लोकतंत्र पर छींटाकशी

By: Feb 16th, 2019 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

जाहिर है राष्ट्रवादी शक्तियों को सत्ता केंद्र में देखकर उन शक्तियों में घबराहट मचती जो अभी तक केंद्र में नियंत्रण कर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत के विसंस्कृतिकरण अभियान में लगी हुई थी। इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार को अपदस्थ करने के लिए इस टोले ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए…

पिछले दिनों लंदन में किसी सैयद शुजा ने लंदन की एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि हिंदोस्तान में मतदान के लिए प्रयुक्त होने वाली ईवीएम मशीनों को मनचाहे मतदान के लिए प्रयोग किया जा सकता है और 2014 के संसदीय चुनावों में ऐसा ही हुआ था। यह सैयद शुजा अमरीका में रहता है और भारत के संसदीय चुनावों को लांछित करने के लिए प्रेस कान्फ्रेंस के लिए उसने लंदन का चुनाव किया। इस कान्फ्रेंस को लंदन के स्थानीय मीडिया ने तो बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं दिया, लेकिन इधर अपने खांटी देशी मीडिया की सांस फूल गई।  कुछ साल पहले जब गुलाम नबी फाई जम्मू-कश्मीर को लेकर अमरीका में विचार-गोष्ठियों का आयोजन करता था और लगभग कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का पक्ष ही प्रस्तुत करता था, तो अमरीकी मीडिया तो उसको उतना नहीं छापता था, लेकिन भारतीय मीडिया उन विचार-गोष्ठियों की महत्ता से अभिभूत होकर अपनी सांस फुला लेता था। अब वह गुलाम नबी फाई जेल में है, क्योंकि बाद में पता चला कि वह विदेशी शक्तियों का दलाल था, लेकिन भारतीय मीडिया के लिए उसके शब्द इसलिए मायने रखते थे, क्योंकि कश्मीर को लेकर वह सारा बकवास अमरीका में बैठकर  करता था।  यही स्थिति सैयद शुजा वाले मामले में हो रही है। सैयद लंदन से बोल रहा है तो उसकी बात का वजन हमारे मीडिया के लिए इतना बढ़ गया कि उसे ढोते हुए वह हकलान हो रहा है।  उधर सैयद शुजा लंदन में सक्रिय हुआ, इधर सोनिया गांधी के बेटे से लेकर ममता बनर्जी बरास्ता अन्य विपक्षी दलों के नेता सैयद शुजा की पालकी ढोने में मशगूल हो गए।

