आम चुनाव की तैयारी में देश

By: Mar 15th, 2019 12:07 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

चाहे कुछ भी हो, यह निश्चय करने के लिए अगला समय निर्णायक होगा कि भारत को विश्व विकास के शिखर पर रहना है अथवा वह अन्य विकासशील राष्ट्रों के साथ निचले सोपान पर छटपटाता रहेगा। यह निश्चित रूप से जमीन को हिला देने वाली बात होगी कि सत्ता के लिए संघर्ष कई स्थापित अवधारणाओं को तोड़ेगा तथा कई दलों का सफाया हो सकता है तथा कई ऐसी शक्तियां भी उभर सकती हैं, जिनके बारे में पहले से आशा नहीं रखी गई। सही अनुमान की कोशिश वोट पड़ने से कुछ सप्ताह पहले होगी, किंतु वर्तमान में चुनाव की शुरुआत स्पष्ट दिखती है…

इस वर्ष होने वाले आम चुनाव की घोषणा हो गई है और सभी राजनीतिक दलों में इसके लिए हलचल और भागदौड़ भी शुरू हो गई है। यह आम चुनाव निर्णायक, महत्त्वपूर्ण तथा जमीन को हिला देने वाले साबित होने जा रहे हैं। इस समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग अर्थात एनडीए) को हालांकि बहुमत हासिल है, किंतु राज्यसभा में अल्पमत में होने तथा कई दूसरी बाधाओं के कारण यह गठबंधन सरकार अभी भी दबाव में है। अगला चरण और ज्यादा निर्णायक होगा क्योंकि प्रभावी स्थिति और ज्यादा स्पष्ट हो जाएगी और जो क्षेत्रीय शक्तियां अभी असंतोष के स्वर निकाल रही हैं, वे ज्यादा नरम हो सकती हैं। एनडीए की सरकार ने अब दिशा का मील-पत्थर तय किया है क्योंकि उनके विचार देश के भविष्य की दिशा को रेखांकित कर सकते हैं। यह एक निश्चित बदलाव होगा अगर मोदी फिर से सत्ता की बागडोर संभालते हैं। अगर ऐसा नहीं होता है तो देश में अव्यवस्था फैल सकती है।

चाहे कुछ भी हो, यह निश्चय करने के लिए अगला समय निर्णायक होगा कि भारत को विश्व विकास के शिखर पर रहना है अथवा वह अन्य विकासशील राष्ट्रों के साथ निचले सोपान पर छटपटाता रहेगा। यह निश्चित रूप से जमीन को हिला देने वाली बात होगी कि सत्ता के लिए संघर्ष कई स्थापित अवधारणाओं को तोड़ेगा तथा कई दलों का सफाया हो सकता है तथा कई ऐसी शक्तियां भी उभर सकती हैं, जिनके बारे में पहले से आशा नहीं रखी गई। सही अनुमान की कोशिश वोट पड़ने से कुछ सप्ताह पहले होगी, किंतु वर्तमान में चुनाव की शुरुआत स्पष्ट दिखती है। हमें इस बात का मूल्यांकन करने की जरूरत है कि किस तरह विविध दल ब्यूह-रचना कर रहे हैं तथा रणनीति का निर्माण किस तरह हो रहा है। महाभारत में खुले राजनीतिक गठबंधन ने यह तय किया कि कौन किसके साथ है तथा सत्ता के समीकरण स्पष्ट हुए। चुनावी लड़ाई की तैयारी के लिए भी ऐसा ही किया जाता है। गठबंधनों पर काम चल रहा है तथा वही लड़ाई का स्वरूप तय करेंगे। पहला बड़ा कदम विपक्ष की ओर से मोदी को हटाने के लिए रची गई अस्तित्व की रणनीति है जिसे ‘मोदी हटाओ’ का नाम दिया गया है। विशुद्ध तर्क कहता है कि अगर पूरा विपक्ष एक हो जाता है तो सत्ताधारी एनडीए की हार निश्चित है क्योंकि विपक्ष का संयुक्त मत प्रतिशत उस स्थिति में बढ़ जाता है और उन्हें बहुमत मिल जाएगा। आरंभ में महागठबंधन बनाने की कोशिशें तेज हुईं, किंतु अस्तित्व में आने से पहले ही यह विखंडित हो गया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने आपसी समझौता सीटों की शेयरिंग के लिए करते हुए हाथ मिला लिया, पर इससे कांग्रेस को बाहर रखा गया। अब उत्तर प्रदेश में, जहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटें हैं, सभी प्रयासों के बावजूद कांग्रेस अकेले ही चुनाव मैदान में है। उसके लिए यहां पर स्थिति ज्यादा अनुकूल नहीं लग रही है। अब प्रियंका वाड्रा भी राजनीति में औपचारिक रूप से सक्रिय हो गई हैं। सोनिया गांधी व राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीटों रायबरेली व अमेठी से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। यहां पर सपा-बसपा ने कांग्रेस को थोड़ी राहत देते हुए अपना कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है। हो सकता है कि प्रियंका गांधी को फैजाबाद से मैदान में उतारा जाए। यूपी के चुनावी रण में मुकाबला रोचक होने जा रहा है क्योंकि सपा तथा बसपा, दोनों क्षेत्रीय दलों का वहां व्यापक जनाधार है और वे एनडीए को कड़ी टक्कर दे सकती हैं। दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ भी मजबूत स्थिति में लगते हैं। उनका पिछला प्रदर्शन शानदार रहा है और वे सपा-बसपा गठजोड़ की आंधी को रोक सकने में समर्थ लग रहे हैं।

