जमीन की असली आवाज हैं पवन की कविताएं
मेरी किताब के अंश : सीधे लेखक से किस्त :11
ऐसे समय में जबकि अखबारों में साहित्य के दर्शन सिमटते जा रहे हैं, ‘दिव्य हिमाचल’ ने साहित्यिक सरोकार के लिए एक नई सीरीज शुरू की है। लेखक क्यों रचना करता है, उसकी मूल भावना क्या रहती है, संवेदना की गागर में उसका सागर क्या है, साहित्य में उसका योगदान तथा अनुभव क्या हैं, इन्हीं विषयों पर राय व्यक्त करते लेखक से रू-ब-रू होने का मौका यह सीरीज उपलब्ध करवाएगी। सीरीज की ११वीं किस्त में पेश है साहित्यकार पवन चौहान का लेखकीय संसार…
कविता संग्रह ‘किनारे की चट्टान’ के लेखक व कवि पवन चौहान का कहना है कि लेखन का जिक्र आते ही बचपन के दिन स्मरण हो आते हैं जब मैं सातवीं-आठवीं में पढ़ता था। स्कूल से छुट्टियां होते ही नाना-नानी के घर पहुंच जाता था। वहां अलमारी में बहुत सारी किताबें और पत्रिकाएं सजी रहती थीं। उन्हें मेरे मामा जी पढ़ते थे। मुझे याद है उनमें राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका मधुमती के साथ अन्य लेखकों की भी किताबें थीं। जब भी वहां जाता तो खाली वक्त में उन्हे उलटता-पलटता और कभी कोई कविता या फिर कहानी का अंश पढ़ लिया करता था।
बेशक, उस बचपने में समझ ज्यादा कुछ नहीं आता था, परंतु आज लगता है कि शायद यहीं से मेरे भीतर लेखन का कोई बीज जरूर पनपा होगा। फिर कॉलेज तक आते-आते छुट-पुट कुछ लिखते रहे, टपे मिलाकर। वह भी कभी-कभार ही। सही मायने में मेरे लेखन की शुरुआत वर्ष 2001 में हुई जब हमारे गांव के शिव मंदिर पर मेरा पहला फीचर दैनिक भास्कर अखबार में छपा। उसके बाद तो आस-पास के सारे मंदिर, ऐतिहासिक स्थल और सामाजिक दायित्व का सही मायने में निर्वहन करने वाले व्यक्ति विशेष पर खूब कलम चली। उस समय समाचार पत्रों के कॉलम ऐसे थे जो हमारी सामाजिक परंपराओं, संस्कृति और व्यक्ति विशेष की उपलब्धियों के लिए अपने पन्नों में खूब जगह देते थे। ये कॉलम लोगों के बीच में हमारे आस-पास की ढेरों कहानियां-किस्से लेकर पहुंचते थे। पाठक उत्सुकता से इन पन्नों का इंतजार करते थे। आज ये सारे कॉलम, सप्लीमेंट, स्तंभ लगभग हर समाचार पत्र से गायब हो चुके हैं। खैर, इसके अलावा इस दौरान कविता और कहानी लिखने का साहस भी जगा। कविताएं, कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं तो लिखने का साहस भी बढ़ता रहा। 2001 से 2005 के मध्य तक फीचर, कविता और कहानियां लिखीं।
इस समय तक मुझे हिमाचल में एक युवा कहानीकार के रूप में पहचाना जाने लगा था। फिर वह समय भी आया जब मैं काफी समय तक बीमार रहा जिसके चलते न तो मैं कुछ लिख ही पाया और न ही कुछ पढ़ पाया। 2005 से 2010 तक का यह समय साहित्यिक जीवन में ढेर सारा खालीपन छोड़ गया था। फिर वह दिन भी आया जब एक बार फिर से लोक साहित्यकार व लघुकथाकार कृष्ण चंद्र महादेविया जी से जुड़ाव हुआ। उन्होंने मुझे दोबारा लिखने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद हमारी बैठकें लगातार सुरेश सेन निशांत जी के घर पर होने लगी थीं।
