नशे के मूल पर हो प्रहार

By: Feb 5th, 2019 12:04 am

सत्येंद्र गौतम

धर्मशाला

वर्तमान में हमें किसी शत्रु देश से इतना खतरा नहीं है, जितना देश में पनप रहे नशे के दानव से है। नशे के सौदागरों के लिए भी भारत पैसे कमाने का सर्वोत्तम स्थान है, क्योंकि भारत विश्व में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ युवा देशों में से एक है। अगर यह युवा शक्ति संगठित होकर उन्नति की राह पर आगे बढ़े, तो भारत विश्व गुरु की भूमिका में होगा और अगर इसी युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट कर दिया जाए, तो इसका परिणाम कितना भयंकर होगा, इसका आकलन करना भी असंभव है। देश की रक्षा और नेतृत्व कौन करेगा, ऐसे प्रश्न भी पैदा होंगे, परंतु हम समग्र दोष शत्रु देशों और नशा माफिया को नहीं दे सकते। युवाओं को नशे से बचाने में हमारी क्या तैयारी है, यह भी महत्त्वपूर्ण है। क्या सरकार की ओर से प्रयास हो रहे हैं? हिमाचल ने कड़े कानून बनाते हुए नशे की हर मात्रा को गैर जमानती बना दिया है, परंतु इसके बावजूद नशा तस्करों के पकड़े जाने और बच्चों को नशे में झूमते देखा जा सकता है। ऐसी अनियंत्रित स्थिति में ये कमियां सामाजिक, पारिवारिक या शैक्षणिक परिवेश में कहां हैं, यह विश्लेषण होना चाहिए। बच्चों को अधिक आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त है। यह स्वतंत्रता किस सीमा तक होनी चाहिए, इसका आकलन व नियंत्रण करने में जहां अभिभावक चूक जाते हैं, वहां बच्चे फिसल जाते हैं। अभिभावकों के साथ इसके लिए हमारी शिक्षा प्रणाली व नीति निर्माता दोषी हैं। व्यावसायिक शिक्षा व्यवस्था के मॉडल पर काम करके हमने पैसे को शिक्षा के साथ इस सीमा तक जोड़ दिया है कि हम नैतिक शिक्षा के मूल्यों को ही भूल गए हैं। मानव जीवन और मूल्यों का महत्त्व समझाने में वर्तमान शिक्षा प्रणाली असमर्थ है। अतः आवश्यक है कि परिवार, परिवेश और शिक्षा पद्धति को सही किया जाए। अभिभावकों को बच्चों को आर्थिक स्वतंत्रता के साथ समय भी देना चाहिए। उनसे नशे के दुष्प्रभाव की ही नहीं, बच्चों को नशे के सौदागर कैसे जाल में फंसाते हैं, उसकी भी चर्चा करें। बच्चों के मन-मस्तिष्क में नशे के दुष्प्रभावों के प्रति चेतना इस उम्र में जगानी चाहिए। वांछित परिणाम के लिए उन्हें भावप्रद रूप से नैतिक व जीवन मूल्यों पर आधारित पाठ्यक्रम के अंतर्गत शिक्षा देनी पड़ेगी।


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