यह संभावना इसलिए भी बनती है क्योंकि जिस यूपी को पहले गुंडा राज के लिए माना जाता था, उस कठिन प्रदेश में कानून व व्यवस्था बहाल करने की दृष्टि से योगी सरकार काफी सफल रही है। प्रयागराज में हालिया महाकुंभ में जुटी भारी भीड़ का सफल प्रबंधन भी उनकी कार्यकुशलता के रूप में देखा जा रहा है। लोक कल्याण के कई कार्य भी योगी सरकार ने अंजाम दिए हैं। ऐसा हो सकता है कि संयुक्त विपक्ष के आगे वह पूर्व की तरह का शानदार प्रदर्शन न कर पाएं। दिल्ली के ताज के लिए यूपी को एक द्वार की तरह माना जाता है और इस राज्य से अब तक कई प्रधानमंत्री चुन कर आ चुके हैं। गपशप में योगी को मोदी के बाद अगला प्रधानमंत्री भी कहा जा रहा है, किंतु फिलहाल उनके भाग्य का फैसला होना अभी बाकी है। हालांकि कांग्रेस कोशिश कर रही है कि वह गंभीर विचार-विमर्श के बाद ही राज्य में अपने उम्मीदवार तय करेगी, किंतु ऐसा लगता नहीं है कि यह पार्टी राज्य में कुछ शानदार कर पाएगी। क्योंकि एक ओर उसे सपा-बसपा के संयुक्त मत प्रतिशत का सामना करना है, दूसरी ओर भाजपा की ओर से योगी जैसे स्टार प्रचारक कोई कोर कसर छोड़ने के लिए तैयार नहीं लग रहे हैं।

राहुल और प्रियंका की जोड़ी कांग्रेस के लिए क्या कर पाती है, यह अभी देखना बाकी है, हालांकि राज्य को प्रभावित करने की उनकी क्षमता असंदिग्ध नहीं है। उधर सपा-बसपा की जीत पर संशय को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि समाजवादियों के पितामह मुलायम सिंह यादव, जो कि अखिलेश  यादव के पिता हैं तथा पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्र में रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं, ने लोकसभा में हाल में स्वीकार किया कि मोदी फिर से अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। वह सोनिया गांधी की बगल में ही बैठे थे। वह उठे और घोषणा कर डाली कि मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। इससे पूरा विपक्ष स्तब्ध रह गया तथा सोनिया गांधी को भी इससे जरूर ताज्जुब हुआ होगा। इसके बावजूद भारत के भविष्य पर विचार करने के लिए हमें आगे होने जा रहे घटनाक्रम पर नजर रखनी होगी।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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