निशांत जी उस समय कविता का एक चर्चित नाम बन चुके थे। निशांत जी के पास देशभर से बहुत सारी साहित्यिक पत्रिकाएं पहुंचती थीं। हिमाचल के बाहर से निकलने वाली कुछ पत्रिकाओं को पहले से जरूर जानता था, लेकिन बहुत सारी ऐसी थीं जिन्हे बेहतर साहित्य की समझ के लिए पढ़ना बहुत जरूरी था। निशांत जी ने हमें इन पत्रिकाओं के साथ जोड़ा। इन पत्रिकाओं को पढ़कर मेरे जैसे विज्ञान के विद्यार्थी की साहित्य की समझ बनती गई। पिछले काफी अंतराल के बाद इस बार का मेरा लेखन मुख्यतः कविताएं, बाल कहानियां और फीचर लेखन था। अपने बच्चे छोटे होने के कारण प्रौढ़ कहानियों पर जरा भी समय न दे पाया और इस बार ये कहानियां बिल्कुल छूटती चली गईं। यदि कविताओं की बात करें तो उस वक्त मेरी कविताएं देशभर की कई बेहतरीन पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही थीं और बाल कहानियां अपनी मौज में थीं। महादेविया जी को लगा कि अब तक मेरी कविता की किताब आ जानी चाहिए। उनके बार-बार कहने पर कविता की किताब पर काम शुरू किया और वर्ष 2015 में मेरी पहली कविता की किताब ‘किनारे की चट्टान’ बोधि प्रकाशन, जयपुर, राजस्थान से छपकर आ गई। पहली बार जब अपनी यह किताब हाथ में ली तो जो सुकून का एहसास मुझे हुआ, वह मेरे लिए अनमोल था। अपने शब्दों को एक किताब के रूप में पाकर मेरे लिए कई मायनों में बहुत सुखद था। हिंदी साहित्य की दुनिया में अब मैं भी अपनी पहली किताब के साथ खड़ा था। किताब को देशभर से पाठकों का अपार स्नेह मिला और ‘किनारे की चट्टान’ चर्चा में रही।
इस किताब में सम्मिलित कुल 41 कविताएं जीवन के उन खट्टे-मीठे, अच्छे-बुरे अब तक के सारे अनुभवों का निचोड़ है जिसे मैंने जिया। पुस्तक में बहुत से स्थानिक शब्दों को भी अपनी कविता में शामिल करने का प्रयास किया है। ‘किनारे की चट्टान’ पुस्तक पर देशभर के बहुत से आलोचकों व लेखकों ने अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियां लिखी। उनमें से कुछ अंश यहां दे रहा हूं। प्रख्यात आलोचक और कवि डा. राहुल के अनुसार- ‘पिछले दो दशक के नए साहित्य-सर्जकों और उनके सृजन को देखता हूं तो उनके बीच कवि पवन चौहान अपना एक नया स्वरूप एवं शिल्प सौंदर्य लिए पृथक पहचान कायम करता है। उनका सद्य प्रकाशित कविता संग्रह ‘किनारे की चट्टान’ पढ़कर फक्र महसूस होता है। इन कविताओं की तासीर भले ही ठंडी हो, लेकिन भीतर ही भीतर चट्टान की कठोरता और गर्माहट है। कहीं-कहीं ऊर्जा के कण चमक पैदा करते हैं और प्रबुद्ध पाठकों की चेतना को झकझोरने की पूरी क्षमता रखते हैं। इसमें शब्द-द्रव्य पदार्थ भाव-स्वभाव संस्कारबोध बन गया है। दरअसल, किसी कविता के काल के अनंतपथ पर कवि के अग्रसर होने के कारणों पर विचार-विश्लेषण करना अर्थपूर्ण नहीं, उसमें जीवन की जमीन की असली आवाज विशेष महत्त्व रखता है।
