गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी या विनायक चविथि के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू त्योहार है, जो हिंदू देवता गणेश को श्रद्धांजलि देता है । यह त्योहार निजी तौर पर घरों में और सार्वजनिक रूप से विस्तृत पंडालों (अस्थायी चरणों) पर गणेश की मिट्टी की मूर्तियों (देवता के भक्तिपूर्ण प्रतिनिधित्व) की स्थापना के साथ मनाया जाता है। पालन में वैदिक भजनों और हिंदू ग्रंथों जैसे प्रार्थना और व्रत (उपवास) का जप शामिल है। दैनिक प्रार्थनाओं के प्रसाद और प्रसाद, जो पंडाल से समुदाय में वितरित किए जाते हैं, उनमें मोदक जैसी मिठाइयां शामिल होती हैं क्योंकि यह भगवान गणेश का पसंदीदा माना जाता है। उत्सव शुरू होने के दसवें दि

वरुथिनी या वरूथिनी एकादशी को ‘वरूथिनी ग्यारस’ भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार यह वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी वरूथिनी है। यह पुण्यदायिनी, सौभाग्य प्रदायिनी एकादशी वैशाख वदी एकादशी को आती है। यह व्रत सुख-सौभाग्य का प्रतीक है। यह व्रत करने से सभी प्रकार के पाप व ताप दूर होते हैं, अनंत शक्ति मिलती है और स्वर्गादि उत्तम लोक प्राप्त होते हैं। सुपात्र ब्राह्मण को दान देने, करोड़ों वर्ष तक ध्यानमग्न तपस्या करने तथा कन्यादान के फल से बढक़र वरुथिनी एकादशी का व्रत है। हिंदू वर्ष की तीसरी एकादशी यानी वैशाख कृष्ण एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। वैशाख कृष्ण एकादशी का व्रत भक्तों की

चक्रवात जा चुका और अब तुम अपने केंद्र पर हो, केंद्रित जैसे कभी तुम पहले नहीं थे और अगर एक बार तुम चीजों को अपने से ही होने की कला जान लो तब तुम वह मास्टर कुंजी पा सकोगे, जिससे अपने भीतर के द्वार खोले जा सकते है। फिर चाहे जो भी स्थिति हो, उसे होने दो, उसे टालो मत। अगर तीन महीनों के लिए तुम बिलकुल एकांत में रह सको, पूर्ण मौन में, किसी भी चीज का विरोध न करते हुए, प्रत्येक चीज को बिना किसी विरोध के घटित होते देखते हुए, चाहे जो भी हो, तब तीन महीनों के भीतर ही सब

ऐसा करते-करते उसने सभी सेबों में सुराख कर दिए। दो दिन बाद सेब देखे तो सभी गले हुए थे, काले हो गए थे, क्योंकि सबके अवगुण गिन-गिन कर पेन से सुराख किए थे। इस तरह उसने अपना ही नुकसान किया। दूसरी तरफ उस आदमी के भाई के पास कुछ सेब थे। उसने एक सेब उठाया और हाथ में लेकर कहा, यह सेब तो महेंद्र का है और उसी की तरह बिलकुल मीठा है, मुझे तो मिठास चाहिए। ये कहकर उसने उस सेब को खा लिया। फिर दूसरा सेब उठाकर कहा, यह तो जोगिंद्र का है जो कि भक्ति वाला है, मु

द्रोणनगरी के कण-कण में शंकर बसे हैं। यहां भगवान शंकर के कई पौराणिक मंदिर हैं जो प्राचीन काल की कथाएं कहते हैं। ऐसा ही एक पांडवकालीन मंदिर है, टपकेश्वर महादेव।

ब्रह्मा जी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि को इन्होंने पति के रूप में प्राप्त किया था। अपनी सतत सेवा तथा प्रेम से इन्होंने महर्षि अत्रि के हृदय को जीत लिया था। 28 अप्रैल को सती अनुसूइया जयंती मनाई जाएगी...

हमारी संस्कृति में आत्मा और शरीर व जीवन चक्र को लेकर कई सीख दी जाती है। हमेशा से ये ही सिखाया जाता है कि कैसे एक जन्म के कर्म, दूसरे जन्म को प्रभावित करते हैं। आत्मा शरीर को कैसे बदलती है...

हिमाचल प्रदेश की खूबसूरती किसी परिचय की मोहताज नहीं है। यहां की सुंदर प्राकृतिक छटा देखने के लिए हर साल यहां बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि हिमाचल प्रदेश में कुछ प्राचीन मंदिर भी हैं...

इतना ही नहीं उन्होंने स्वामी जी के लिए शिकागो तक का टिकट खरीद दिया और धर्म सम्मेलन के अधिकारियों के नाम पत्र भी लिख दिया। यह सब माने पूर्वनियोजित दैवी व्यवस्था के अनुसार हुआ और स्वामी जी से कहा, आप शिकागो महासभा में हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में जरूर जाइए। मुझे पूरा यकीन है कि आप वेदांत प्रचार के काम में ज्यादा सफलता हासिल कर सकते हैं। स्वामी जी ने नए उत्साह के साथ शिकागो की यात्रा की। रात के समय ट्रेन वहां पहुंची। स्वामी जी जिस जोश व हिम्मत से वहां के लिए रवाना हुए थे, शिकागो रेलवे स्टेशन पर उतरने के साथ ही वो लुप्त हो गया। समिति के कार्यालय का पता न जाने कहां खो गया,