सौर ऊर्जा का उज्ज्वल भविष्य

By: Feb 19th, 2019 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

सौर ऊर्जा के गिरते दाम से हमें थर्मल एवं हाइड्रोपावर एक उत्तम विकल्प मिल गया है, चूंकि अपने देश में सूर्य की रोशनी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। राजस्थान के रेगिस्तान, गुजरात के कच्छ क्षेत्र और कर्नाटक के पठार में विशाल क्षेत्रफल पर सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। अब तय यह करना है कि हम सौर ऊर्जा को बढ़ावा देंगे अथवा थर्मल को…

बिजली के चार प्रमुख स्रोत हैं। पहला स्रोत थर्मल यानी कोयले अथवा ईंधन तेल से उत्पादित बिजली का है। दूसरा स्रोत सौर ऊर्जा का है। तीसरा स्रोत पनबिजली यानी जलविद्युत अथवा हाइड्रोपावर का है और चौथा परमाणु ऊर्जा का है। इन चार स्रोतों में वर्तमान में सौर ऊर्जा सबसे सस्ती पड़ रही है। जानकारों के अनुसार नई सोलर बिजली का उत्पादन खर्च लगभग चार रुपए प्रति यूनिट है, जबकि नई थर्मल बिजली की उत्पादन लागत पांच रुपए प्रति यूनिट आती है। जल विद्युत और परमाणु ऊर्जा की उत्पादन लागत इनसे बहुत अधिक लगभग 7-11 रुपए प्रति यूनिट आती है।  अपने देश में अब तक थर्मल एवं हाइड्रोपावर को प्रोत्साहन दिया जा रहा था, चूंकि हमारे पास कोयले के भंडार एवं नदियां पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें अपने संसाधनों का सर्वप्रथम उपयोग करना था। सौर ऊर्जा का उत्पादन दाम आज से पांच वर्ष पूर्व लगभग दस रुपए प्रति यूनिट पड़ता था, बीते समय में सोलर पैनल बनाने की तकनीकों में इजाफा हुआ है और इसके कारण आज सौर ऊर्जा का उत्पादन मूल्य मात्र चार रुपए प्रति यूनिट हो गया है। सौर ऊर्जा के इस गिरते दाम से हमको थर्मल एवं हाइड्रोपावर एक उत्तम विकल्प मिल गया है, चूंकि अपने देश में सूर्य की रोशनी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

