ऐतिहासिक बातलेश्वर शिवालय

By: Feb 23rd, 2019 12:07 am

बातल की प्राचीनता की पुष्टि गांव का प्राचीन शिव मंदिर है जिसे राणा जगतसिंह के भाई मदन सिंह ने संवत 1814 विक्रमी श्रावण पूर्णिमा सन् 1757 ई. को निर्मित करवाकर यहां यज्ञ का आयोजन किया था…

आजादी से पूर्व ऐतिहासिक गांव बातल महासू की प्राचीन तीस रियासतों में सबसे बड़ा गांव था। वैदिक साहित्य, ज्योतिष कर्मकांड एवं भगवद कथा के विद्वानों का नाम पहाड़ों में ही नहीं, दूसरे प्रदेशों में भी सुविख्यात था। ऐतिहासिक मंदिर परिसर में रियासतों के विद्वानों के शास्त्रार्थ हुआ करते थे।

बातल का संबंध बाघल रियासत के प्रारंभिक शास्कों से रहा है। 1643 ई. में राजा समाचंद ने जब राजधानी बदलकर अर्की की नींव रखी, तो अपने पंडितों, पुरोहितों, गायकों आदि को इस गांव में बसाने का निर्णय लिया था। कहते हैं इससे पूर्व यहां भाट ब्राह्मण रहते थे।

बातल की प्राचीनता की पुष्टि गांव का प्राचीन रथाकार शिव मंदिर है, जिसे राणा जगतसिंह के भाई मदन सिंह ने संवत 1814 विक्रमी श्रावण पूर्णिमा सन् 1757 ई. को निर्मित करवाकर यहां यज्ञ का आयोजन किया था। इसके प्रमाण मंदिर में स्थापित शिलालेख में हैं। यद्यपि मंदिर 1757 ई. में बनकर तैयार हुआ हो, परंतु इसकी स्थापना राणा पृथ्वी चंद के समय में हुई थी।

इसके पश्चात बातल के दूसरे मंदिर तथा टोबा नामक तलहटी में सात बावडि़यों का निर्माण करवाया था। अर्की क्षेत्र के अन्य मंदिरों को शिवशरण सिंह एवं किशनसिंह राणा के समय 1828-1877 के मध्य राजपरिवार की रानियों के कहने पर बनवाया गया था। शिव मंदिर की वास्तुकला- बातल का शिव मंदिर राजस्थान के शिखर नागर मंदिरों की शैली शिल्प पर बना है, जिसे रथाकार माना जाता है। इसका कारण यहां के शास्कों को मध्यभारत राजस्थान से संबंध रखना था। मध्य हिमालय एवं शिवालिक क्षेत्र के अधिकांश मंदिर नागर शैली में बने हैं, किंतु इनका आयतन लघु है, जबकि मध्यभारत के मंदिर स्थानों एवं सामाग्री की उपलब्धता के कारण विशाल परिसर में बने हैं। आठवीं सदी के पश्चात बने अधिकांश मंदिर पंचायतन शैली के हैं, जिनमें मध्य में गर्भगृह में प्रमुख देवता तथा अन्य चार देवताओं की मूर्तियां मंदिर परिसर के चार कोनों में स्थापित होती हैं।

—क्रमशः

-अमर देव आंगिरस, (दाड़लाघाट)

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App