तंत्र ग्रंथों में मारक के कई प्रयोग

By: Apr 6th, 2019 12:05 am

नीति, धर्म, मनुष्यता और ईश्वरीय विधान की सुस्थिरता की दृष्टि से ऐसे प्रयोगों का किया जाना नितांत अनुचित और अवांछनीय है। यदि इस प्रकार की गुप्त हवाओं का तांता चल पड़े तो उससे लोक व्यवस्था में भारी गड़बड़ी उपस्थित हो जाए और परस्पर के सद्भाव एवं विश्वास का नाश हो जाए। हर व्यक्ति दूसरों को आशंका, संदेह एवं अविश्वास की दृष्टि से देखने लगे। इसलिए तंत्र विद्या के भारतीय ज्ञाताओं ने इन क्रियाओं को निषिद्ध घोषित करके उन विधियों को गोपनीय रखा है…

-गतांक से आगे…

उपर्युक्त अन्टिकर प्रयोग अकसर होते हैं, ये तंत्र विद्या द्वारा हो सकते हैं। पर नीति, धर्म, मनुष्यता और ईश्वरीय विधान की सुस्थिरता की दृष्टि से ऐसे प्रयोगों का किया जाना नितांत अनुचित और अवांछनीय है। यदि इस प्रकार की गुप्त हवाओं का तांता चल पड़े तो उससे लोक व्यवस्था में भारी गड़बड़ी उपस्थित हो जाए और परस्पर के सद्भाव एवं विश्वास का नाश हो जाए। हर व्यक्ति दूसरों को आशंका, संदेह एवं अविश्वास की दृष्टि से देखने लगे। इसलिए तंत्र विद्या के भारतीय ज्ञाताओं ने इन क्रियाओं को निषिद्ध घोषित करके उन विधियों को गोपनीय रखा है। आजकल परमाणु बम बनाने के रहस्यों को बड़ी सावधानी से गुप्त रखा जा रहा है ताकि उनकी जानकारी सर्वसुलभ  हो जाने से कहीं उनका दुरुपयोग न होने लगे। उसी प्रकार इन अभिचारों को भी सर्वथा गोपनीय रखने का ही नियम बनाया गया है। शारदा तिलक तंत्र के गायत्री पटल में इस प्रकार के अभिचारों का वर्णन है। इसमें संकेत रूप से उन विस्तृत क्रियाओं का थोड़ा-थोड़ा आभास कराया गया है। वह संकेत सर्वथा अपूर्ण एवं असंबद्ध है तो भी उस सूत्र के आधार पर यह जाना जा सकता है कि कार्य को पूरा करने के लिए किस प्रणाली का अवलंबन करना होगा, किन वस्तुओं की प्रधान रूप से आवश्यकता होगी। इन संकेतों के द्वारा मार्ग पर चलने वाले को किसी न किसी प्रकार उन गुप्त रहस्यों की जानकारी हो ही जाएगी। आगे शारदा तिलक तंत्र के कुछ ऐसे अभिचार सूत्र दिए गए हैं जिनसे इस प्रकार की विधियों पर कुछ प्रकाश पड़ता है और यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस प्रकार गायत्री से सात्विक लाभ उठाए जाते हैं, उसी प्रकार उससे तामसिक कार्य भी किए जा सकते हैं। परंतु ऐसा उपयोग करना किसी भी प्रकार उचित नहीं कहा जा सकता। इसलिए उन विधानों को गुप्त ही रखा जा रहा है। आगे कुछ अभिचार संकेतों के श्लोक दिए जा रहे हैं ः

धत्तूर विषवृषक्षार्कभूरूहोत्थान्समिद्वान्।

रराजीतैलेन संलिप्तान पृथक्सप्तसहस्त्रकम्।।

जुहुयात् संयतो मंत्रों, रिपुयमपुर ब्रजेत।।

धतूरा, कुचिला तथा राई के तेल से युक्त श्रेष्ठ समाधियों से पृथक सात हजार आहुति जितेंद्रिय हो दे तो शत्रु यमपुर को जाए।

 

 


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