सैम का बयान और अंबेडकर

By: Mar 23rd, 2019 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

इस मरहले पर बाबा साहिब अंबेडकर का ध्यान आता है। उनकी किताब थॉटस ऑन पाकिस्तान का ध्यान आता है। अंबेडकर ने उस किताब में आशंका जाहिर की थी कि यदि कल अफगानिस्तान भारत पर हमला कर देगा, तो भारत में रह रहे कुछ लोग अफगानिस्तान का समर्थन कर सकते हैं। उस समय इस बात का डर अंबेडकर को भी नहीं था कि यदि पाकिस्तान भारत पर हमला करेगा, तो भारत के ही प्रमुख राजनीतिक नेता पाकिस्तान का भी समर्थन कर सकते हैं…

सैम पित्रोदा का बयान आया है। सैम पित्रोदा कौन हैं? इनके नाम से इसका सहज आभास नहीं होता। पित्रोदा को राजीव गांधी लेकर आए थे। जिस नई क्रांति की कल्पना उन्होंने की थी, उसको साकार रूप देने के लिए उन्होंने पित्रोदा का चयन किया था। पित्रोदा इस काम में कितने कामयाब हुए, कितने  नहीं, यह तो वही जानते होंगे, लेकिन कालांतर में उन्होंने सोनिया गांधी परिवार को विदेश नीति से लेकर स्वदेश नीति तक सभी विषयों में अपनी कीमती सलाह देनी शुरू कर दी। यूपीए के कार्यकाल में यह पित्रोदा नीति-निर्धारकों में गिने जाते थे। आजकल वह राहुल गांधी के नजदीकी सलाहकारों में गिने जाते हैं। अब उन्होंने बहुत महत्त्वपूर्ण बयान पुलवामा हमले को लेकर दिया है। उनका कहना है इस प्रकार के हमले होते ही रहते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि भारत अपने जहाज पाकिस्तान के अंदर ही भेज दे। उन्होंने यह भी कहा इस प्रकार के जो हमले होते हैं, उनमें पाकिस्तान के कुछ व्यक्ति ही शामिल होते हैं, जिस प्रकार 26/11 के मुंबई हमले में सात-आठ लोग शामिल थे। इसलिए उसके लिए पाकिस्तान को भला दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? उन्होंने एक और रहस्योद्घाटन किया कि 26/11 के बाद भी कुछ लोग सलाह दे रहे थे कि पाकिस्तान पर हमला कर दिया जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था और यह संतोष का विषय है कि सरकार ने उस समय पाकिस्तान को दोषी नहीं ठहराया।

इससे यह भी पता चलता है कि यूपीए के कार्यकाल में आतंकवाद को लेकर भारतीय नीति का नियंत्रण किस प्रकार के लोग कर रहे थे। सैम पित्रोदा से पहले समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि पुलवामा में सशस्त्र बलों पर जो हमला हुआ था, उसमें पाकिस्तान या आतंकवादियों का कोई हिस्सा नहीं था। यह तो सरकार ने चुनाव जीतने के लिए एक गहरा षड्यंत्र रचा और उसमें जानबूझकर सीआरपीएफ के चालीस जवान मरवा दिए। रामगोपाल यादव यहीं पर चुप नहीं हुए, उनका कहना था कि जब हमारी सरकार आएगी, तो इस पूरे षड्यंत्र की जांच करवाई जाएगी और उसमें बहुत बड़े-बड़े लोग फंसेंगे।

