिस्पर्धा करेंगे। इन सब धावक-धाविकाओं में जो भी भविष्य में उच्च प्रदर्शन करने की क्षमता रखते होंगे, उन्हें अच्छे जूते, पोषक आहार, प्रतियोगिता के लिए हवाई यात्रा व अच्छे होटल में सुविधा का सारा खर्च वहन किया जाएगा। जब हजारों घोड़े दौड़ेंगे, तो उन्हीं में से रेस को जीतने वाले विजेता निकलेंगे। देश में खेलों के लिए अभी तक कोई ऐसी योजना नहीं बनी है, जिसके माध्यम से हर प्रतिभावान तक पहुंचा जा सके। सरकार अपने स्तर पर खेल छात्रावास तथा खेलो इंडिया के लिए योजनाएं बनाकर किसी हद तक देश को एशियाई स्तर पर विजेता खिलाड़ी भी दे रही है, मगर इन योजनाओं के अंतर्गत हम कितने खिलाडि़यों तक पहुंच पा रहे हैं। सवा करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में हम सभी खेलों के लिए पूरे भारत से हर वर्ष केवल एक हजार खिलाड़ी खोज रहे हैं।

विकास में किशोर अवस्था से युवा होने तक कई खिलाडि़यों के प्रदर्शन में कई बार गिरावट देखी गई है। हो सकता है जो किशोर खेलो इंडिया के लिए चुना गया, उसका जल्दी विकास हो गया हो और उसका खेल प्रदर्शन चयन प्रक्रिया के वर्ष में बहुत अच्छा हो और इसी समय देरी से विकसित होने वाले किशोर का आगे चलकर प्रदर्शन सुधरा हुआ मिले। आयुवर्ग की प्रतिभा खोज में भविष्य में अच्छा प्रदर्शन करने वाला देरी से विकसित होने के कारण वजीफे व अन्य सुविधाओं से वंचित हो जाता है और कनिष्ठ वर्ग से निकल कर वह आगे चलकर विजेता प्रदर्शन करता हुआ देश को गौरव देता देखा गया है। इसलिए भी विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा अधिक से अधिक खिलाडि़यों को प्रायोजित करना जरूरी हो जाता है। हिमालय में स्वर्ण की खोज भारतीय एथलेटिक्स के लिए अच्छी पहल हो सकती है। दूर-दराज तक बसे गांव तक पहुंच बनाकर मध्य व लंबी दूरी की दौड़ों के लिए भविष्य के विजेता हिमालय पर बसे राज्यों से खोजना एक वैज्ञानिक पहलू भी है। अधिक ऊंचाई पर बसे होने के कारण वायु दबाव होने से खिलाडि़यों में लाल रक्त कण अधिक होते हैं। मध्य व लंबी दूरी की दौड़ों में अधिक आक्सीजन की जरूरत होती है, जो लाल रक्त कणों के माध्यम से अधिक से अधिक हमारे अंगों तक पहुंच पाती है। दस हजार मीटर दौड़ का राष्ट्रीय रिकार्डधारी सुरेंद्र उत्तराखंड का निवासी है। इसी तरह अपने समय की राष्ट्रीय रिकार्डधारी सुमन रावत ने भी सात हजार मीटर की ऊंचाई में अपना अभ्यास शिमला की सड़कों पर ही पूरा किया था। इसलिए  भी हिमालय के राज्यों में भविष्य के विजेता खिलाड़ी निकालने के लिए हिमालय में स्वर्ण की खोज तक अच्छा कार्यक्रम है। हमीरपुर में आयोजित होने वाली इस प्रशिक्षण शिविर व प्रतियोगिता में स्कूली राज्य स्तरीय खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाडि़यों को भी मौका दिया गया है। आगामी वर्षों में होने वाली इस प्रतिभा खोज को जिला स्तर से भी नीचे खंड स्तर तक ले जाना होगा।

खेल में प्रतिभावान लाखों में एक मिलता है। जब तक हर खंड के हजारों किशोरों तक पहुंच नहीं पाते हम विश्व स्तर पर उत्कृष्ट करने वाले खिलाड़ी नहीं दे सकते हैं। खंड स्तर पर अधिक बजट का प्रावधान कर हमें हर पंचायत स्तर तक यह प्रतिभा खोज प्रक्रिया अपनानी चाहिए। हर स्कूल अपने यहां अपने विद्यार्थियों का शारीरिक क्षमता का टेस्ट ले, जिसमें स्पीड पर अधिक ध्यान केंद्रित हो, क्योंकि भारत अगर सबसे ज्यादा खेल क्षेत्र में कमजोर है, तो वह कारण स्पीड ही है। अगर इस तरह प्रतिभा की खोज कर उसे अच्छे प्रशिक्षक व खेल सुविधा में रखा जाता है, तो वह भविष्य में जरूर विश्व स्तरीय खेल परिणाम देगा। एनईएसटी तथा ओएनजीसी जैसी संस्थाएं जब देश में खेलों के उत्थान के लिए आगे आ रही हैं, तो आगामी 2024 व 2028 के ओलंपिक में स्वर्ण पदक की उम्मीद कर सकते हैं। अफ्रीकी देशों को अगर चुनौती देनी है, तो उन्हीं की तरह ऊंचाई पर जन्मे तथा वहीं पर अभ्यास किए मध्य व लंबी दूरी के धावक व धाविकाएं हिमालय में स्वर्ण की खोज से हमें जरूर मिलेंगे। एनईएसटी के प्रतियोगिता व प्रशिक्षण शिविर संयोजक अंकित धीमान का कहना है कि भविष्य में हम और भी अधिक बढि़या तरीके से हिमालय में स्वर्ण की खोज के लिए अभियान चलाने वाले हैं। देखते हैं पांच जनवरी को कौन-कौन धावक व धाविका अच्छा प्रदर्शन कर भविष्य में अपनी ट्रेनिंग को अच्छी सुविधा जुटाने के लिए वजीफा जीतते हैं।


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