कारतूसों पर प्रयोग की जाती थी गाय और सुअर की चर्बी
गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से यहां के सैनिकों में असंतोष फैला हुआ था। सिरमौर बटालियन के ब्रिटिश कमांडर मेजर चार्ल्स रीड़ असंतुष्ट सैनिकों को कूच के लिए बाध्य न कर सके और भयानक विद्रोह की संभावना बढ़ती गई। सिरमौर रियासत के शासक से विशेष नाबालिग राजा की सहायता के लिए कुंवर सुर्जन सिंह और बीर सिंह को सहायक प्रशासक नियुक्त किया गया…
गतांक से आगे …
नालागढ़ में विद्रोह
नालागढ़ की रियासती सरकार ने अपने 100 सैनिक कैप्टन ब्रिगज के अधिकार में रख दिए। कैप्टन ब्रिगज ने नालागढ़ के पालासी किले में एक सैनिक दस्ता किले की रक्षा के लिए तैनात किया और अन्य सैनिक दस्तों को रियासत के मुख्य मार्गों और नौ घाटों पर तैनात किया, ताकि क्रांतिकारी सैनिकों को सतलुज पार कर रियासत में प्रवेश करने से रोका जा सके। 20 जून , 1857 ई. तक नालागढ़ के विद्रोह की विस्फोटक स्थिति पर काबू पा लिया गया। कैप्टन ब्रिगज उसी दिन शिमला की ओर रवाना हुए, ताकि शिमला में यूरोपीय नागरिकों की सुरक्षा का प्रबंध किया जा सके।
सिरमौर में जनाक्रोश
ब्रिटिश सेना के कमांडर इन चीफ जॉर्ज एनसन ने 11 मई, 1857 ई. को सिरमौर रियासत के नाहन नगर में तैनात सिरमौर बटालियन के गोरखा सैनिकों को तुरंत ही अंबाला की ओर कूच करने का आदेश दिया। असंतुष्ट और उत्तेजित सैनिकों ने इस आदेश का पालन नहीं किया और अंबाला की ओर बढ़ने से इनकार कर दिया। गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतुसों के प्रयोग से यहां के सैनिकों में असंतोष फैला हुआ था। सिरमौर बटालियन के ब्रिटिश कमांडर मेजर चार्ल्स रीड़ असंतुष्ट सैनिकों को कूच के लिए बाध्य न कर सके और भयानक विद्रोह की संभावना बढ़ती गई। सिरमौर रियासत के शासक से विशेष नाबालिग राजा की सहायता के लिए कुंवर सुर्जन सिंह और बीर सिंह को सहायक प्रशासक नियुक्त किया गया। इन दोनों प्रशासकों ने जनसाधारण में फैले भारी असंतोष को विद्रोह में बदलने से पहले ही शांत कर दिया और सिरमौर बटालियन की उत्तेजना भी कुछ कम हो गई। पांवटा क्षेत्र में निर्माण कार्य में लगे सैपर्ज सैनिकों की विप्लवकारी गतिविधियों भी शिथिल पड़ गईं। 22 मई, 1857 ई. को सुपरिनटेंडैंट शिमला हिल स्टेट्स मेजर जीसी बार्नस ने कुंवर सुर्जन सिंह और बीर सिंह को सिरमौर में पहुंचे अंग्रेज भगौड़े शरणार्थियों की देखरेख और सुरक्षा का प्रबंध करने का आदेश दिया। उस समय तक सिरमौर में विद्रोह का खतरा टल चुका था और सिरमौर बटालियन तथा सैपर्ज सैनिक सरकार के नियंत्रण में थे। 28 मई, 1857 ई. को सिरमौर बटालियन ने विद्रोह त्याग कर सकरारी आदेश का पालन किया और दिल्ली की ओर कूच करने के लिए राजी हो गई। 2 जुन, 1857 ई. को सिरमौर बटालियन बुलंदशहर पहुंच चुकी थी। सिरमौर को रियासती सरकार विद्रोह को दबाने में सफल रही। 29 जुलाई, 1857 ई. के एक ज्ञापन के अनुसार दरबार ने विद्रोह के दौरान अंग्रेजों को 20,000 रुपए की आर्थिक सहायता भी प्रदान की।
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