सियासी परिदृश्य में महागठबंधन

By: Mar 21st, 2019 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

मोदी को रोकने के लिए अथवा भाजपा को पछाड़ने के लिए कांग्रेस ने महागठबंधन बनाने की अवधारणा की परिकल्पना की थी, परंतु यह अभी तक अस्तित्व में नहीं आ पाया है। उधर भाजपा ने, जिसने इस तरह के महागठबंधन प्रयासों को ठगबंधन का नाम दिया है, अपना गठबंधन पहले ही कर लिया है। महागठबंधन की शुरुआत ही बुरी थी क्योंकि मायावती ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन करते हुए कांग्रेस को इस गठबंधन में नकार दिया और वह बाहर हो गई। हालांकि कांग्रेस की हाल के चुनावों में तीन राज्यों में जीत हुई किंतु महागठबंधन न हो पाने के कारण इसका आगे बढ़ने का अभियान एक तरह से रुक गया है। अवसर को साधने में विफलता तथा निर्णय निर्माण में देरी के कारण गठबंधन  संभव नहीं हो पाया। कांग्रेस ने पहले ही धीमे व अनिश्चित निर्णय निर्माण के कारण गोवा में सरकार बनाने का अवसर खो दिया है।   महागठबंधन की शुरुआत एक सुनहरा सपना था जिसने पूरे विपक्ष को मोदी की जीत का रथ रोकने के लिए एकसूत्र में बंधे दिखाया।  किंतु यह आशा नहीं की गई कि यह एक वास्तविक प्रस्तावना होगी क्योंकि राजनीतिक दलों में त्याग व सहानुभूति की कमी देखी गई। सभी दल स्वार्थी लक्ष्य के साथ आगे आए तथा वे सत्ता छीनने के लिए सबके साथ लड़ने को तैयार दिखे। बंगलुरू में देखा गया सपना, जहां विपक्ष ने भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए एकता दिखाई, एक सुनहरा पल था। इससे विपक्ष इतना खुश हुआ कि उसने उस दिन इस महागठबंधन का जश्न मनाने के लिए शराब को पानी की तरह बहाया। एक साथ आने का यह सपना इतना जोश भर गया कि वे एक साथ हो लिए तथा शराब की खपत पर उन्होंने भारी खर्च किया। चंद्र बाबू नायडू ने करीब आठ लाख रुपए के बिल की अदायगी की। अन्य नेताओं ने भी शराब पर बेतहाशा खर्च किया। अरविंद केजरीवाल ने इस मद पर 1.8 लाख रुपए मिनटों में उड़ा डाले। कर्नाटक स्टेट हास्पिटेलिटी ने महागठबंधन का जश्न मनाने के लिए 87 लाख रुपए खर्च डाले।  विपक्ष का एक सपना था कि वह उस चौकीदार से छुटकारा पाना चाहते थे जो उनकी गर्दन पर हाथ रखे हुए था तथा उनके ‘साफ्ट एक्सपेंडिचर अथवा इनकम’ को रोक रहा था। विपक्ष में मोदी का बहुत भय था। विपक्ष को एक दिखने का दूसरा मौका उस समय कोलकाता में मिला जब मोदी से नफरत करने वाली ममता बैनर्जी के पार्टी धरने में शामिल होने का आह्वान किया गया। किंतु इस बार विपक्ष को राहुल गांधी, सोनिया गांधी व मायावती का साथ नहीं मिल पाया। यह बंगलुरू के बाद विपक्ष के पास दूसरा मौका था। विपक्ष में बिखराव शुरू हो चुका था और अंततः  मायावती ने कांग्रेस को अछूत घोषित करते हुए घोषणा कर डाली कि वह उसके साथ कहीं भी गठबंधन नहीं करेंगी। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी पहले ही गठबंधन कर चुकी हैं।

इन दलों ने कांग्रेस के लिए मात्र दो सीटें छोड़ी जो उस पार्टी के लिए अपमान के बराबर था जो कई दशकों तक देश को प्रधानमंत्री देती रही है। अब कांग्रेस के पास कोई विकल्प शेष नहीं बचा था सिवाय इसके कि वह अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करती। सहानुभूति का संकेत देते हुए कांग्रेस ने भी गठबंधन के लिए सात सीटें छोड़ दी हैं। उधर सपा-बसपा के छोटे गठबंधन ने इस पेशकश को भी ठुकरा दिया है। बंगाल में भी ममता बैनर्जी चुनाव में एकला चलो रे के मार्ग पर हैं तथा उनकी पार्टी का कांग्रेस व कम्युनिस्टों से कोई गठजोड़ नहीं हुआ है। इसी तरह उड़ीसा में तिकोना मुकाबला लग रहा है। यहां बीजू जनता दल की एक ओर भाजपा से टक्कर होगी, दूसरी ओर कांग्रेस भी उसके सामने है। उधर बिहार में भी तिकोना मुकाबला ही लग रहा है जहां भाजपा-जेडीयू-लोजपा के सामने एक ओर लालू प्रसाद यादव का राजद है तथा दूसरी ओर कांग्रेस है। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि चुनाव पूर्व गठबंधन के भाव में महागठबंधन खत्म हो चुका है। अब मन को तसल्ली देने के लिए नजरें चुनाव बाद की संभावनाओं पर टिकी हैं। जहां तक चुनाव पूर्व गठबंधन का संबंध है, भाजपा ने इस दिशा में तेजी के साथ काम किया, जबकि कांग्रेस विकल्पों को ही ढूंढती रह गई। कांग्रेस ने पंजाब में भी कोई व्यवस्था नहीं की है क्योंकि वहां के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंद्र सिंह कह रहे हैं कि कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से गठबंधन की कोई जरूरत नहीं है। इसके बावजूद केजरीवाल की ओर से कांग्रेस के कुछ प्रतिनिधियों के साथ बातचीत जारी है तथा गठजोड़ की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। ऐसी अफवाहें हैं कि दिल्ली में आप व कांग्रेस में गठजोड़ हो सकता है। किंतु मेरा मानना है कि ऐसा करना दोनों के लिए घातक सिद्ध होगा क्योंकि आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता में गिरावट आती जा रही है। कांग्रेस अब गोवा में सत्ता हथियाने की कोशिश कर रही है जहां मनोहर पर्रिकर की मृत्यु से  सत्ता में एक शून्य उभर आया है्। दूसरी ओर भाजपा ने तेजी से काम करते हुए महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मसला हल करते हुए अपना गठजोड़ कायम रखा है तथा वह गोवा में भी अपनी सत्ता कायम रखने के लिए प्रयासरत है। बिहार में भाजपा ने नीतीश व पासवान के साथ सीटों का तालमेल कर लिया है। अब हमें यह जानने के लिए चुनाव का इंतजार करना होगा कि ये गठबंधन किस तरह चुनाव बाद गठजोड़ की ओर अग्रसर होते हैं। मेरा विचार है कि महागठबंधन तो चुनाव के बाद भी संभव नहीं होगा क्योंकि कोई भी दल किसी दूसरे को नेतृत्व करने के लिए प्रमुखता देने को तैयार नहीं लगता है। हां, गठबंधन की संभावनाएं जरूर दिख रही हैं। कांग्रेस पहले से ही स्थापित पार्टी की स्थिति में जरूर है, किंतु वह सभी विपक्षी दलों को नेतृत्व प्रदान करने के योग्य फिलहाल नहीं लग रही है। इस बात की संभावनाएं नहीं हैं।


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