सैयद शुजा का धारावाहिक

By: Feb 4th, 2019 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

सोनिया गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस को यह पूरा अधिकार है कि वह भारत की राष्ट्रवादी सरकार को चुनावों की लोकतांत्रिक पद्धति से पराजित करे। इस काम के लिए अपने साथ कुछ दूसरे लोगों को भी मिला सकती है, लेकिन मणिशंकर अय्यर और सैयद शुजा का धारावाहिक चलाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है…

पिछले दिनों लंदन में किसी सैयद शुजा ने लंदन की एक प्रेस कान्फें्रस में कहा कि हिंदोस्तान में मतदान के लिए प्रयुक्त होने वाली ईवीएम मशीनों को मनचाहे मतदान के लिए प्रयोग किया जा सकता है और 2014 के संसदीय चुनावों में ऐसा ही हुआ था। यह सैयद शुजा अमरीका में रहने वाला है और भारत के संसदीय चुनावों को लांछित करने के लिए प्रेस कान्फें्रस हेतु उसने लंदन का चुनाव किया। इस कान्फें्रस को लंदन के स्थानीय मीडिया ने तो बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं दिया, लेकिन इधर अपना खांटी देशी मीडिया की सांस फूल गई। कुछ साल पहले जब गुलाम नबी फाई जम्मू-कश्मीर को लेकर अमरीका में विचार-गोष्ठियों का आयोजन करता था और लगभग कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के पक्ष ही प्रस्तुत करता था, तो अमरीकी मीडिया उसको उतना नहीं छापता था, लेकिन भारतीय मीडिया उन विचार-गोष्ठियों की महत्ता से अभिभूत   होकर अपनी सांस फुला लेता था। अब वह गुलाम नबी फाई जेल में है, क्योंकि बाद में पता चला कि वह विदेशी शक्तियों का दलाल था। भारतीय मीडिया के लिए उसके शब्द इसलिए मायने रखते थे, क्योंकि कश्मीर को लेकर वह सारा बकवास अमरीका में बैठ कर  करता था। यही स्थिति सैयद शुजा वाले मामले में हो रही है। सैयद लंदन से बोल रहा है, तो उसकी बात का वजन हमारे मीडिया के लिए इतना बढ़ गया कि उसे ढोते हुए वह हकलान हो रहा है। कभी महाकवि नागार्जुन ने कहा था कि हम भारतीय इंग्लैंड की महारानी की पालकी अपने कंधों पर उठाने के लिए तैयार हैं, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री जवाहर लाल की हम भारतीयों को यही आज्ञा है।

उधर सैयद शुजा लंदन में सक्रिय हुआ, इधर सोनिया गांधी के बेटे से लेकर ममता बनर्जी बरास्ता अन्य विपक्षी दलों के नेता सैयद शुजा की पालकी ढोने में मशगूल हो गए। आम भारतीय के लिए यह मनोरंजन से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता था, लेकिन फिर भी यह रहस्य जानने की जिज्ञासा तो बनी हुई ही थी कि लंदन में बैठकर भारत के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए आखिर यह सारा एपिसोड कौन चला रहा है? इसके बाद चौंकाने वाला खुलासा हुआ। पता चला कि जाने-माने वकील और सोनिया गांधी की अदृश्य किचन कैबिनेट के सबसे प्रभावी सदस्य कपिल सिब्बल भी उस समय इंग्लैंड में ही थे। जाहिर था इस नई जानकारी से महागठबंधन के शेयर होल्डर को छोड़ कर बाकी सभी राष्ट्रवादी शक्तियों का हतप्रभ रह जाना स्वाभाविक ही था, ऐसा हुआ भी। तब कपिल सिब्बल की ओर से एक स्पष्टीकरण आया। उनसे यह स्पष्टीकरण किसी ने मांगा नहीं था। यह स्पष्टीकरण उन्होंने स्वयं ही दिया। ऐसा करने की उन्हें जरूरत क्यों पड़ी, यह तो सिब्बल ही बेहतर जानते होंगे। इस स्पष्टीकरण में उन्होंने कहा कि वह उस समय इंग्लैंड में अपने किसी व्यक्तिगत कार्य के लिए गए थे। यानी उनका सैयद शुजा के मामले से कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर इसका खंडन नहीं किया कि सैयद शुजा से यह नाटक करवाने में उसका कोई हाथ नहीं है। यह भी चर्चा है कि गुलाम नबी फाई की तरह सैयद शुजा भी पाकिस्तान की आईएसआई का दलाल है। इससे पहले भी सोनिया कांग्रेस एक बार पाकिस्तान के चक्कर में फंस चुकी है।  उसके वरिष्ठ सांसद और सोनिया परिवार के खासुलखास मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान में जाकर वहीं के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पाकिस्तान से मांग कर चुके हैं कि वह हिंदोस्तान से नरेंद्र मोदी को हटाए, तो दोनों देशों के संबंध सुधर सकते हैं। जब चीन के साथ डोकलाम का विवाद शुरू हुआ था, उस समय भी सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी दिल्ली में चीन के दूतावास में चीन के पक्ष की जानकारी लेने के लिए स्वयं चोरी-छिपे गए थे। उन्हें भारत के सार्वजनिक पक्ष में विश्वास नहीं था। इतना ही नहीं, जब उनके इस कृत्य का भंडाफोड़ हो गया, तो पहले वह चीनी दूतावास में जाने की घटना से ही इनकार करते रहे, लेकिन बाद में उन्हें अपने इस कृत्य को स्वीकार ही करना पड़ा, क्योंकि दूतावास ने खुद ही कह दिया कि राहुल वहां आए थे। सोनिया गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस को यह पूरा अधिकार है कि वह भारत की राष्ट्रवादी सरकार को चुनावों की लोकतांत्रिक पद्धति से पराजित करे। इस काम के लिए अपने साथ कुछ दूसरे लोगों को भी मिला सकती है।

वैसे भी इसके लिए प्रयास यह भी कर रही है और कुछ पारिवारिक दल या फिर कुछ जाने-माने स्वतंत्र नागरिक उनके साथ एकत्रित भी हो रहे हैं, लेकिन मणिशंकर अय्यर और सैयद शुजा का धारावाहिक चलाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। इन धारावाहिकों से संकेत मिलता है कि सोनिया गांधी और उनकी पार्टी भारतीय राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ ही नहीं लड़ रही, बल्कि उसने लड़ाई भारत के खिलाफ ही छेड़ दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शायद ठीक ही कहा है कि तथाकथित विपक्षी दलों का महागठबंधन सरकार के खिलाफ कम और देश के खिलाफ ज्यादा बनता जा रहा है।  बाबा साहेब अंबेडकर ने कभी ठीक ही कहा था कि हिंदोस्तान के लोग विदेशी राजा को तो प्रसन्नता से स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन स्वदेशी राजा को आसानी से स्वीकार नहीं करते, क्योंकि प्रत्येक समुदाय यह चाहता है कि उनकी जाति का ही व्यक्ति राजा बने। इसके कारण वे आपस में लड़ते हैं, लेकिन विदेशी व्यक्ति की कोई जाति नहीं होती, इसलिए वे उसको प्रसन्न भाव से स्वीकार कर लेते हैं। सोनिया गांधी को लेकर बाबा साहेब अंबेडकर की यह टिप्पणी महागठबंधन के परिप्रेक्ष्य में कितनी सही उतरती है, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन लंदन में जो नाटक हुआ उससे इतना अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है कि विपक्षी दलों को आगे करके राजनीति करने वाले लोग किस सीमा तक जा सकते हैं।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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