महासमर का महागठबंधन

By: Mar 16th, 2019 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

आखिर सोनिया गांधी को भी हिंदोस्तान में रहते हुए इतने साल हो गए हैं, इसलिए वह भी यहां के हवा-पानी को पहचानने लगी हैं। वह समझ गईं कि मीडिया को आगे करके, महागठबंधन का जो तिलिस्म खड़ा किया था, उसे देवकीनंदन के सजग पाठकों ने तार-तार कर दिया है। 2019 का महासमर तो नेहरू गांधी परिवार का राजनीतिक भविष्य तय करने वाला महासमर है। इसलिए अंत में उन्होंने महागठबंधन के नाम पर अपना परिवार ही रणभूमि में उतार दिया है। वह स्वयं तो हैं ही, उनके साथ उनका बेटा राहुल गांधी मजबूती से खड़ा है। रिकार्ड के लिए उसके सिर पर पार्टी के अध्यक्ष का ताज सजा दिया गया है। राहुल के साथ ही उनकी बड़ी बहन प्रियंका आकर खड़ी हो गई हैं, उसे पार्टी का महासचिव घोषित कर दिया गया है…

चुनावों की घोषणा हो जाने के बाद देश की राजनीति में घटनाक्रम तेजी से परिवर्तित हो रहा है। सबसे पहले महागठबंधन की बात। देश के दो-तीन राजनीतिक दलों की व्याकुलता थी कि किसी भी तरीके से यदि अधिकांश दलों को एकत्रित कर भाजपा के प्रत्येक प्रत्याशी के मुकाबले यदि विपक्ष का केवल एक ही प्रत्याशी अखाड़े में उतारा जाए, तो नरेंद्र मोदी को अपदस्थ किया जा सकता है। इस प्रयास के लिए सोनिया कांग्रेस की सोनिया गांधी, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू ही सबसे ज्यादा लालायित थे। यदि विपक्षी दलों का यह गठबंधन बन भी जाता, तो इसका नेतृत्व कौन करता, इसके लिए ये तीनों एक-दूसरे को आगे नहीं निकलने देना चाहते थे। सोनिया कांग्रेस कम से कम महागठबंधन के साकार होने या न होने से पहले ही मीडिया की सहायता से राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के मुकाबले ताल ठोंकता हुआ दिखा कर मोदी बनाम राहुल जैसा कुछ भ्रम पैदा करने की कोशिश जरूर कर रही हैं। उससे सोनिया कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता तो धोखा खा सकते थे, घुटे हुए दूसरे राजनीतिज्ञ, जिनको लेकर महागठबंधन बनाना था, भला कैसे धोखा खा सकते थे?

अलबत्ता इसका प्रभाव उल्टा हुआ। बसपा की मालिक मायावती ने स्पष्ट कर दिया कि वह और सभी संभावनाएं तलाश सकती हैं, देश में सोनिया कांग्रेस से समझौता बिलकुल नहीं करेंगी। इतना ही नहीं, महागठबंधन के दो ताकतवर खिलाड़ी अखिलेश और मायावती अपनी थाली उठाकर पंगत से ही उठकर चले गए। बाकी बची ममता बनर्जी, जिनका हाथ पकड़-पकड़ कर सोनिया गांधी को महागठबंधन जैसा कुछ प्रभाव पैदा करने के लिए मंचों पर बार-बार जाना पड़ता था, उसने पश्चिमी बंगाल की लगभग सारी सीटों पर अपने प्रत्याशी तय कर दिए हैं। सोनिया गांधी के बेटे के लिए उसने कोलकाता जाने का रास्ता ही बंद कर दिया। अब राहुल गांधी कोलकाता नहीं जा पाएंगे, तो महागठबंधन का रसगुल्ला कैसे खा पाएंगे?

