सीबीआई बनाम कोलकाता पुलिस

By: Feb 5th, 2019 12:04 am

कोलकाता में देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई के साथ स्थानीय पुलिस ने जो हाथापाई, धक्कामुक्की की और अफसरों को गिरफ्तार किया, वह बिलकुल अप्रत्याशित और अभूतपूर्व था। स्वतंत्र भारत में कमोबेश यह पहली बार देखने को मिला है। बेशक दलीलें कुछ भी दी जाएं, सियासी कुतर्क किए जाएं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठें या अनशन भी शुरू कर दें, लेकिन यह संवैधानिक संकट की स्थिति है। यह लोकतांत्रिक अराजकता है। सीबीआई को सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिए थे कि करीब 3000 करोड़ रुपए के सारदा चिटफंड घोटाले में जांच करे। शीर्ष अदालत ने 2014 में पश्चिम बंगाल के अलावा ओडिशा और असम की पुलिस को आदेश दिए थे कि वे सीबीआई के साथ जांच में सहयोग करें और घोटाले की सभी जानकारियां सीबीआई को दें। कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को भी जांच एजेंसी ने तीन-चार बार समन भेजे थे, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। एक आईपीएस अधिकारी की औकात संविधान और आईपीसी की धाराओं से बढ़कर नहीं हो सकती। सीबीआई और दूसरी जांच एजेंसियों ने मंत्रियों, सांसदों, नेताओं, पूर्व मंत्रियों और आईएएस अफसरों से भी सवाल-जवाब किए हैं। तो पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने में क्या आपत्तियां हो सकती हैं? मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सार्वजनिक रूप से कमिश्नर की ढाल क्यों बनीं? क्या कुछ छिपाया जा रहा था? कोलकाता पुलिस ने एक और अपराध किया कि सीबीआई जांच टीम को उसका संवैधानिक दायित्व निभाने में पंगा किया, साल्ट लेक के सीबीआई मुख्यालय को घेर लिया गया, सीबीआई अफसरों को धकिया कर जबरन गाड़ी में बिठाया गया। सीबीआई के 5 अफसरों को गिरफ्तार किया गया और अन्य को हिरासत में लिया गया। कानून की किन धाराओं के तहत ऐसा किया गया? यह सरासर संविधान और संघीय ढांचे का उल्लंघन था। लगता है, ममता सरकार और पुलिस को न लोकतंत्र, न केंद्र-राज्य संबंधों, न ही सर्वोच्च न्यायालय और न ही देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी की परवाह है। कोलकाता की पुलिस भी ममता बनर्जी की ‘निजी पुलिस’ नहीं है। ऐसे भारत सरीखे संघीय राष्ट्र की व्यवस्था कैसे चलेगी? गौरतलब यह है कि 2013 में ममता सरकार ने ही इस घोटाले में एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन किया था और राजीव कुमार को ही उसका अध्यक्ष बनाया था। तब घोटाले से जुड़े अहम कागजात, दस्तावेज, रिकॉर्ड आदि गायब हुए थे। आरोप राजीव कुमार पर ही लगे थे। सीबीआई के अंतरिम प्रमुख नागेश्वर राव का कहना है कि उनके खिलाफ सबूत हैं। सबूतों को मिटाने और कानून में बाधा डालने की कोशिश की गई है। पुलिस कमिश्नर ने सभी सबूतों को जब्त कर लिया है। वह दस्तावेजों को सुपुर्द करने में हमारा सहयोग नहीं कर रहे हैं। लिहाजा वह भी घोटाले में वांछित रहे हैं। अब भी सीबीआई की आशंका है कि घोटाले के साक्ष्य, दस्तावेज तबाह किए जा सकते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ही दखल देकर कुछ निर्णय सुना सकती है, लेकिन सीबीआई और पुलिस की भिड़ंत देश और लोकतंत्र की छवि धूमिल कर गई। इस प्रकरण के लिए भी ममता ने प्रधानमंत्री मोदी को खूब कोसा है। हमारी व्यवस्था में सीबीआई प्रधानमंत्री के अधीन ही कार्य करती रही है, लिहाजा एजेंसी की किसी भी कार्रवाई के लिए प्रधानमंत्री को ‘तानाशाह’ करार दिया जाता रहेगा या ऐसे ही अपशब्दों से आरोपित किया जाएगा। ममता के पक्ष में विपक्ष की लामबंदी भी स्वाभाविक है, क्योंकि 2019 के आम चुनाव लगभग सामने हैं। महत्त्वपूर्ण और गंभीर घोटाला है, जिसमें 10 लाख से ज्यादा छोटे निवेशकों और भोली-भाली जनता को ठगा गया। सारदा समूह की एक पूर्व कर्मचारी ने प्रमोटर सुदीप्त सेन के खिलाफ वेतन भुगतान नहीं करने का मामला दायर किया था। इसी मामले में सुदीप्त और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार किया गया था। वे अब भी जेल में हैं। ममता बनर्जी किसी की ढाल क्यों बनें? कानून की स्वतंत्र कार्रवाई होने दें।


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