शिक्षा के अर्थ में खेल जरूरी

By: Mar 11th, 2019 12:07 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

आज हमें हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में एथलेटिक्स क्रियाओं से जुड़ी स्पर्धाओं का प्रशिक्षण देकर अपने विद्यार्थियों की फिटनेस को निखारना होगा। शारीरिक क्षमताओं को मापने के लिए एथलेटिक में बैटरी टेस्ट बने हैं, इनसे ठीक उसी तरह शारीरिक क्षमताओं का पता चलता है, जैसे चिकित्सक पैथोलॉजी के टेस्टों से सही निदान तक पहुंच पाते हैं…

शिक्षा मानव का शारीरिक व मानसिक रूप से संपूर्ण विकास करती है। आजकल हमारे अधिकतर स्कूलों में शारीरिक फिटनेस के लिए कोई भी सुविधा व कार्यक्रम नहीं है। स्कूल चाहे सरकारी हो या निजी क्षेत्र में, हिमाचल प्रदेश के नब्बे प्रतिशत स्कूलों के पास प्रति विद्यार्थी जो न्यूनतम खेल मैदान सुविधा चाहिए वह नहीं है। जब स्कूल विभिन्न प्रकार के तरीकों से शिक्षा पाठ्यक्रम को तो रट्टा कर विद्यार्थी को अच्छे अंकों से पास कराकर चिकित्सका, अभियंता व प्रबंधन आदि के महाविद्यालयों तक तो पहुंचाने में जरूर कामयाब हो रहा है। क्या ये चिकित्सक, अभियंता, प्रबंधक, सीए अधिकारी व कर्मचारी जो फिटनेस के बगैर की शिक्षा प्रणाली से निकले हैं, अपने जीवन के साठ वर्षों तक देश व जिस संस्थान में नौकरी कर रहे होते हैं, अपना सौ प्रतिशत दे पाते हैं या चालीस वर्ष की उम्र से ही बीमार रहने लग जाते हैं। सरकार हमारे टैक्स के हजारों करोड़ों से अच्छे संस्थान बनाती है या निजी क्षेत्र में मां-बाप लाखों रुपए खर्च कर अपने बच्चों को ट्रेनिंग दिलाते हैं। उसके बाद अपने शिक्षण व प्रशिक्षण का सही सेवा निष्पादन नहीं करना देश में मानव पूंजी को बर्बाद करने के बराबर ही है। इस विकास की दौड़ में कदम से कदम मिलाने के लिए भविष्य में इनसान को और अधिक फिटनेस की जरूरत है। हमारे स्कूलों में अगर पढ़ाई के साथ फिटनेस के लिए भी कार्यक्रम हैं तो हम जहां लाखों विद्यार्थियों में से भविष्य के स्टार खिलाड़ी निकाल सकते हैं, वहीं पर अधिक से अधिक फिट नागरिक देश को दे सकेंगे। हिमाचल प्रदेश में सैनिक स्कूल सुजानपुर एकमात्र ऐसा स्कूल है, जहां विद्यार्थी की फिटनेस का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है, यहां पर विद्यार्थी छात्रावास में रहते हैं, सवेरे-शाम उनके लिए मैदान में अनिवार्य रूप से फिटनेस कार्यक्रम तक समयसारिणी के अनुसार करना होता है, मगर वहां से आजकल एक दुखद समाचार बार-बार पढ़ने को मिल रहा है कि उनके वजीफों में कटौती के कारण उनके दैनिक खुराक भत्ते में बड़ी कमी आई है और इसलिए उन्हें जरूरी पौष्टिक खाना नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश सरकार व अभिभावकों को इस विषय में जरूरी कार्रवाई केंद्र सरकार के साथ जल्द से जल्द करनी चाहिए। यह स्कूल प्रति वर्ष कई सैनिक अधिकारी बनने के लिए अपने विद्यार्थी एनडीए को देता है। दैनिक रूप से लगने वाले स्कूलों में दशकों पूर्व फिटनेस की कोई खास जरूरत नहीं थी। विद्यार्थी सवेरे-शाम अपने अभिभावकों के साथ उनके पेशे के अनुसार काम में हाथ बंटाते थे, उसके बाद तीन-चार किलोमीटर स्कूल पैदल आते थे। भला उस समय फिर किसी फिटनेस कार्यक्रम की क्या जरूरी थी।

