शिमला पहाड़ी क्षेत्र में क्रांति

By: Feb 13th, 2019 12:04 am

कसौली की सैनिक छावनियों के सैनिकों को अंबाला की ओर कूच करने के आदेश दिए और स्वयं भी आतंक व हड़बड़ाहट में अंबाला की ओर रवाना हुआ। देशी सेना ने अपने सेनापति के आदेश का पालन नहीं किया। गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से क्रोधित सेना ने अंग्रेज अफसरों का  घेराव किया…

गतांक से आगे …

शिमला पहाड़ी क्षेत्र में क्रांति

11 मई, 1857 ई. को मेरठ के भयानक विद्रोह की सूचना गुप्त रूप से शिमला पहुंची। उसी दिन यहां अंबाला से दिल्ली के विद्रोह और कत्लेआम का समाचार भी प्राप्त हुआ। यह समाचार मिलते ही ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ जनरल जॉर्ज एनसन ने जतोग, सपाटू, डगशाई और कसौली की सैनिक छावनियों के सैनिकों को अंबाला की ओर कूच करने के आदेश दिए और स्वयं भी आतंक व हड़बड़ाहट में अंबाला की ओर रवाना हुआ। देशी सेना ने अपने सेनापति के आदेश का पालन नहीं किया। गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से क्रोधित सेना ने अंग्रेज अफसरों का घेराव किया और उन्हें धमकाया। जतोग में तैनात ‘नसीरी सेना’ (गोरखा रेजिमेंट) ने देशी सेना के सूबेदार भीम सिंह के नेतृत्व में जतोग छावनी और खजाने पर कब्जा कर लिया। मेरठ, दिल्ली और जतोग के विद्रोह की खबर सुनकर शिमला के अंग्रेजों में भी आतंक छा गया। लगभग 800 यूरोपीय स्त्री, पुरुष और बच्चे मेजर जनरल निकोलस पैन्नी के निर्देशानुसार पहले चर्च के पास और बाद में शिमला बैंक (वर्तमान ग्रैंड होटल) के आंगन में इकट्ठे हुए। आतंक की इस स्थिति में शिमला के डिप्टी कमिश्नर लॉड विलियम हेय लोगों की उचित सुरक्षा प्रदान न कर सके।  इसी दौरान एक गोरखा सैनिक ने अपनी खुखरी (शस्त्र) से बीच बाजार में एक ब्रिटिश अधिकारी की गर्दन उड़ा दी। इस घटना के पश्चात जतोग की नसीरी बटालियन द्वारा शिमला शहर पर धावा बोलने की आशंका हो गई और शिमला बैंक के पास एकत्रित फिरंगियों में भगदड़ मच गई। सरकारी दफ्तर, दुकानें तथा घर-बार खुले छोड़कर अंग्रेज शिमला से भाग निकले। कुछ फिरंगी मुख्य मार्ग को छोड़कर पगडंडियों से कसौली छावनी की ओर भागे। कुछ डगशाई की सैनिक बैरकों में जाकर चैन की सांस ले सके और कुछ ने जुन्गा के राजमहल में जाकर शरण ली। कुछ अंग्रेज, धामी, कोटी, बलसन और बघाट के देशी शासकों की शरण में जा पहुंचे। कुछ फिरंगियों ने एकांत स्थानों पर बने डाक-बगलों में भूखे-प्यासे भी दिन काटे और कुछ भूख और थकान से मर भी गए। अंग्रेजों की इस कायरता और अराजकता का यह ऐतिहासिक प्रमाण ‘शिमला आतंक’ के समय देखने को मिला। इंग्लैंड के तत्कालीन समाचार-पत्रों में ‘शिमला आतंक’ और ‘शिमला कत्लेआम’ के शीर्षकों के अंतर्गत मई, 1857 ई. के इस अभूतपूर्व आतंक की खबरें सुर्खियों में छपी।  अंग्रेजी समुदाय की आतंकित अवस्था के साथ-साथ सैनिक संगठन में भी अराजकता छा गई। यहां तक कि सैनिक अफसर भी कायरों की भांति जान बचाकर शिमला से भाग निकले। मेजर जनरल गोवंज ने 15 मई, 1857ई. को परिवार सहित राजा ‘जुन्गा’ के पास शरण ली।


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