ममता का सियासी नाटक

By: Feb 9th, 2019 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

देखना यह है कि सैयद अहमद शाह गिलानी और विजय माल्या को महागठबंधन का हिस्सा बनने का निमंत्रण कब मिलता है। ‘विभुक्षति किम न करोति पापम’, अर्थात भूखा आदमी कौन सा पाप नहीं करता? सत्ता की भूख का शिकार आदमी ओम प्रकाश चौटाला बन जाता है, लालू प्रसाद यादव बन जाता है। सत्ता जन सेवा के लिए होनी चाहिए, न कि लोगों का गला घोंटकर अपना घर भरने के लिए। सत्ता पाने की भूख ने गठबंधन को महागठबंधन में बदल दिया है…

हरियाणा के जींद उपचुनाव में सोनिया कांग्रेस की हुई पराजय से राष्ट्रवादी शक्तियों के विरोध में महागठबंधन के प्रयास कर रहे राजनीतिक दलों में खलबली मचना स्वाभाविक ही था, लेकिन सबसे ज्यादा चिंता ममता बनर्जी को हुई। उसका भी कारण है, सभी जिंदा-मुर्दा राजनीतिक दलों को ढाल बनाकर ममता, बंगाल से चालीस सीटें जीत कर प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्याशी होने की दावेदार बनने की आकांक्षा पाल रही थीं, लेकिन एक तो महागठबंधन का मामला जम नहीं पा रहा था, दूसरा मायावती ममता से भी ज्यादा कद्दावर उम्मीदवार बनती जा रही थी। हरियाणा के चुनाव में भाजपा की जीत ने महागठबंधन के लिए शुरू में ही अपशकुन कर दिया था। सबसे बढ़कर पश्चिमी बंगाल में भाजपा के प्रति बढ़ता जनउत्साह सभी को आश्चर्यचकित कर रहा है। ममता सरकार भाजपा को जनसभाएं करने की आज्ञा नहीं दे रही है। भाजपा की प्रस्तावित रथयात्रा का मामला तो उच्चतम न्यायालय तक गया। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक का जहाज बंगाल में उतरने नहीं दिया, लेकिन इसके बावजूद बंगाल में भारतीय जन सभाओं में इतनी ज्यादा भीड़ जुट रही है कि पिछले दिनों उत्तरी चौबीस परगना के ठाकुरनगर में  भगदड़ के भय से नरेंद्र मोदी को चौदह मिनट में ही अपना भाषण समाप्त कर देना पड़ा। निश्चय ही ममता सरकार की जमीन हिलने लगी है। ममता ने अपनी जमीन बचाने के लिए प्रदेश में संवैधानिक संकट ही खड़ा कर दिया। पुलिस के एक कर्मचारी राजीव, जो आजकल कोलकाता के पुलिस कमिश्नर हैं, के खिलाफ शारदा चिटफंड मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच चल रही है।

