शिलारू खेल केंद्र का अधूरा सफर

By: Feb 15th, 2019 12:07 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

भारत के धावकों तथा अन्य आक्सीजन वाली खेलों के खिलाडि़यों को ऊंचाई पर प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए यूरोप सहित अन्य ऊंचाई पर स्थित प्रशिक्षण केंद्रों में भेजने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों की विदेशी मुद्रा को खर्च किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में खेलों के लिए जलवायु अमरीका व यूरोप से भी कहीं अधिक अच्छी है। अगर यहां पर प्रशिक्षण केंद्र विकसित होता है, तो जहां देश की विदेशी मुद्रा बचेगी, वहीं पर खिलाडि़यों को अपने देश में अपने खानपान में प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करने का मौका मिलेगा…

अस्सी के दशक में ही शिमला में राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान पटियाला ऊंचाई पर अपना खेल प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने की सोचने लग गया था। राजनीतिक दबाव के चलते समरहिल के नजदीक पोटर हिल्स पर बनने वाला यह केंद्र भारत-तिब्बत सीमा सड़क मार्ग पर शिमला से 50 किलोमीटर दूर नारकंडा से पीछे दस किलोमीटर तथा मतियाना से आगे शिलारू नामक स्थान पर शुरू हुआ। ऊंचाई पर प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने का उद्देश्य खिलाड़ी में अधिक आक्सीजन क्षमता को बढ़ाना प्रमुख होता है। इसके लिए लगभग सात हजार फिट की ऊंचाई होना बहुत ही अधिक लाभदायक होता है। शिमला में तो राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान का केंद्र पहले से ही चल रहा था, बाद में भारतीय खेल प्राधिकरण बनने के बाद राष्ट्रीय क्रीड़ा स्थान का इसमें विलय हो गया, तो फिर शिलारू का प्रशिक्षण केंद्र भारतीय खेल प्राधिकरण के अंतर्गत शुरू हुआ। इस केंद्र पर मध्य व लंबी दूरी के धावकों को प्रशिक्षित करने के लिए विशेष क्षेत्र खेल योजना के अंतर्गत एक खेल छात्रावास चलाया गया। इस छात्रावास में हिमाचल सहित हिमालय क्षेत्र के राज्यों के साथ-साथ सिद्दी समुदाय के खेल में प्रतिभावान कुछ बच्चों को इस खेल छात्रावास में चयनित किया गया। लगभग नौ महीने में धावक शिलारू में रहते और जब यहां बर्फ पड़ जाती, तो इन्हें दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में रखा जाता था। सामाजिक आर्थिक कारणों से यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे धावकों व धाविकाओं में राष्ट्रीय स्तर पर मेडल आते ही सेना, पुलिस, सुरक्षा बलों व रेलवे आदि विभागों में नौकरी प्राप्त कर ली और धीरे-धीरे विशेष क्षेत्र खेल योजना को बंद करना पड़ा। शेष धावकों व धाविकाओं को धर्मशाला व बिलासपुर में भारतीय खेल प्राधिकरण के खेल छात्रावासों में बदल दिया गया।

जब यहां पर विशेष क्षेत्र खेल योजना का छात्रावास बंद हो गया, तो इसके बाद कुछ देर के लिए राष्ट्रीय टीमों के राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर लगने शुरू हो गए। हाकी में जहां दमखम की विशेष जरूरत होती है। यहां पर हाकी के प्रशिक्षण शिविर लगने शुरू हो गए। भारतीय खेल प्राधिकरण ने यहां पर हाकी की प्ले फील्ड एस्ट्रो ट्रर्फ भी बिछा रखा है, मगर एथलेटिक पर प्ले फील्ड बिछना अभी दूर की कौड़ी है। यहां पर अभी पिछले चालीस वर्षों में मैदान तक समतल नहीं हो पाया है। पिछले कुछ वर्षों से यहां पर भारतीय खेल प्राधिकरण सिंथेटिक ट्रैक बिछाने की बात करता रहा है, मगर हालात सबके सामने हैं। भारतीय खेल प्राधिकरण यहां 400 मीटर ट्रैक की एक लेन प्रशिक्षण के लिए बिछाने की बात करता है, तो कभी इसके बीच में 200 मीटर के ट्रैक को बिछाने की बात करता है, मगर यहां पर अभी तक मैदान पर पड़े ल्हासे यूं ही पड़े हैं। अगर इस मिट्टी को उठाकर निचली तरफ मजबूत दीवार लगाकर मैदान को समतल किया जाता है, तो भविष्य में यहां प्रशिक्षण उपयोग के लिए चार-पांच लेन का 400 मीटर ट्रैक बन सकता है। भारत के धावकों तथा अन्य आक्सीजन वाली खेलों के खिलाडि़यों को ऊंचाई पर प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए यूरोप सहित अन्य ऊंचाई पर स्थित प्रशिक्षण केंद्रों में भेजने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों की विदेशी मुद्रा को खर्च किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में खेलों के लिए जलवायु अमरीका व यूरोप से भी कहीं अधिक अच्छी है, अगर यहां पर प्रशिक्षण केंद्र विकसित होता है, तो जहां देश की विदेशी मुद्रा बचेगी, वहीं पर खिलाडि़यों को अपने देश में अपने खानपान में प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करने का मौका मिलेगा।

हिमाचल प्रदेश के खिलाडि़यों को भी यहां पर प्ले एंड पे योजना के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय खिलाडि़यों के साथ प्रशिक्षण का मौका मिलेगा तथा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा भी मिलेगी। हिमाचल प्रदेश के खेल संघों व खेल विभाग को ऐसे प्रशिक्षण शिविर तब यहां आयोजित करने चाहिए, जब यहां पर राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर लगे हों। भारत की मुक्केबाजी, जुडो कुश्ती के साथ-साथ भारोत्तोलन की टीम भी यहां गर्मियों में अपना प्रशिक्षण शिविर लगवाती है। यहां पर सिंथेटिक ट्रैक के साथ-साथ एक अच्छे इंडोर स्टेडियम की भी बहुत जरूरत है। जब इकट्ठे कई खेलों के प्रशिक्षण शिविर लगेंगे, तो यहां पर रहने की सुविधा के लिए छात्रावास में अधिक कमरे भी होने चाहिए। दशकों से बन रहे इस अधूरे प्रशिक्षण केंद्र को अब जल्द से जल्द पूरा कर देना चाहिए। इससे हिमाचल के खिलाडि़यों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा घर-आंगन में मिल जाएगी। हिमाचल सरकार को भी केंद्र सरकार से इस विषय पर बात करनी चाहिए कि भारतीय खेल प्राधिकरण ईमानदारी से इस केंद्र को विकसित करे, ताकि यूरोप व अमरीका में जाकर करोड़ों डालर खर्च होने से बच सकें। इस समय खेलों की कई योजनाएं अधर में ही लटकी पड़ी हैं। अच्छा होगा,इस केंद्र को जल्द से जल्द अति आधुनिक खेल सुविधा से लैस कर देना चाहिए, ताकि यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर हमारे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तिरंगे को ऊपर उठा सकें।

ई-मेल : bhupindersinghhmr@gmail.com

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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