आम भारतीय के लिए यह मनोरंजन से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता था, लेकिन फिर भी यह रहस्य जानने की जिज्ञासा तो बनी हुई ही थी कि लंदन में बैठकर भारत के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए आखिर यह सारा एपिसोड कौन चला रहा है? इसके बाद चौंकाने वाला खुलासा हुआ। पता चला कपिल सिब्बल भी उस समय इंग्लैंड में ही थे। जाहिर था इस नई जानकारी से महागठबंधन के शेयर होल्डर को छोड़ कर बाकी सभी राष्ट्रवादी शक्तियों का हतप्रभ रह जाना स्वाभाविक ही था और ऐसा हुआ भी। तब कपिल सिब्बल की ओर से एक स्पष्टीकरण आया। उनसे यह स्पष्टीकरण किसी ने मांगा नहीं था। यह स्पष्टीकरण उन्होंने स्वयं ही दिया। ऐसा करने की उन्हें जरूरत क्यों पड़ी, यह तो सिब्बल ही बेहतर जानते होंगे। इस स्पष्टीकरण में उन्होंने कहा कि वह उस समय इंग्लैंड में अपने किसी व्यक्तिगत काम के लिए गए थे, उनका सैयद शुजा के मामले से कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर इसका खंडन नहीं किया कि सैयद शुजा से यह नाटक करवाने में उसका कोई हाथ नहीं है। प्रश्न है कि पाकिस्तान के इन दलालों के साथ भारतीयों के नाम कैसे और कहां से जुड़ते हैं? इसके पीछे रहस्य क्या है? कपिल सिब्बल की ही बात की जाए, वह हर उस जगह मौजूद हो सकते हैं, जहां की हवा भी रहस्यमयी लगती है। कुछ महीने पहले कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि अयोध्या  में राम मंदिर के मामले की सुनवाई 2019 के चुनावों के बाद की जाए। उस समय लगता था कि यह सोनिया कांग्रेस की या कपिल सिब्बल की राजनीतिक लाभ-हानि को देखते हुए अपनी इच्छा हो सकती है, लेकिन उच्चतम न्यायालय भला इतने महत्त्वपूर्ण मामले को टाल कैसे सकता है? उस समय न्यायालय ने ऐसा संकेत दिया भी, लेकिन कपिल सिब्बल और सोनिया कांग्रेस को दाद देनी पड़ेगी कि सुनवाई सचमुच टलती रही और अब लगता है कि मामला चुनावों के बाद तक जा सकता है। कपिल सिब्बल और सोनिया कांग्रेस यह सब कुछ कैसे कर पाते हैं? राम मंदिर के निर्माण कार्य में पेचीदगियां पैदा करके वे हिंदोस्तान की फिजा क्यों खराब करना चाहते हैं? इससे पहले भी सोनिया कांग्रेस एक बार पाकिस्तान के चक्कर में फंस चुकी है। सोनिया गांधी के परिवार या उनकी कांग्रेस का मकसद किसी भी तरीके से राष्ट्रवादी सरकार को घेरना है, चाहे उसके लिए किसी की भी सहायता क्यों न लेनी पड़े। भारत में राष्ट्रवादी सरकार को बनने ही न देना, यदि बन जाए तो उसकी नैतिक स्थापना को ही प्रश्नांकित करने के इस  पूरे अभियान में सोनिया कांग्रेस तो मात्र एक पुर्जा है। इस मशीन के और भी कई यंत्र एक साथ सक्रिय हैं। इस अभियान का पहला हिस्सा था, किसी भी तरह भारत में राष्ट्रवादी सरकार को बनने ही न देना। 2013 के आसपास ही यह स्पष्ट होने लगा था कि भ्रष्टाचार के घोटालों में आकंठ डूब चुकी सोनिया कांग्रेस से देश के लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। सोनिया कांग्रेस की सारी चतुराई राबर्ट वाड्रा का व्यवसाय बढ़ाने में ही लग रही है। देश की राजनीति में एक शून्य उत्पन्न होता जा रहा था। तब यह लगने लगा था कि इस शून्य को, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में देश राष्ट्रवादी शक्तियां भर सकती हैं।

जाहिर है कुछ देशी-विदेशी रणनीतिकारों को लगा होगा कि किसी भी स्थिति में भारत की बागडोर देश की राष्ट्रवादी ताकतों के हाथ में नहीं आनी चाहिए। इसी रणनीति में से आम आदमी पार्टी, जादूगर की छड़ी को घुमाते हुए, देश की राजनीति में हाजिर की गई। एक मेंढक में हवा भरकर उसे बैल दिखाने की जादूगरी की गई। मीडिया की मदद से यह वातावरण बनाया गया कि सोनिया कांग्रेस से निराश भारत की जनता अब आशा के लिए आम आदमी पार्टी की ओर टकटकी लगाए देख रही है। केजरीवाल को वाराणसी में नरेंद्र मोदी के मुकाबले उतार कर इस भ्रम को विश्वसनीय बनाने का प्रयास किया गया, लेकिन जल्दी ही भारतीयों को पता चल गया कि यह सारी रणनीति देश में राष्ट्रवादी शक्तियों के अभियान को रोकने के लिए ही थी। इसलिए आम आदमी पार्टी अपनी जड़ें नहीं जमा सकी और राष्ट्रवादी शक्तियों के विजय अभियान को रोका नहीं जा सका।

जाहिर है राष्ट्रवादी शक्तियों को सत्ता केंद्र में देखकर उन शक्तियों में घबराहट मचती जो अभी तक केंद्र में नियंत्रण कर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत के विसंस्कृतिकरण अभियान में लगी हुई थी। इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार को अपदस्थ करने के लिए इस टोले ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए। हद तो तब हो गई जब यह टोले दिल्ली में टुकड़े गैंग के साथ भी जाकर मिल गया। यह गैंग सार्वजनिक रूप से नारे लगा रहा था, भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार, इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह। राष्ट्रवादी शक्तियों को अपदस्थ करने  के लिए टुकड़े गैंग और उसके राजनीतिक साथी पहले तो हिंदोस्तान के अंदर ही अपनी गतिविधियां चला रहे थे, लेकिन अब जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे घबराहट में उनके विदेशी संगी-साथी भी अपने बुरके उतार कर मैदान में निकल आए हैं।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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