यानी इस सारे मामले का पाकिस्तान या जैश-ए-मोहम्मद से कुछ लेना-देना नहीं है। यह तो भारत के ही कुछ लोगों ने चुनाव जीतने के लिए ताना-बाना बुना था। रामगोपाल यादव के इस रहस्योद्घाटन से पहले सोनिया गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी का बयान आया था। पुलवामा हमले के बाद विश्व के अनेक देशों ने इस हमले के सूत्रधार मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाने के लिए सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव रखा। यदि यह पास हो जाता, तो पाकिस्तान के लिए जरूरी होता कि अजहर को भारत के हवाले करता। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो सभी देशों को पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने पड़ते। इसलिए पाकिस्तान बहुत ही तनाव में था, लेकिन यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका, क्योंकि चीन ने अपने वीटो के अधिकार का प्रयोग करते हुए इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया। केवल भारत को ही नहीं, बल्कि विश्व के अनेक देशों को इससे दुख हुआ, लेकिन राहुल गांधी ने खुशी से नाचना शुरू कर दिया। उनका कहना था मोदी जी चीन से डर गए हैं। मोदी ने चीन से गलबहियां डाली, लेकिन चीन काबू नहीं हुआ। अब मोदी चुप क्यों हैं? वह चीन से डरते हैं। भाव कुछ ऐसा था कि भारत बेचारे पाकिस्तान को तो डरा सकता है, लेकिन अब चीन से पाला पड़ा है। अब सारी अकड़ निकल जाएगी। वैसे केवल रिकार्ड के लिए बता दिया जाए कि जब चीन के साथ डोकलाम को लेकर विवाद चल रहा था, तो राहुल गांधी चुपचाप दिल्ली स्थित चीन के दूतावास में चले गए थे।  जब भेद खुल गया, तो पहले तो इनकार करते  रहे, लेकिन जब सबूत तैरने लगे तो मानना पड़ा। राहुल गांधी, रामगोपाल यादव और सैम पित्रोदा के बयानों को मिला कर देखा जाए, तो एक तारतम्य दिखाई देता है। जब पाकिस्तान पर चोट पड़ती है, तो तीनों बिलबिलाते हैं। हमला पाकिस्तान पर होता है और दर्द इनके होता है। इनमें से पित्रोदा और राहुल गांधी को एक साथ ही रखा जा सकता है, क्योंकि दोनों एक ही पार्टी के हैं। इनमें वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के पूर्व में दिए गए बयानों को भी शामिल किया जा सकता है। दिग्विजय सिंह ने कहा था कि 26/11 के मुंबई हमले में पाकिस्तान का हाथ नहीं था, बल्कि यह आरएसएस की साजिश थी। रामगोपाल यादव का पुलवामा हमले को लेकर दिया गया बयान लगभग उससे मिलता-जुलता है।

इसमें कोई शक नहीं है कि राहुल गांधी/ सैम पित्रोदा/ दिग्विजय सिंह और समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव यह सब लोकसभा चुनावों में वोट हासिल करने के लिए कर रहे हैं, लेकिन प्रश्न केवल इतना है कि कोई भी पार्टी नेता केवल चुनाव जीतने के लिए परोक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन करने तक कैसे जा सकते हैं?

इस मरहले पर बाबा साहिब अंबेडकर का ध्यान आता है। उनकी किताब थॉटस ऑन पाकिस्तान का ध्यान आता है। अंबेडकर ने उस किताब में आशंका जाहिर की थी कि यदि कल अफगानिस्तान भारत पर हमला कर देगा, तो भारत में रह रहे कुछ लोग अफगानिस्तान का समर्थन कर सकते हैं। उस समय इस बात का डर अंबेडकर को भी नहीं था कि यदि पाकिस्तान भारत पर हमला करेगा, तो भारत के ही प्रमुख राजनीतिक नेता पाकिस्तान का भी समर्थन कर सकते हैं। उस समय उन्होंने सोचा होगा कि कम से कम पाकिस्तान के हमले के मामले में तो सभी राजनीतिक दल एक हो जाएंगे, लेकिन अंबेडकर को एक और आशंका जरूर थी। वह आशंका उन्होंने संविधान सभा में दिए अपने अंतिम भाषण में जाहिर की थी। उन्होंने कहा कि हिंदोस्तान में जयचंदों की कमी नहीं रही है। जयचंदों के कारण भारत ने गुलामी का लंबा दर्द भोगा था। अंबेडकर ने जयचंदों के बारे में अपनी आशंका जाहिर कर दी थी। उस समय लगता था कि शायद अंबेडकर का डर सही नहीं हो। लंबे समय तक गुलाम रहने के कारण भारत में अब और जयचंद नहीं होंगे, लेकिन अब इन लोगों के व्यवहार से लगता है कि अंबेडकर का डर सही था।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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