अलग-अलग तरीके से किया जाता है श्राद्ध

By: Mar 20th, 2019 12:04 am

उसके बाद घर को गोबर से लीप कर शुद्धि के लिए यथाशक्ति गायत्री मंत्र का जाप पुरोहितों से करवाया जाता है। पंद्रहवें या सोलहवें दिन धर्मशांत हो जाती है, जिसे यहां की बोली में बामण जीमना या तेरहवीं भी कहा जाता है।  पद दान यानी (13 गिलास, 13 सफल, 13 जनेऊ पान काल आदि) 13 ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन करवा देने का विधान भी है..

गतांक से आगे …

धर्म शांत : कहीं-कहीं बारहवें दिन सपिंडन श्राद्ध करने का विधान है। उसके बाद घर को गोबर से लीप कर शुद्धि के लिए यथाशक्ति गायत्री मंत्र का जाप पुरोहितों से करवाया जाता है। पंद्रहवें या सोलहवें दिन धर्मशांत हो जाती है, जिसे यहां की बोली में बामण जीमना या तेरहवीं भी कहा जाता है।  पद दान यानी (13 गिलास, 13 सफल, 13 जनेऊ पान काल आदि) 13 ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन करवा देने का विधान भी है। हवन के बाद गौ दान, शैया दान की भी प्रथा है। कई स्थानों पर इसे तेरहवीं या सोला भी कहते हैं।

मासिक श्राद्ध: एक वर्ष तक हर माह मृतक की तिथि पर जल कुंभ एक गिलास रूमाल आदि देने का विधान है। गाय, कुत्ते, कौवे के लिए रोटी दान की जाती है। कार्यकर्ता भी वर्ष तक जलाशय के पास सायंकाल को तेल दीपक प्रातः भोजन में मृतक को रोटी संकल्पते हैं।

वार्षिक श्राद्ध : वर्ष पूरा होने पर उसी तिथि में वार्षिक श्राद्ध किया जाता है। समर्थ लोग गायत्री पुरुश्चरण या भागवत कथा आदि बैठाकर रिश्तेदारों को आमंत्रित करते हैं। भागवत के महात्मय में धधूकारी महाकुकर्मी प्रेत की मुक्ति के कारण ही अपने पितरों की सद्गति के लिए कथा करने की धारणा यहां कई क्षेत्रों में बनी हुई है।

चतुर्वार्षिक श्राद्ध : चार वर्ष बाद चतुर्वार्षिक भी करने की प्रथा है। मृतक का यह अंतिम कार्य है। इस पर भी गायत्री भागवत करवाने की परंपरा है। यहां भी गोदान शैया दान भी करने की परंपरा है। इसके अतिरिक्त तीर्थ यात्रा करते समय पितरों के लिए तीर्थ श्राद्ध तथा ब्राह्म कपाली में पिंड दान करने की प्रथा भी प्रचलित है। पितृ पक्ष में हर वर्ष पार्वण श्राद्ध करने का भी विधान है।

हिमाचल प्रदेश के शिवालिक क्षेत्र तथा मध्य पहाड़ी क्षेत्र में प्रचलित जन्म, विवाह तथा मृत्यु संस्कारों में काफी समानता है। इसका प्रमुख कारण पारस्परिक संपर्क आवागमन के सुलभ साधन तथा समान स्तरीय जातियों का यहां पाया जाना है। इन क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियां तथा उपजातियां आपस में कई रूपों से संबंधित हैं। पिछले दशकों में संचार साधनों के विकास शिक्षा के प्रसार एवं परस्पर संपर्क के कारण विभिन्न इलाकों में प्रचलित संस्कारों का प्रभाव एक-दूसरे क्षेत्रों में देखा जा सकता है। धीरे-धीरे दीर्घ समय में प्रचलित संस्कार अब नई-नई परंपराओं को जगह दे रहे हैं। जैसे कि जन्म अब अधिकतर सरकारी या निजी अस्पतालों में होता है। विवाह में समयाभाव के कारण प्रेम  विवाह एवं मृत्यु संस्कारों में उन सभी रीतियों को तिलांजलि दे दी गई है, जिन्‍हें आनावश्यक व आडंबरपूर्ण माना जाता था। हिमाचल प्रदेश के 12 में से 10 जिले आधुनिक जीवन प्रणाली को अपना चुके हैं, अतः यहां सामाजिक जीवन एवं संस्कारों मंे काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है।       -क्रमशः


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