पर्वतारोही को चाहिए प्रायोजक

By: Feb 22nd, 2019 12:07 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

हिमाचल प्रदेश से पहली बार एवरेस्ट फतह करने वालों में डिकी डोलमा, बलदेव कंवर व राधा देवी आदि पर्वतारोहियों के लिए उस समय पूरा खर्चा भारतीय पर्वतारोहण संस्थान ने उठाया था। इस समय हिमाचल प्रदेश में कई बड़े घराने अपने व्यवसाय चला रहे हैं, जिनमें  करोड़ों रुपए का लाभ होता है। खेलों के लिए तो सीएसआई के अंतर्गत दो प्रतिशत राशि दान में दी जा सकती है। मगर साहसिक खेलों में यह प्रावधान न होने के कारण डा. ललित जैसे जुनूनी लोगों को धन की कमी के कारण अपने लक्ष्य में देरी का सामना करना पड़ता है…

सेब के बागानों के बीच में थानाधार से एक किशोर धौलाधार व किन्नर कैलाश की बर्फ से लदी चोटियों को जब-जब देखता था, तो सोचा करता था कि मैं कब वहां पहुंचूंगा। स्कूल पहुंचने पर वालीबाल खेल को अपनाया और राष्ट्रीय स्तर तक हिमाचल प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व किया। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से पहले शारीरिक शिक्षा में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की, फिर पीएचडी की उपाधि पाई। राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान से प्रशिक्षक का कोर्स पास कर वालीबाल प्रशिक्षक बने, परंतु डा. ललित मोहन ने अपना करियर पर्वतारोहण जैसे साहसिक व रोमांच की खेल में तलाशा। 2008 में गढ़वाल के माउंट पंतोपंथ की 7075 मीटर ऊंचाई को पार करने के बाद 2009 में माउंट देववन 6855 व माउंट कोमेट 7756 मीटर ऊंची गढ़वाली चोटियों को फतह किया। मई-जून, 2010 में आईएमएफ चढ़ाई अभियान में भाग लिया। मई-जून, 2015 में आईएमएफ चढ़ाई अभियान में भाग लिया। नीलकंठ 6597 मीटर सितंबर, 2012 आईएमएफ अभियान केमेट 7756 मीटर। मई-जून, 2015 आईएमएफ अभियान नीलकंठ 6597 मीटर अगस्त, 2015 आईएमएफ-ओएनजीसी के स्पीति में क्लीनिंग एक्स पी डिसन बतौर लीडर भाग लिया। अक्तूबर, 2015 आईएमएफ-ओएनजीसी माउंट एवरेस्ट बेस कैंप के लिए ट्रेनिंग व पंतोपंथ 7075 मीटर। मई-जून, 2014 आईएमएफ चढ़ाई अभियान लाटू धूरा 6392 मीटर, 2013 भारतीय सेना के सियाचिन ग्लेशियर अभियान में भाग लिया। सितंबर-अक्तूबर, 2017 आईएमएफ-ओएनजीसी प्री कंचनजंगा पर्वतारोहण अभियान में भाग लिया। 2018 में अन-नेम्ड पीक 6066 मीटर त्रिशूल 7120 मीटर को नापा तथा क्लीनिंग एक्स पी डिसन में डिप्टी लीडर के रूप में भाग लिया। इस समय डा. ललित मोहन 2019 के एवरेस्ट अभियान की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए लगने वाले कडीसिनिंग कैंप तथा अन्य खर्चों के लिए इस समय इस पर्वतारोही को प्रायोजकों की तलाश है। पहाड़ की संतानों के लिए हिमाचल में हमेशा से ही धन तथा सुविधाओं की कमी रही है।