उसका रास्ता तलाशने के लिए उन्होंने सीपीएम के सीताराम येचुरी को पकड़ा है। वे दोनों बंगाल परिक्रमा करेंगे। बस छोटी सी समस्या यह है कि येचुरी चाहते हैं, क्योंकि सोनार बंगाल का मामला है, इसलिए राहुल गांधी उनकी अंगुली पकड़कर घूमें, लेकिन राहुल गांधी का कहना है कि यदि मुझे अंगुली पकड़ कर ही घूमना है, तब तो मैं मनमोहन सिंह के समय ही प्रधानमंत्री बन सकता था। अब तो मैं वयस्क हो गया हूं और ऐसा तटस्थ पत्रकार भी अपने मन को मारकर मानने लगे हैं, इसलिए बंगाल में भी येचुरी को मेरी अंगुली पकड़नी चाहिए। वैसे केवल रिकार्ड के लिए महागठबंधन जैसा कुछ साकार निराकार मैदान में उतारने के इच्छुक यह तो चाहते हैं कि सीपीएम और सीपीआई के तथाकथित नेता मंचों पर फोटो शो में तो जरूर हाजिर हों, लेकिन जब सीट का मामला आए, तो दूर-दूर तक भी दिखाई देने चाहिएं। हालत यहां तक बिगड़ गई कि लालू यादव ने बिहार में अपना गठबंधन बनाते समय सीपीएमएल तक को शामिल कर लिया, लेकिन सीपीएम को आसपास भी फरकने की इजाजत नहीं दी। सीपीआई तो बेगूसराय की एक अदद सीट तक के लिए तरस गई। वैसे लालू यादव ने सोनिया कांग्रेस को दस-ग्यारह सीटें देकर बिहार में भी उसकी औकात स्पष्ट कर दी। अब अंत में बचा चंद्रबाबू नायडू का आंध्र प्रदेश। वहां सोनिया कांग्रेस बची हुई गिनती की वही सीटें लड़ पाएगी, जो चंद्रबाबू दयावश या फिर विवशता में छोड़ दें। सभी जानते हैं कि दया करना चंद्रबाबू के स्वभाव में नहीं है। राजनीति में उन्होंने अपने ससुर एनटी रामाराव पर दया नहीं की थी, तो भला वह सोनिया गांधी पर दया क्यों करेंगे? इसलिए आंध्र प्रदेश में महागठबंधन अंतिम सांस ले सकता है। महाराष्ट्र में शरद पवार ने सोनिया गांधी से राजीनामा तो कर लिया है, लेकिन हालात को भांपकर खुद चुनाव मैदान से हट गए हैं।

वह भारतीय राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं, भविष्य को देखकर वर्तमान में निर्णय लेते हैं। आखिर सोनिया गांधी को भी हिंदोस्तान में रहते हुए इतने साल हो गए हैं, इसलिए वह भी यहां के हवा-पानी को पहचानने लगी हैं। वह समझ गईं कि मीडिया को आगे करके, महागठबंधन का जो तिलिस्म खड़ा किया था, उसे देवकीनंदन के सजग पाठकों ने तार-तार कर दिया है। 2019 का महासमर तो नेहरू गांधी परिवार का राजनीतिक भविष्य तय करने वाला महासमर है। इसलिए अंत में उन्होंने महागठबंधन के नाम पर अपना परिवार ही रणभूमि में उतार दिया है। वह स्वयं तो हैं ही, उनके साथ उनका बेटा राहुल गांधी मजबूती से खड़ा है। रिकार्ड के लिए उसके सिर पर पार्टी के अध्यक्ष का ताज सजा दिया गया है। राहुल के साथ ही उनकी बड़ी बहन प्रियंका आकर खड़ी हो गई हैं, उसे पार्टी का महासचिव घोषित कर दिया गया है। उनके साथ ही उसके पति राबर्ट वाड्रा खड़े दिखाई दे रहे हैं।

वाड्रा का कहना है देशवासियों की सेवा करने का उन्होंने भी आखिर में निर्णय कर लिया है और इस रास्ते से कोई नहीं रोक सकता। नेहरू गांधी के नाम से जो परिवार भारतीय राजनीति में प्रसिद्ध हो चुका है, वह अंततः 2019 के महासमर में उतर आया है। महाभारत में धृतराष्ट्र ने पूछा था, मेरी संतान ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में क्या किया, इसका उत्तर तो अब भारत की जनता ही देगी, लेकिन परिवार के सेनापति राहुल गांधी ने अपना शंखनाद मसूद अजहर को ‘जी’ सम्मान प्रदान कर किया है, यह बात भारतीयों के गले नहीं उतर रही।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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