पुलवामा हमले के बाद

By: Mar 2nd, 2019 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

 

दुर्भाग्य यह है कि भारत की राजनीति में अपने आपको विपक्ष मानने का दावा कर रहे राजनीतिक दल यह भूल रहे हैं कि वे राज्य चला रही राजनीतिक पार्टी के विपक्ष में हैं, न कि देश के विपक्ष में। हड़बड़ाहट में वे इन दोनों भूमिकाओं को एक साथ निभाने की मुद्रा में ही आ गए हैं। जिस समय उन्हें देशभर में घूमकर जनता का मनोबल ऊंचा करना चाहिए और देश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेना का मनोबल बढ़ाना चाहिए, उस समय भी वे सरकार की खामियां ढूंढने के लिए आतशी शीशे का प्रयोग कर रहे हैं…

पिछले दिनों पुलवामा में पाकिस्तान में कार्यरत जैश-ए-मोहम्मद के कारकुन ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस की गाड़ी पर आत्मघाती हमला कर चालीस से भी ज्यादा जवानों को शहीद कर दिया था। पाकिस्तान भारतीय क्षेत्र में ऐसी आतंकवादी गतिविधियां पिछले लगभग तीन दशकों से कर रहा है। भारत सरकार अपने क्षेत्रों में उनको रोकने का प्रयास भी करती है  और उसका उत्तर भी देती है, लेकिन पाकिस्तान के जिन क्षेत्रों में आतंकवादियों को इस प्रकार के सैन्य और वैचारिक आक्रमणों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, वहां जाकर उन्हें ध्वस्त करने का साहस अभी तक किसी सरकार ने नहीं दिखाया था। पाकिस्तान ने हिंदोस्तान पर पहला हमला अक्तूबर 1947 में किया था, जिसमें उसने हिंदोस्तान के एक बडे़ क्षेत्र मसलन, गिलगित, बलतीस्तान, मुज्जफ्फराबाद, मीरपुर इत्यादि पर कब्जा कर लिया था। ब्रिटिश सरकार की चालबाजियों के चलते उस समय की सरकार ने इन क्षेत्रों को मुक्त करवाने में कोई रुचि नहीं दिखाई, जिसके कारण यह क्षेत्र आज भी पाकिस्तान के कब्जे में हैं। 1947 के बाद पाकिस्तान ने एक बार फिर 1965 में ऐसा ही प्रयास जम्मू-कश्मीर में किया। भारतीय सेना ने उसका मुंहतोड़ उत्तर दिया, लेकिन ताशकंद में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर का वह सारा भारतीय क्षेत्र, जिस पर पहले से ही पाकिस्तान का नाजायज कब्जा था, पाकिस्तान को फिर वापस लौटा दिया। 1971 में बंगला मुक्ति संग्राम में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के 90 हजार से भी ज्यादा सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने बिना किन्हीं रियायतों के उन्हें पाकिस्तान को वापस कर दिया। 1999 में पाकिस्तान ने एक बार फिर कारगिल क्षेत्र में भारत पर आक्रमण किया, जिसका भारतीय सेना ने उचित उत्तर दिया। पाकिस्तान भारत पर बार-बार आक्रमण करता रहा। यह ठीक है कि भारत सरकार उसका माकूल जवाब भी देती रही, लेकिन शुरुआत करने का समय और स्थान सदा पाकिस्तान के हाथ में ही रहा।