राजस्थान के रेगिस्तान, गुजरात के कच्छ क्षेत्र और कर्नाटक के पठार में विशाल क्षेत्रफल पर सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। अब तय यह करना है कि हम सौर ऊर्जा को बढ़ावा देंगे अथवा थर्मल को। थर्मल बिजली में पहली समस्या सौर ऊर्जा की तुलना में अधिक दाम है और दूसरी समस्या यह है कि यह ग्लोबल वार्मिंग यानी धरती के तापमान को बढ़ावा देता है। पूर्व में सूर्य की ऊर्जा को वृक्षों ने ग्रहण कर अपने में रख लिया था। उसी पूर्व की संग्रहीत ऊर्जा को आज हम कोयले के रूप में निकालकर उपयोग करते हैं। कोयले को जलाने से जो कार्बनडाई आक्साइड उत्पन्न होती है, वह धरती के तापमान को बढ़ा रही है, फलस्वरूप रोग और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। हमारे लिए हाइड्रोपावर और परमाणु ऊर्जा तो पहले ही लाभप्रद नहीं थी, क्योंकि इनके दाम अधिक थे। अब थर्मल का भी सूर्यास्त होने लगा है, चूंकि हमारे पास सौर ऊर्जा का उत्तम विकल्प उपलब्ध हो गया है। सौर ऊर्जा के विस्तार में मुख्य समस्या यह है कि इसका उत्पादन दिन के समय होता है, जब सूर्य की रोशनी धरती पर पहुंचती है। इसके सामने बिजली की जरूरत सुबह एवं शाम अधिक होती है। उत्पादन और खपत के समय में गणित नहीं बैठती है। थर्मल पावर इससे कुछ बेहतर है। थर्मल पवार प्लांट में बिजली का उत्पादन 24 घंटे लगातार चलता है। अतः दिन के साथ-साथ सुबह और शाम के समय भी थर्मल बिजली का उत्पादन होता है। सौर ऊर्जा को बढ़ाना हमारे लिए तभी संभव है, जब हम दिन में बनी बिजली का संग्रहण करके इसका उपयोग सुबह और शाम कर सकें। बीते समय में इस प्रकार की दो प्रमुख तकनीकें उपलब्ध हो गई हैं। दिन के समय सौर ऊर्जा से बड़ी-बड़ी टंकियों में तेल को उच्च तापमान पर गर्म कर लिया जाता है और सुबह और शाम इस तेल को बोयलरों में डाल कर इससे भाप बनाई जाती है, जिससे टरबाइन चलाई जाती है। ऐसा करने से हम दिन की सौर ऊर्जा को सुबह और शाम की बिजली में परिवर्तित कर सकते हैं। दूसरा उपाय पंप स्टोरेज योजना का है। इस योजना में दिन के समय जब सौर बिजली उत्पन्न होती है, तब नीचे के तालाब से पानी को उठाकर ऊपर के तालाब में डाल दिया जाता है। इसके बाद जब सुबह और शाम बिजली की जरूरत होती है, तब ऊपर के तालाब से पानी को छोड़कर टरबाइन में डालते हुए पुनः नीचे के तालाब में लाया जाता है। हमारे ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथारिटी के प्रमुख ने अनुमान लगाया है कि पंप स्टोरेज योजना के माध्यम से दिन की बिजली को सुबह-शाम की बिजली में बदलने का खर्च लगभग 50 पैसा प्रति यूनिट आता है। अतः यदि हम चार रुपए में सौर ऊर्जा का उत्पादन करते हैं और 50 पैसे में इसे सुबह और शाम की बिजली में परिवर्तित कर दें, तो हमें सुबह और शाम की बिजली 4.50 रुपए प्रति यूनिट में उपलब्ध हो जाती है, जो अपने देश के लिए सफल है।

बीते समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस नाम के गठबंधन की आधारशिला रखी थी। उन्होंने विचार किया है कि विश्व के तमाम देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाकर हम विश्व को तेल और कोयले के दुष्प्रभावों से मुक्त कर सकते हैं। यह सोच सही दिशा में है। सरकार को चाहिए कि सौर ऊर्जा के विकास के लिए तमाम देशों को धन उपलब्ध कराने के लिए इंटरनेशनल सोलर बैंक नाम की संस्था बनाएं, जो कि देशों को सौर बिजली बनाने के लिए मदद करे। इस संदर्भ में जल विद्युत का भविष्य डावांडोल है। जिस प्रकार थर्मल बिजली से ग्लोबल वार्मिंग होती है, उसी प्रकार जलविद्युत्त के तमाम पर्यावर्णीय दुष्प्रभाव होते हैं, जैसे मछलियों का आवागमन अवरुद्ध होना, नदी की गाद का मैदान में न पहुंचना, नदी के सौंदर्य की हानि होना, पानी की गुणवत्ता में गिरावट आना इत्यादि। इसलिए हमें जलविद्युत को विशेषकर त्याग देना चाहिए, यह महंगी भी है और पर्यावरण के लिए हानिप्रद भी।

वर्ष 2018 में सानंद स्वामी उर्फ जीडी अग्रवाल (पूर्व प्रोफेसर आईआईटी कानपुर) ने मांग की थी कि गंगा पर निर्माणाधीन चार जल विद्युत परियोजनाओं को निरस्त किया जाए। सरकार के द्वारा इस मांग को स्वीकार न किए जाने के कारण उन्होंने 111 दिन के उपवास के बाद अपना शरीर त्याग दिया। वर्तमान में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद इन्हीं जल विद्युत परियोजनाओं को निरस्त करने की मांग को लेकर 114 दिन से मात्र पानी और शहद लेकर तपस्या में लीन हैं। सरकार को विचार करना चाहिए कि जब जलविद्युत महंगी है और इसका भविष्य स्वतः डाउन है, तो इन परियोजनाओं को शीघ्र निरस्त करके आत्मबोधानंद के उपवास को खोलने का प्रयास करना चाहिए।

ई-मेल :  bharatjj@gmail.com


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