हिमाचल में दो दशक पूर्व तक निजी या सरकारी क्षेत्र में नाममात्र के उच्च शिक्षा संस्थान में जहां आगे की पढ़ाई हो पाती। शिमला में चिकित्सा महाविद्यालय तथा हमीरपुर में आरआईसी के लिए हजारों विद्यार्थी दिन-रात पढ़ाई करते थे। नहीं तो फिर ऊंची फीस जो लाखों में होती थी, उसे देकर चिकित्सक या अभियंता बनने के लिए पढ़ाई करने दक्षिण भारत तक जाना पड़ता था। इसलिए भी मां-बाप ने अपने बच्चों से सारे काम छुड़ाकर उन्हें केवल पढ़ाई तक सीमित कर दिया। समय की मांग को देखते हुए स्कूलों में ड्रील का पीरियड भी पढ़ाई के लिए दे दिया गया। इस तरह भी फिटनेट कार्यक्रम विद्यार्थी से अनजाने में ही दूर हो गया। आज जब प्रदेश में सरकारी व निजी क्षेत्र में कई संस्थान विभिन्न तरह के पाठ्यक्रमों की ट्रेनिंग व पढ़ाई करवा रहे हैं, तो उसके बाद भी स्कूली स्तर पर अभिभावक व स्कूल प्रशासन फिटनेस के विषय पर मौन हैं। आज का विद्यार्थी जब घर पर अपने अभिभावकों के साथ गृह कार्य नहीं कर रहा है। घर से स्कूल वाहन से जा और आ रहा है। साथ में वह मोबाइल में आजकल फ्री मिलने वाले इंटरनेट के कारण अधिकांश समय चिपका रहता है। तो फिर ऐसे में उसके पास फिटनेस के लिए कब-कहां और कैसे समय है, इसके बारे में अभिभावक व स्कूल दोनों चुप हैं। स्कूल ने तो ड्रील का पीरियड भी खत्म कर दिया है।

मिडल स्कूलों से शारीरिक शिक्षक का पद लगभग खत्म होता जा रहा है। संसार के सब विकसित देशों के स्कूलों में शिक्षा के अर्थ को पूरा करने के लिए शारीरिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एथलेटिक क्रियाओं का प्रशिक्षण व शिक्षण दिया जाता है। भारत में भी हर वर्ष अपनी एथलेटिक प्रतियोगिता करवाता है। मानव विस्थापन की सामान्य क्रियाओं, चलना-दौड़ना, कूदना व फेंकने में महारत तो मानव ने सभ्यता के शुरुआती दौरे में ही हासिल कर ली थी। जब मानव को प्रकृति के रौद्र रूप व जानवरों से बचने तथा अपना भोजन करने के लिए दौड़ना-फेंकना व कूदना पड़ता था। आगे चलकर यूनानी सभ्यता ने एथलेटिक्स स्पर्धाओं को ओलंपिक में शामिल कर इस दुनिया के सबसे बड़े खेल मेले की शुरुआत की। आज हमें हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में एथलेटिक्स क्रियाओं से जुड़ी स्पर्धाओं का प्रशिक्षण देकर अपने विद्यार्थियों की फिटनेस को निखारना होगा। शारीरिक क्षमताओं को मापने के लिए एथलेटिक में बैटरी टेस्ट बने हैं, इनसे ठीक उसी तरह शारीरिक क्षमताओं का पता चलता है, जैसे चिकित्सक पैथोलॉजी के टेस्टों से सही निदान तक पहुंच पाते हैं। इसलिए हर स्कूल को वर्ष में तीन-चार बार अपने विद्यार्थियों के बैटरी टेस्ट लेने चाहिएं।

ई-मेल : bhupindersinghhmr@gmail.com


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