इस घोटाले में अनेक प्रांतों के लाखों लोगों के करोड़ों अरबों रुपए कुछ शातिर लोग डकार गए। इनमें राजनीतिज्ञों से लेकर नौकरशाह तक शामिल हैं, दलालों की भूमिका तो है ही। जिन लोगों की खून-पसीने की कमाई ये लोग खा गए, उनकी हालत का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय ने स्वयं इस घोटाले की जांच के आदेश दिए। उस वक्त भाजपा की सरकार नहीं थी, लेकिन न्यायपालिका के दबाव के चलते तत्कालीन सरकार को भी जांच के आदेश करने पड़े। कई सांसद भी गिरफ्तार किए गए। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गरीबों का पैसा खा जाने वालों की जड़ें कितनी गहरी थीं। इस जांच के घेरे में कोलकाता के पुलिस प्रमुख राजीव बाबू भी आ गए। सीबीआई उन्हें अनेक बार जांच में सहयोग करने और पूछताछ के लिए हाजिर होने के लिए कहती रही, लेकिन राजीव बाबू ठहरे मुख्यमंत्री ममता दीदी के खासुलखास। वे इस प्रकार की जांच को अपमानजनक मानते हैं। अपना-अपना रुतबा है, लेकिन ममता दीदी तो उससे भी एक कदम आगे हैं। वह इस जांच को पूरे बंगाल का ही अपमान मानती हैं। उनके लिहाज से लाखों बंगालियों का पैसा डकार जाना तृणमूल कांग्रेस का घरेलू मसला है। यदि वह पैसा डकार जाने वालों के पेट से निकलवाने की कोशिश की जाए, उससे संविधान का अपमान होता है। यही कारण था कि जब सीबीआई की टीम कोलकाता में राजीव बाबू से पूछताछ के लिए पहुंची, तो राजीव बाबू को ही साथ लेकर ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। इतना ही नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच को रुकवाने के लिए प्रदेश के पुलिस अधिकारी भी ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठ गए। ममता बनर्जी प्रदेश में अपने लिए सहानुभूति बटोरने के लिए संविधान की धज्जियां उड़ाने से भी पीछे नहीं हटीं। वह प्रदेश में स्वयं अराजकता फैलाकर जनता का ध्यान बंटाना चाहती हैं, लेकिन राहुल गांधी के लिए इन सब चीजों का कोई अर्थ नहीं हैं। वह टुकड़े गैंग में भी, भारत के टुकड़े करने वालों के साथ खड़े होते हैं और देश में संवैधानिक संकट पैदा कर रही ममता बनर्जी के साथ भी उतने ही उत्साह से खड़े होते हैं। उनको भीड़ चाहिए, चाहे वह माओवादियों की हो या फिर अर्बन नक्सलवादियों की। वह भीड़ में अपनी पार्टी के लिए बित्ते भर जमीन तलाश रहे हैं। ममता को बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकना है। राहुल गांधी को अपने खानदान से छिन गई गद्दी पर फिर से अपना कलेम स्थापित करना है। केजरीवाल को जिस उद्देश्य से राजनीति की चौसर पर उतारा था,  वह उद्देश्य पूरा करके अपने आकाओं को दे नहीं सके, इसलिए भारत की राजनीति में अनाथ हो चुके हैं। इसलिए उन्हें जहां भी कहीं आश्रयस्थल की मृगमरीचिका दिखाई देती है, उसी ओर भागते नजर आते हैं। सीपीआई और सीपीएम भारत की पावन धरती में अप्रासंगिक हो चुके हैं।

उनके लिए अब विचारधारा ही अप्रासंगिक हो गई है। उनके लिए अब मसला केवल इतना ही है कि किसी तरह लोकसभा में चंद सीटें मिल जाएं। यदि ऐसा न हुआ, तो आगे से गठबंधन के नाम पर निराश और अप्रासंगिक हो चुके राजनीतिज्ञों का क्लब उन्हें चर्चा के लिए भी आमंत्रित करना बंद कर देगा। राजनीति के वीयाबानों में भटक रही इन तथाकथित नेताओं की टोली अपने अस्तित्व के लिए किसी सीमा तक भी जा सकती है, ममता बनर्जी का हाल ही का नाटक इसका एक उदाहरण है। इनके लिए अपने अस्तित्व रक्षा के लिए देश-विदेश की सीमाएं भी समाप्त हो गई हैं। अब देखना केवल इतना ही है कि सैयद अहमद शाह गिलानी और विजय माल्या को महागठबंधन का हिस्सा बनने का निमंत्रण कब मिलता है। ‘विभुक्षति किम न करोति पापम’, अर्थात भूखा आदमी कौन सा पाप नहीं करता? सत्ता की भूख का शिकार आदमी ओम प्रकाश चौटाला बन जाता है, लालू प्रसाद यादव बन जाता है। सत्ता जन सेवा के लिए होनी चाहिए, न कि लोगों का गला घोंटकर अपना घर भरने के लिए। सत्ता पाने की भूख ने गठबंधन को महागठबंधन में बदल दिया है।

कबीर ने कभी कहा था, जो घर फूंके आपने वह चले हमारे साथ, लेकिन इकट्ठे होकर वे चल रहे हैं, जो दूसरे का घर फूंक कर अपना घर भरना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी दूसरों का घर फूंकने वाले इन्हीं अपराधियों की गर्दन पकड़ना चाहते हैं, लेकिन उसी समय ममता के साथ न जाने ऐसे कितने राजनीतिज्ञ आकर खड़े हो जाते हैं, लेकिन फिलहाल उच्चतम न्यायालय ने साफ कर दिया है कि राजीव बाबू से पूछताछ से संविधान का अपमान नहीं होगा, इसलिए वह शिलांग में जांच का सामना करने के लिए पहुंचें। तब तक ममता और उनके गठबंधन वाले क्या करते हैं, इसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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