बर्फ की खेलों में बहुत महंगे उपकरण व कपड़ों की जरूरत होती है। हर बार शीतकालीन ओलंपिक खेलों से भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले शिवा केशवन को भी कई बार प्रायोजकों की कमी खलती रही है। एवरेस्ट संसार की सबसे ऊंची चोटी है। इस पर चढ़ने के लिए कई महीनों की तैयारी के साथ साजो-सामान पर लगभग तीस लाख रुपए एक पर्वतारोही पर खर्च हो जाते हैं। किसी भी साधारण परिवार के बच्चे के लिए इतनी राशि बहुत अधिक है। हिमाचल प्रदेश से पहली बार एवरेस्ट फतह करने वालों में डिकी डोलमा, बलदेव कंवर व राधा देवी आदि पर्वतारोहियों के लिए उस समय पूरा खर्चा भारतीय पर्वतारोहण संस्थान ने उठाया था। इस समय हिमाचल प्रदेश में कई बड़े घराने अपने व्यवसाय चला रहे हैं, जिनमें  करोड़ों रुपए का लाभ होता है। खेलों के लिए तो सीएसआई के अंतर्गत दो प्रतिशत राशि दान में दी जा सकती है। मगर साहसिक खेलों में यह प्रावधान न होने के कारण डा. ललित जैसे जुनूनी लोगों को धन की कमी के कारण अपने लक्ष्य में देरी का सामना करना पड़ता है। फिर भी इस पर्वतारोही ने कीपिंग हिमालय क्लीन एंड ग्रीन के लिए कई अभियान किए हैं। जंगली दुर्लभ जड़ी-बूटियों हिमालय के दुर्लभ फूलों के साथ हिमालय में विचरने वाले अद्भुत पशु व पक्षियों के चित्रों को भी डा. ललित ने अपने कैमरे में कैद किया है। इसे वह किताब के रूप में सामने लाने वाले हैं। अपनी फिटनेस का स्तर बनाए रखने के लिए ललित मोहन प्रतिदिन पहाड़ी रास्तों में चार-पांच घंटे मीलों पैदल चलना पड़ता है। डा. ललित मोहन शारीरिक शिक्षा में अपनी सबसे लंबी पढ़ाई पूरी कर वालीबाल प्रशिक्षक भी हैं, वह प्राध्याक की नौकरी भी कर चुके हैं, मगर बर्फ की चोटियों के आकर्षण में वह शिक्षण जैसे अच्छे मगर आरामदायक पेशे को छोड़कर अपने पैशन पर्वतारोहण अभियान को दे रहे हैं। वर्षों वालीबाल के लिए किशोर व युवा अवस्था में की गई ट्रेनिंग का भी पर्वतारोहण में काफी लाभ रहा है।

पर्वतारोहण में जहां कम आक्सीजन में अधिकतर कठिन कोण पर चढ़ाई करनी होती है तो उसके लिए विशेष प्रकार की फिटनेस की जरूरत होती है। इसमें इडोरेंस के लिए जहां अधिक काम करना पड़ता है, वहीं पर मजबूत जोड़ों की भी बहुत अधिक जरूरत होती है। अच्छी खुराक तथा नियमित दिनचर्या में रहना पड़ता है। अपने को अनुकूलन करने के लिए अलग-अलग जगह अपने प्रशिक्षण शिविर लगाने पड़ते हैं। अधिकतर माइनस से नीचे कई डिग्री पर जब रहना व चलना होता है तो उसके लिए वैसी ही जगह जाना पड़ता है। हाल ही में विंटर ट्रेनिंग के लिए लेह लद्दाख में पांच दिसंबर, 2018 से 24 जनवरी, 2019 तक एक प्रशिक्षण कार्यक्रम किया, जिसमें माइनस 30 डिग्री तापमान पर रहना और काम करना था। एवरेस्ट को दो रास्तों से चढ़ा जाता है-एक चीन की तरफ से है, जिसे उत्तर वाला ट्रैक कहते हैं। आज तक जो भी हिमाचली एवरेस्ट चढ़े हैं, वे दक्षिणी ट्रैक से चढ़े हैं। डा. ललित  की योजना उत्तर दिशा में तिब्बत लाहसा की ओर से चढ़ने की है।

इस कालम के माध्यम से हर प्रतिभाशाली हिमाचली संतानों की पैरवी की है। आज भी हम हिमाचल के समर्थ नागरिकों से आशा करते हैं कि वे डा. ललित मोहन के एवरेस्ट अभियान के लिए प्रायोजक के रूप में अकेले या  कुछ मिलकर मदद करेंगे, ताकि डा. ललित उत्तरी ट्रैक से एवरेस्ट फतह करने वाला पहला हिमाचली हो सके।

ई-मेल : bhupindersinghhmr@gmail.com


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