1985 के आसपास पाकिस्तान सरकार ने भारत पर आक्रमण करने के लिए अपनी रणनीति में आमूल-चूल परिवर्तन किया। सीधे आक्रमण न करके वह अपने यहां प्रशिक्षित आतंकवादियों को भारत में भेजने लगा और अंग्रेजी में जिसे हंडरड कट थ्योरी कहा जाता है, उसके अनुसार भारत को घायल करने लगा। तब से लेकर आज तक भारत सरकार ने मरहम पट्टी की पुख्ता व्यवस्था तो की, लेकिन पाकिस्तान में स्थित आतंकवादियों के अड्डों को ध्वस्त करने का साहस वह नहीं जुटा पाई। ऊपर से तुर्राह यह कि पाकिस्तान सरकार सदा ही धमकियां देती रही कि वह अब परमाणु संपन्न देश है, जिसके कारण भारत सरकार उसके क्षेत्र में आतंकवादियों के अड्डों पर हमला करने का साहस नहीं जुटा सकती, क्योंकि 1947 से लेकर 2018 तक भारत में किसी ने भी पाकिस्तान को उसकी भारत विरोधी गतिविधियों का उत्तर उसके क्षेत्र में जाकर देने का साहस नहीं दिखाया था। इसीलिए विश्व में भारत की छवि एक ऐसे देश की बनने लगी, जो अपने शरारती पड़ोसी देश से निपटने की या तो क्षमता नहीं रखता या फिर साहस नहीं रखता। भारत के भीतर भी धीरे-धीरे यही मानसिकता उभरने लगी थी। यह मानसिकता इतनी घर कर गई थी कि भारत में ही कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी भारतीय जनमानस को यह समझाने में जुटे रहे कि पाकिस्तान उद्दंड और शरारती किस्म का देश है, इसीलिए उससे किसी प्रकार से उलझना बुद्धिमता का लक्षण नहीं होगा, बेहतर यही होगा कि पाकिस्तान से वार्ता करके और किसी प्रकार उसको समझा-बुझाकर मामले को शांत किया जाए। पाकिस्तान में बैठे नीति-निर्धारक भी यह अच्छी तरह समझने लगे थे कि इस प्रकार के कपोतबाजों ने भारत सरकार को जकड़ रखा है, इसीलिए सरकार पाकिस्तान में भीतर आकर किसी प्रकार का साहस नहीं दिखाएगी। इससे भारत की छवि दब्बू राष्ट्र की ही नहीं बन रही थी, बल्कि आतंकवादियों की मार से घिरे हुए एक व्याकुल राष्ट्र की भी बन रही थी। दुनिया के दूसरे देशों ने, जिन्हें आतंकवाद का दंश झेलना पड़ रहा है, अपने पास यह अधिकार सुरक्षित रखा है कि जिस देश से आतंकवादियों को भेजा और प्रशिक्षित किया जाता है, उसके भीतर जाकर उनके अड्डों को नष्ट किया जाए। इसे दूसरे देश पर आक्रमण नहीं माना जाता, बल्कि स्वरक्षा के लिए उठाया गया कदम स्वीकार किया जाता है। इजरायल अपने अधिकार का प्रयोग करता रहता है, जिसके कारण ऐसे पड़ोसी देश जो पहले उसकी भूमि में आतंकवादियों को भेजते थे, ऐसा करने से पहले दस बार सोचते हैं। अमरीका ने भी पाकिस्तान के भीतर घुसकर ओसामा बिन लादेन को मारकर अपने इसी अधिकार का प्रयोग किया था। आश्चर्य की बात यह है कि दुनिया के तथाकथित शक्तिशाली देश अब तक भारत को ही यह उपदेश देते रहे कि उसे अपने इस अधिकार का प्रयोग करने से बचना चाहिए। इन तमाम परिस्थितियों के कारण पाकिस्तान को यह लगने लगा था कि वह हिंदोस्तान में किसी प्रकार की भी आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करता रहे, हिंदोस्तान उसके घर के भीतर आकर आतंकवादी अड्डों को नष्ट करने का साहस नहीं जुटा पाएगा। पुलवामा की घटना के बाद 26 फरवरी, 2019 को भारत ने पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए जम्मू-कश्मीर के उस भू-भाग में घुसकर, जहां आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया जा रहा था, आतंकवादी अड्डों को नष्ट कर दिया। जब भारत ने स्वरक्षा के अपने इस अधिकार का प्रयोग कर लिया, तो विश्व के अधिकांश देशों ने भी यह कहना शुरू कर दिया कि भारत को ऐसा करने का अधिकार है।

नरेंद्र मोदी को यकीनन इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने अपने इस एक निर्णय से दक्षिण एशिया की पूरी राजनीति को ही नहीं बदल दिया, बल्कि विश्व राजनीति में भारत के स्थान को भी परिवर्तित कर दिया है। 1947 से लेकर अब तक हुई यह सबसे बड़ी पहल है, जिसका असर बहुत दूर तक दिखाई देगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत की राजनीति में अपने आपको विपक्ष मानने का दावा कर रहे राजनीतिक दल यह भूल रहे हैं कि वे राज्य चला रही राजनीतिक पार्टी के विपक्ष में हैं, न कि देश के विपक्ष में। हड़बड़ाहट में वे इन दोनों भूमिकाओं को एक साथ निभाने की मुद्रा में ही आ गए हैं। जिस समय उन्हें देशभर में घूमकर जनता का मनोबल ऊंचा करना चाहिए और देश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेना का मनोबल बढ़ाना चाहिए, उस समय भी वे सरकार की खामियां ढूंढने के लिए आतशी शीशे का प्रयोग कर रहे हैं। अरबन नक्सल के नाम से पहचाने जाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी अब भी पाकिस्तान के समर्थन में ही हलकान नहीं हुए जा रहे, बल्कि विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा कर देने के पाकिस्तानी निर्णय के लिए इमरान खान के सिजदे में जमा होकर अपने बौद्धिक स्तर का परिचय दे रहे हैं। उनकी दृष्टि में अभिनंदन की रिहाई भारत की कूटनीतिक विजय नहीं है, बल्कि यह तो इमरान खान की शांति स्थापना के क्षेत्र में की गई ऐतिहासिक पहल है। खुदा भारत को संकट की इस घड़ी में इन बेगैरतों से बचाए।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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