यही इस कृति का प्रतिपाद्य भी है। इसमें संग्रहीत कविताएं अपने प्रभाव, स्वभाव, संस्कार में मानवीय संबंधों-संदर्भों से अनुस्यूत हैं।’ प्रसिद्ध कवि जयप्रकाश मानस कहते हैं-‘पवन चौहान गांव से हैं, पर नित नए पायदान पार करते हुए लोकराग के कवि हैं। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपते चले जा रहे हैं। पेशे से हिमाचल में शिक्षक, मन से पूरे कवि।’ वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी के कथनानुसार- ‘चौहान की कविताएं हमारा ध्यान खींचती हैं। वह एक संवेदनशील कवि हैं। यह जानकर कुछ को अचरज होगा कि चौहान एमएससी हैं और मैथ्स के अध्यापक हैं। उनकी कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। वे कहानी भी लिखते हैं। वे कविता लेखन के लिए जीवन की अर्थवत्ता से जोड़ते हैं। उसके बिना जैसे जीवन अर्थवान नहीं है। यह बड़ी बात है। उनकी कविता ने अपना पथ खोज लिया है। चौहान उसे आगे ले जाते रहेंगे, ऐसी उम्मीद है।’ कविताओं में एक सुखद बात यह भी रही कि इनका नेपाली, पंजाबी, उडि़या, तेलगू में अनुवाद भी हुआ। कविता के साथ-साथ उस समय मेरी बाल कहानियां भी देशभर की तमाम बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं।
इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2018 विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली में मेरी बाल कहानियों की किताब ‘भोलू भालू सुधर गया’ शीर्षक से बोधि प्रकाशन से आई। इस पुस्तक में कुल 15 बाल कहानियां संकलित हैं जो बालमन के विभिन्न पहलुओं को छूती हुई बच्चों की मासूमियत, उनके भोलेपन और निश्छल भाव की बात करती हैं। इस पुस्तक को जहां हमारे नन्हें पाठकों ने बड़े चाव से पढ़ा, वहीं इसे हमारे बड़े पाठकवर्ग से भी खूब सराहना मिली। बाल कहानियों में मेरे लिए विशेष यह रहा कि मेरी बाल कहानी हिमाचल के साथ-साथ महाराष्ट्र के पाठ्यक्रम का भी हिस्सा बनी।
इसमें सुखद बात यह रही कि जिन बच्चों के लिए हम लिखते हैं वह रचना सीधे ही उन लाखों बच्चों के स्कूल बैग में स्वतः ही पहुंच गई। इसके अलावा लेखन में पर्यटन मेरा मनपसंद विषय रहा है जिस पर गाहे-बगाहे कलम बराबर चलती रहती है। मुख्य रूप से बात जब कविता पर हो रही है तो मैं इतना ही कहूंगा कि ‘किनारे की चट्टान’ के आ जाने से कविता के प्रति मेरी जिम्मेवारी और बढ़ जाती है।
कविता को मुझे अब और तसल्ली तथा गहराई से समझना है। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा अध्ययन मुझे कविता के व्याकरण की समझ के साथ अन्य विधा को भी बेहतर रचने में मेरा साथ देगा। साहित्य के इस अथाह सागर में मैंने भी कुछ शब्दों को जोड़ा है। मैं कहां तक अपने लेखन के साथ न्याय कर पाया हूं, इसका निर्णय पाठक करेंगे। ‘दिव्य हिमाचल’ के इस पन्ने के माध्यम से मैं अपने उन सभी मित्रों का तहेदिल से आभारी हूं जिनकी हिंदी साहित्य के प्रति सकारात्मकता हमेशा मेरा मार्गदर्शन करती है। मैं मंडी जिला के सुंदरनगर में गांव महादेव का निवासी हूं और मेरा जन्म तीन जुलाई 1978 को हुआ था। कई साहित्यिक संस्थाओं ने मुझे साहित्य लेखन के लिए सम्मानित भी किया है। भविष्य में साहित्य पर और काम करने की इच्छा है।
साहित्य संवाद
जुड़ने के लिए 94181-92111 या 94183-30142 पर संपर्क करें
(सीरीज में कोई भी लेखक खुद अपनी किताब का विवेचन कर सकता है। यहां दिए मोबाइल नंबर्स पर संपर्क करें।)
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