आर्थिक चुनौतियों की कसौटी पर बजट
डा. भरत झुनझुनवाला
आर्थिक विश्लेषक
सरकार को उत्तराखंड में गंगा पर बन रही तीन जल विद्युत परियोजनाएं सिंगोली भटवारी, तपोवन विष्णुगाड और विष्णुगाड पीपलकोटी को तत्काल निरस्त कर देना चाहिए था। साथ-साथ गंगा पर जहाज चलाने की पालिसी को त्याग देना चाहिए था। विकसित देशों का गंगा पर अनुसरण नहीं करना चाहिए, चूंकि वहां नदी को माता नहीं माना जाता है। इनकम टैक्स में छूट देने का भाजपा को लाभ जरूर मिलेगा…
बजट में वित्त मंत्री ने छोटे किसानों को सीधे नगद देने की घोषणा की है। 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को 500 रुपए प्रति माह या 6000 रुपए प्रति वर्ष सीधे उनके खाते में डाले जाएंगे। संभव है कि वित्त मंत्री ने इस रास्ते 2019 के चुनाव को साधने का प्रयास किया है। इस रणनीति को समझने के लिए आगामी चुनाव के परिदृश्य पर नजर डालनी होगी। पिछले चार वर्षों में भाजपा की पालिसी थी कि गाय एवं राम मंदिर के मुद्दों पर हिंदू वोट का ध्रुवीकरण किया जाए। इसके साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भाजपा विकसित देशों की तर्ज पर बढ़ाना चाहते थी, जैसे मेक इन इंडिया और बुलेट ट्रेन के माध्यम से। विकसित देशों का अनुसरण करने के इस प्रयास में नोटबंदी और जीएसटी को लागू किया, जिससे कि विकसित देशों की तरह भारत में भी डिजिटल इकोनॉमी स्थापित हो। ये कदम सरकार के लिए विशेष हानिप्रद सिद्ध हुए। नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्योगों को पस्त कर दिया। ये छोटे उद्योग ही रोजगार उत्पन्न करते थे। फलस्वरूप रोजगारों का संकुचन हुआ।
रोजगार के संकुचन से आम आदमी की क्रय शक्ति का हृस हुआ और बाजार में माल की मांग में ठहराव आ गया। यही कारण है कि अर्थव्यवस्था की विकास दर पूर्ववतः सात प्रतिशत पर टिकी हुई है। गरीब यदि अमीर की तरह 100 रुपए की एक कप चाय पिए, तो उसका बजट बिगड़ जाता है। इसी प्रकार भारत द्वारा अमीर देशों की पालिसी लागू करने से भारत की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है। इस बिगड़ती स्थिति को संभालने के लिए वित्त मंत्री ने छोटे किसानों को सीधे रकम देने की घोषणा की है। साथ-साथ इनकम टैक्स में छूट को 2.50 लाख से बढ़ाकर 5.00 लाख किया है। इन कदमों से अर्थव्यवस्था की मुख्य चुनौतियों का सामना नहीं हो सकेगा और भाजपा को विशेष राजनीतिक लाभ भी नहीं होगा, ऐसा लगता है। पहला मुद्दा किसानों का है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पादों के दाम में निरंतर गिरावट आने से संपूर्ण विश्व के किसान दबाव में हैं।
सरकार की पालिसी है कि उत्पादन बढ़ाकर किसानों का हित हासिल किया जाए, परंतु यह सफल नहीं हो रहा है। कारण यह है कि उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ बाजार में दाम गिर जाते हैं और किसान को लाभ के स्थान पर घाटा होता है। इस समस्या का उपाय यह था कि सरकार द्वारा किसानों के हित के लिए जो सबसिडी दी जा रही है, जैसे खाद्यान्न, फर्टिलाइजर, बिजली और मनरेगा पर, उसे किसान को सीधे उसके खाते में डाल दिया जाता। ऐसा करने से ऋण माफी का जो भूचाल चल रहा है, उससे देश मुक्त हो जाता। चूंकि किसान को एक निश्चित सम्मानजनक आय मिल जाती। मेरे गणित के अनुसार यदि वर्तमान कृषि सबसिडीज को समाप्त कर दिया जाता, तो देश के लगभग हर किसान परिवार को 50 हजार रुपए प्रति वर्ष दिए जा सकते थे। ऐसा करने से किसान को उसके खाते में सीधे रकम मिल जाती और वह आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होता। किसानों में उत्साह का वातावरण उत्पन्न हो जाता और वे मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रपंच से भी मुक्त हो जाते, परंतु वित्त मंत्री ने बजट में केवल 6000 रुपए प्रति वर्ष देने की घोषणा की है। यह कदम सही दिशा में है, परंतु ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है। वर्तमान सबसिडीज को समाप्त करने एवं 50,000 रुपए प्रति वर्ष देने से वित्त मंत्री चूक गए। दूसरा मुद्दा रोजगार का है। जैसा ऊपर बताया गया है कि जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों को परेशानी हुई है। यह आज भी जारी है। कारण यह है कि छोटे उद्यमों को खरीदे गए माल पर जीएसटी अदा करना पड़ता है, परंतु उनके माल को खरीदने वाले को वह सेट ऑफ नहीं मिलता है। मान लीजिए कोई व्यापारी किसी बड़े उद्यमी से 118 रुपए का माल खरीदता है। इसमें उसे खरीद पर 18 प्रतिशत से 18 रुपए की अदा की गई जीएसटी का सेट ऑफ या रिफंड मिल जाता है। उसकी शुद्ध लागत 100 रुपए पड़ती है। इसकी तुलना में यदि वही व्यापारी किसी छोटे उद्यमी से वही माल 118 रुपए में खरीदे, तो छोटे उद्यमी द्वारा इनपुट पर अदा की गई जीएसटी का रिफंड नहीं मिलता है और उसकी शुद्ध लागत 118 रुपए पड़ती है। इसलिए जीएसटी के लागू होने के बाद व्यापारियों ने छोटे उद्यमों से माल खरीदना कम कर दिया है और छोटे उद्यम बैकफुट पर आ गए हैं। इन्हीं छोटे उद्यमों द्वारा अधिकतर रोजगार बनाए जा रहे थे, जो अब मंद पड़ गए हैं। रोजगार सृजन में ठहराव का यह प्रमुख कारण है। इसका सीधा उपाय था कि सरकार छोटे उद्यमियों को कंपोजीशन स्कीम के अंतर्गत इनपुट पर अदा किए गए जीएसटी का रिफंड लेने की व्यवस्था करती, तब छोटे उद्यमी भी 100 रुपए में उसी माल को बेच सकते और व्यापारी के लिए बड़े और छोटे उद्यमी से माल खरीदने में अंतर नहीं पड़ता। छोटे उद्योग खड़े हो जाते, तो तत्काल देश में उत्साह की लहर पैदा हो जाती। ऐसे ठोस कदम उठाने के स्थान पर वित्त मंत्री ने छोटे उद्योगों को लोन में कुछ छूट देने मात्र की घोषणा की है, जो नई बोतल में पुरानी दवा है, यह निष्प्रभावी रहेगी।
सरकार को गाय और मंदिर से भी लाभ नहीं मिल रहा है। कारण यह है कि गाय के विषय को दलित और मुसलमान विरोधी माना जा रहा है और मंदिर के विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हाथ बांध रखे हैं। ये मुद्दे सरकार के लिए हानिप्रद साबित हो रहे हैं। इसका उपाय यह है कि गाय एवं राम मंदिर के स्थान पर गंगा का विषय उठाकर हिंदू वोट का धु्रवीकरण करे। सरकार को उत्तराखंड में गंगा पर बन रही तीन जल विद्युत परियोजनाएं सिंगोली भटवारी, तपोवन विष्णुगाड और विष्णुगाड पीपलकोटी को तत्काल निरस्त कर देना चाहिए था। साथ-साथ गंगा पर जहाज चलाने की पालिसी को त्याग देना चाहिए था।
विकसित देशों का गंगा पर अनुसरण नहीं करना चाहिए, चूंकि वहां नदी को माता नहीं माना जाता है। इनकम टैक्स में छूट देने का भाजपा को लाभ जरूर मिलेगा, परंतु मेरे आकलन में यह सामान्य वोटर को लुभाने में सफल नहीं होगा, चूंकि इसका लाभ कम संख्या में ही लोगों को मिलेगा। ये लोग शिक्षित हैं और इस कदम से कम ही प्रभावित हो सकते हैं। 2019 के चुनाव में जो भी पार्टी सरकार बनाती है, उसको भी अंततः इन्हीं नीतियों को लागू करना होगा, तब ही किसान और बेरोजगार को राहत मिलेगी और सरकार को राजनीतिक लाभ मिलेगा।
ई-मेल : bharatjj@gmail.com
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