शीतकालीन खेलों में हिमाचली

By: Mar 1st, 2019 12:07 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

हिमाचल में अगर विश्व स्तरीय शीतकालीन खेलों की सुविधा होगी, तो यहां पर अधिकतर एशियाई स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित होती रहेंगी, जैसे जापान के नागानों में हर वर्ष कोई न कोई प्रतियोगिता होती रहती है। हर वर्ष ओलंपिक व एशियाई खेलों से पहले भारतीय खिलाड़ी विदेशी धरती पर महीनों देश के करोड़ों रुपए खर्च कर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। जब यह सुविधा अपने प्रदेश में होगी, तो उसी धन से हर वर्ष इसमें खेल सुविधाओं में और अधिक सुधार किया जा सकता है…

समर ओलंपिक में जहां एथलेटिक, तैराकी, जिम्नास्टिक सहित अन्य सभी व्यक्तिगत व टीम खेलों का आयोजन होता है, ठीक उसी प्रकार बर्फ पर खेली जाने वाली स्पर्धाओं के लिए भी ठीक चार वर्ष के अंतराल में शीतकालीन ओलंपिक होते हैं। यूरोप व अमरीका में अधिकतर समय बर्फ पड़ी होने के कारण वहां पर शीतकालीन खेलों का जन्म हुआ। न्यूजीलैंड-आस्टे्रलिया भी शीतकालीन खेलों में पहले से ही आगे रहे हैं। भारत में अधिकतर भू-भाग पूरा वर्ष गर्म रहने वाला है। हिमालयी राज्यों में उत्तर पूर्व व जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद होने के कारण वहां पर शीतकालीन खेलों के द्वार बंद ही समझो। हां, गुलमर्ग तथा कश्मीर में अन्य जगह बर्फ की खेलों के लिए बहुत अच्छे ट्रैक हैं, मगर पिछले कई दशकों से वहां खेल मुमकिन नहीं है। शेष राज्यों में उत्तराखंड, सिक्किम, बंगाल हिल्ज के साथ हिमाचल बचता है।

हिमाचल में राष्ट्रीय पर्वतारोहण संस्थान मनाली में होने के कारण वहां पर शीतकालीन खेलों के लिए अच्छा कार्य होता रहा है। कुल्लू जिला के कई नामी पर्वतारोही व शीतकालीन खेलों के ओलंपियन हैं। शिव केशवन आधा दर्जन बार शीतकालीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है। यह अलग बात है कि उसने इटली के फ्लोरेंस विश्वविद्यालय में खेल वजीफे पर की पढ़ाई के दौरान इसी विश्वविद्यालय की टेक के माध्यम से ल्यूज के गुर सीखे और पहली बार 1998 के शीतकालीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उसके बाद 2002, 2006, 2010, 2014 व 2018 शीतकालीन ओलंपिक खेलों में शिवा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया, एशियाई ल्यूज प्रतियोगिताओं में भारत को स्वर्ण पदकों सहित लगभग हर प्रतियोगिता में कोई न कोई पदक जरूर जिताता रहा है। एशिया का तीव्रतम ल्यूज पैडलर का खिताब, जो 134.3 किलो मीटर प्रति घंटा की रफ्तार का है, 2011 में शिव केशवन ने जापान के नागानों शहर के ट्रैक पर बनाया है। भारत की ओलंपिक टीम में अधिकतर सदस्य हिमाचल में आ रहे हैं, मगर विदेशों जैसी खेल सुविधा, उपकरण व किट अभी तक हमारे यहां के खिलाडि़यों को उपलब्ध नहीं हो पाई है। मनाली में भारत का पर्वतारोहण संस्थान होने के कारण कुल्लू जिला के कई लड़के व लड़कियों ने पर्वतारोहण में एवरेस्ट फतह करने तक अपनी पहुंच बनाई है। हिमाचल में शिमला, किन्नौर, लाहुल-स्पीति, चंबा, कुल्लू तथा मंडी जिलों में बर्फ पड़ती है। यहां पर बर्फ की खेलों के लिए ट्रैक चिन्हित किए जा सकते हैं। पहले से खोजी गई मनाली, कुफरी व खजियार की ढलानों को और विकसित कर प्रशिक्षण व प्रतियोगिता के लिए उत्तम बनाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश शीतकालीन खेल संघ को भी प्रदेश व केंद्र सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर जहां उच्च स्तरीय सुविधाओं का विकास करवाना चाहिए, वहीं पर खेल के प्रचार-प्रसार पर भी ध्यान देना होगा। संघ को अधिक से अधिक बच्चों तक पहुंच बनाकर उन्हें ट्रैक पर पहुंचाना होगा, तभी हम उनमें से भविष्य के उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विजेता निकाल पाएंगे। अगर हमारे पास शीतकालीन खेलों के लिए सुविधा होगी, तो उससे पर्यटन को भी खूब बढ़ावा मिलेगा।

बर्फ के अधिकतर खेलों में साहस व रोमांच होता है, जो सैलानियों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करता है। जब कश्मीर में उग्रवाद नहीं था, तो अधिकतर सैलानी गुलमर्ग की ढलानों पर बर्फ की खेलों के रोमांच के लिए भी वहां जाते थे। प्राकृतिक नजारों के साथ-साथ बर्फ की खेलों के लिए बनी सुविधा भी हिमाचल में पर्यटन को बढ़ावा देगी। हिमाचल प्रदेश का वातावरण शीतकालीन खेलों के लिए बहुत ही अनुकूल है। हिमाचल में अगर विश्व स्तरीय शीतकालीन खेलों की सुविधा होगी, तो यहां पर अधिकतर एशियाई स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित होती रहेंगी, जैसे जापान के नागानों में हर वर्ष कोई न कोई प्रतियोगिता होती रहती है। इससे जहां हिमाचल के किशोरों व युवाआें को खेल के गुर सीखने को मिलेंगे, वहीं पर पर्यटन भी खूब फलेगा-फूलेगा। हर वर्ष ओलंपिक व एशियाई खेलों से पहले भारतीय खिलाड़ी विदेशी धरती पर महीनों देश के करोड़ों रुपए खर्च कर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। जब यह सुविधा अपने प्रदेश में होगी, तो उसी धन से हर वर्ष इसमें खेल सुविधाओं में और अधिक सुधार किया जा सकता है। बर्फ के प्रदेश में बर्फ की खेलों के लिए विश्व स्तरीय सुविधाओं को विकसित करने का अब समय आ गया है, ताकि यहां की संतानें यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को गौरव दिला सकें।

ई-मेल : bhupindersinghhmr@gmail.com

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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