विभाजन से वायनाड तक

By: Apr 6th, 2019 12:07 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

 

केवल सत्ता के लिए मुस्लिम लीग से हाथ मिला लेना, एक प्रकार से सोनिया कांग्रेस का राष्ट्रवादी कदम ही माना जाएगा। यदि आज नेहरू-पटेल और महात्मा गांधी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिंदा होती, तो क्या वह मुस्लिम लीग के हाथों अपनी यह दूसरी पराजय स्वीकार कर लेती? वह मुस्लिम लीग से लड़ती या उसकी शरण में चली जाती? यह ठीक है कि नेहरू, मुस्लिम लीग के हाथों हार गए थे, लेकिन वह लड़ते-लड़ते अंत में हारे थे, परंतु सोनिया कांग्रेस तो मुस्लिम लीग के साथ मिलकर भारत को पराजित कर रही है। यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि मुस्लिम लीग को उस समय गोरे मूल के एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति लार्ड माऊंटबेटन का समर्थन हासिल था। क्या इसे संयोग ही कहना होगा कि इस समय केरल में गोरे मूल की एक और महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व सोनिया माइनो का समर्थन मिल गया है…

मुस्लिम लीग का एकमात्र राजनीतिक एजेंडा भारत का विभाजन करवाना था और पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस का एकमात्र एजेंडा किसी भी तरह भारत का विभाजन रुकवाना था। महात्मा गांधी तो यहां तक कहते रहे कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। नेहरू तो मुस्लिम लीग के जिन्ना की भारत विभाजन की मांग पर हंसते थे और उसे भाव तक नहीं देते थे, लेकिन अपने आपको राजनीति के चतुर सुजान समझने वाले पंडित नेहरू मुस्लिम लीग के हाथों पराजित ही नहीं हुए, बल्कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यकारिणी में उन्होंने स्वयं भारत विभाजन का प्रस्ताव ही नहीं रखा, अपितु उसे स्वीकार कर लेने के लिए लंबा भाषण भी दिया।  मुस्लिम लीग के हाथों यह पंडित नेहरू की अपमानजनक व्यक्तिगत पराजय तो थी ही,  यह अपने आप में राष्ट्रवादी भी थी। इस  राष्ट्रवादी घटना को हुए सात दशक से भी ज्यादा बीत गए हैं, लेकिन मुस्लिम लीग की जीत और नेहरू की पराजय की यह टीस अभी तक भी भारतीयों को सालती रहती है। जिन दिनों मुस्लिम लीग ने पंडित नेहरू को पराजित किया था, उन दिनों उसका अस्तित्व उत्तर भारत या थोड़ा बहुत पूर्वोत्तर में था, लेकिन भारत विभाजन के उपरांत उसके प्रति लोगों का गुस्सा इतना ज्यादा था कि उसने उत्तर भारत के मैदानों से भागकर दक्षिण भारत में जाकर शरण ली।   दक्षिण भारत में वह कभी आमान की पार्टी नहीं बन पाई।

भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के कारण वह इधर-उधर कहीं न कहीं इक्का-दुक्का सीट जीत भर लेती थी, लेकिन लगता है इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक के अंत में इतिहास एक बार फिर अपने आपको दोहराने की स्थिति में पहुंच गया है। पंडित नेहरू के दिनों में जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी, उस पर अब इतालवी मूल की सोनिया जी का कब्जा हो गया है। सोनिया के पति राजीव गांधी  इंदिरा के बेटे थे और इंदिरा नेहरू की बेटी थी। इस लंबी भूलभुलैया में राहुल गांधी का भी कहीं न कहीं संबंध नेहरू परिवार से जुड़ता ही है, लेकिन इसे इतिहास का दुर्योग ही कहना होगा कि भारत विभाजन के 72 साल बाद आज नेहरू परिवार से परोक्ष रूप से ही जुड़े हुए राहुल गांधी को भारतीय लोकसभा की एक अदद सीट जीतने के लिए मुस्लिम लीग की शरण में जाना पड़ रहा है। राहुल गांधी अपने तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए मुस्लिम लीग को प्रतिष्ठा प्रदान कर रहे हैं। वह भारत में मर चुकी मुस्लिम लीग में नए प्राण डाल रहे हैं। मुस्लिम लीग ने पहली बार 1947 में नेहरू समेत कांग्रेस को राजनीतिक पटकनी दी थी और अब 2019 में उसने एक बार फिर राहुल गांधी को अपने चरणों में झुकाकर दूसरी बार पटकनी दी है। जिस कांग्रेस को मुस्लिम लीग से लड़ना चाहिए था, वही कांग्रेस मुस्लिम लीग की शरण में चली गई। राहुल गांधी केरल के वायनाड से जब लोकसभा का पर्चा दाखिल करने के लिए गए, तो जिस गर्मजोशी से मुस्लिम लीग ने अपने हरे झंडे लहरा-लहरा कर उनका स्वागत किया, वह देखते ही बनता था।

पंजाब और हिमाचल के उस पीढ़ी के लोगों को यकीनन याद होगा, 1947 से पहले लाहौर में जब मुस्लिम लीग भारत विभाजन की मांग को लेकर जुलूस निकाला करती थी, तो इसी प्रकार का दृश्य हुआ करता था। अब पता चला है कि राहुल गांधी के समर्थकों ने मुस्लिम लीग से अनुरोध किया है कि राहुल गांधी के समर्थन में इस प्रकार खुलेआम अपने चांद वाले हरे झंडे लहरा कर शंकित प्रदर्शन न करें, क्योंकि इससे देश भर में प्रतिक्रिया हो सकती है। केवल सत्ता के लिए मुस्लिम लीग से हाथ मिला लेना, एक प्रकार से सोनिया कांग्रेस का राष्ट्रवादी कदम ही माना जाएगा। यदि आज नेहरू-पटेल और महात्मा गांधी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिंदा होती, तो क्या वह मुस्लिम लीग के हाथों अपनी यह दूसरी पराजय स्वीकार कर लेती? वह मुस्लिम लीग से लड़ती या उसकी शरण में चली जाती? यह ठीक है कि नेहरू, मुस्लिम लीग के हाथों हार गए थे, लेकिन वह लड़ते-लड़ते अंत में हारे थे, परंतु सोनिया कांग्रेस तो मुस्लिम लीग के साथ मिलकर भारत को पराजित कर रही है। यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि मुस्लिम लीग को उस समय गोरे मूल के एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति लार्ड माऊंटबेटन का समर्थन हासिल था।

क्या इसे संयोग ही कहना होगा कि इस समय केरल में गोरे मूल की एक और महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व सोनिया माइनो का समर्थन मिल गया है। वायनाड में राहुल गांधी ने तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए मुस्लिम लीग के सांपों को दूध पिलाने का काम शुरू कर दिया था। केरल में मुस्लिम लीग से हाथ मिलाने से पहले राहुल गांधी एक बार बाबा साहिब अंबेडकर की किताब थॉटस ऑन पाकिस्तान में मुस्लिम लीग की भूमिका को ही पढ़ लेते। मुस्लिम लीग के इस समझौते से सोनिया कांग्रेस को कितना लाभ मिल पाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना निश्चित है कि इससे मरी हुई मुस्लिम लीग में एक बार फिर जान पड़ जाएगी।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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