सरकारी बैंकों की सर्जरी

By: Apr 2nd, 2019 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

कुल आकलन इस प्रकार बैठता है। सरकारी बैंक अकुशल हैं, जबकि प्राइवेट बैंक इनकी तुलना में कुशल हैं। सरकारी बैंक की जवाबदेही आधी है, जबकि प्राइवेट बैंक में इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती है। सामाजिक दायित्व में सरकारी और प्राइवेट बैंक लगभग बराबर पड़ते हैं। अतः कुल मिलाकर सरकारी बैंकों को जनता की कमाई से पूंजी उपलब्ध करने का कोई औचित्य नहीं बनता है…

वर्ष 2017-2018 में केंद्र सरकार ने सरकारी बैंकों को 88 हजार करोड़ रुपए की पूंजी उपलब्ध कराई है। वर्तमान वर्ष 2018-19 में अब तक केंद्र सरकार लगभग 100 हजार करोड़ रुपए की पूंजी उपलब्ध करा चुकी है। ये रकमें सरकारी बैंकों को इसलिए उपलब्ध करनी पड़ी थीं, क्योंकि इनके द्वारा घाटा खाया जा रहा था और इनके डूबने की शंका थी। ये न डूबें इसलिए सरकार ने इसमें पूंजी निवेश किया। इन रकमों की विशालता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार का वर्तमान वर्ष में कुल खर्च लगभग 24 लाख करोड़ रुपए है। इसमें एक लाख करोड़ रुपए सरकारी बैंकों में पूंजी निवेश के रूप में किया गया है। सरकार के खर्च के प्रत्येक एक रुपए में लगभग चार पैसे सरकारी बैंकों को पूंजी के रूप में दिए जा रहे हैं। इस रकम की विशालता का दूसरा अनुमान यह है कि वर्तमान वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा में लगभग 50 हजार करोड़ रुपए की पूंजी का खर्च किया जा रहा है। जितनी रकम से पूरे देश में मनरेगा चलाया जा रहा है, उससे दोगुनी रकम सरकारी बैंकों को अपने घाटे की भरपाई के लिए पूंजी के रूप में दी जा रही है। यह दुरूह परिस्थिति हमें अवसर देती है कि सरकारी बैंकों की मूल दिशा पर विचार करें। सरकारी बैंकों की सही स्थिति जानने के लिए इनकी तुलना प्राइवेट बैंकों के साथ तीन मानकों पर की जा सकती है। पहला मानक कार्य कुशलता का है। सरकारी बैंकों द्वारा लगातार घाटा खाने से यह स्पष्ट दिखता है कि इनकी कार्यशैली कुशल नहीं है।

इनके बैंक के अधिकारियों का कहना रहता है कि राजनीतिक दखल के कारण इन्हें तमाम ऐसे लोन देने पड़ते हैं, जो उनकी नजर में सही नहीं होते हैं। यह सरकारी बैंकों की ढांचागत समस्या है। चूंकि सरकारी बैंकों पर केंद्र सरकार के वित्त सचिव का नियंत्रण रहता है और उनके बोर्ड की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, इसलिए बैंक के अधिकारियों का सहज ही झुकाव केंद्र सरकार के दिशानुसार काम करने का हो जाता है। प्राइवेट बैंकों में इस प्रकार का कोई संकट नहीं रहता है। प्राइवेट बैंकों के अधिकारी की दृष्टि बैंक द्वारा प्रोफिट कमाए जाने की ओर रहती है। इसलिए प्राइवेट बैंकों में खटाई में पड़े हुए ऋण कम ही होते हैं। अतः कुशलता के मापदंड पर प्राइवेट बैंक उत्तम दिखते हैं। दूसरा मापदंड जनता के प्रति जवाबदेही है। सरकारी बैंकों की जवाबदेही मूलतः सरकार के प्रति होती है। इनके बोर्डों में नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। बीते समय में कई सरकारी बैंकों के शेयरों को बाजार में लिस्ट भी किया गया है। लिस्ट होने से इनके शेयरों के दाम में उतार-चढ़ाव होने से भी इनकी जवाबदेही बनती है। जैसे यदि किसी बैंक का कार्य ठीक नहीं होता है, तो शेयर बाजार में इसके शेयर के दाम गिरने लगते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि सरकारी बैंकों में आधी जवाबदेही होती है। यह इसलिए कि शेयर बाजार में किसी बैंक के शेयर के दाम गिर भी जाए, तो भी बैंक पर नियंत्रण केंद्र सरकार का ही बना रहता है। बीते समय देखा गया है कि जब बैंकों पर जीवित रहने का संकट मंडराने लगा है, तो केंद्र सरकार ने इन्हें पूंजी उपलब्ध करवाई, यानी इनकी जवाबदेही असफल थी। यदि ये बैंक प्रोफिट नहीं कमा पा रहे थे, तो इनके ऊपर सख्त कदम उठाए जाने चाहिए थे, जो कि नहीं उठाए गए। प्राइवेट बैंकों की जवाबदेही अपने मालिक के प्रति होती है, क्योंकि मालिक लाभ कमाने के उद्देश्य से इन बैंकों को चलाते हैं। इसलिए जनता के प्रति इनकी जवाबदेही की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः जवाबदेही की दृष्टि से सरकारी बैंक में आधी जवाबदेही स्थापित होती है, जबकि प्राइवेट बैंकों में इसकी कोई जरूरत ही नहीं रहती है। तीसरा मापदंड सामाजिक दायित्व का है। इसमें कोई संशय नहीं है कि सरकारी बैंकों ने ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएं खोली हैं और तमाम सरकारी योजनाओं को इन्होंने चलाया है, जैसे जनधन एवं मुद्रा योजना। अंत में इन ग्रामीण शाखाओं का परिणाम यह होता है कि ग्रामीण क्षेत्र की पूंजी शहर को जाती है। बैंकों की कार्य कुशलता का एक मान्य मानदंड क्रेडिट-डिपोजिट रेशो होता है। बैंक द्वारा जो रकम उधार दी गई, उसे क्रेडिट और जो रकम जमा की गई, उसे डिपोजिट कहा जाता है। यदि बैंक ने 30000 का ऋण दिया और एक लाख रुपए के डिपोजिट स्वीकार किए, तो क्रेडिट-डिपोजिट रेशो 0.30 स्थापित होता है। यदि क्रेडिट-डिपोजिट रेशो एक के ऊपर हो, तो अर्थ होता है कि बैंक द्वारा पैसा कम जमा किया जा रहा है और ऋण ज्यादा दिए जा रहे हैं। इसके विपरीत जब क्रेडिट-डिपोजिट रेशो एक से कम होता है, तो अर्थ होता है कि बैंक द्वारा अपने क्षेत्र में जमा ज्यादा और ऋण कम दिए जा रहे हैं। आम रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों का क्रेडिट-डिपोजिट रेशो 0.2 से 0.3 रहता है।  इसका अर्थ हुआ कि ग्रामीण क्षेत्र के बैंकों में यदि 100 रुपया जमा कराया जाता है, तो बैंक द्वारा उस क्षेत्र के उद्यमियों को मात्र 20.30 रुपया दिया जाता है।

मुंबई के बैंकों का क्रेडिट-डिपोजिट रेशो ज्यादा होने से यह प्रमाणित होता है कि वहां पर जमा कम और ऋण ज्यादा दिए जा रहे हैं। परिणाम यह है कि ग्रामीण क्षेत्र के बैंकों की शाखाओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्र की पूंजी को खींचकर मुंबई पहुंचाया जा रहा है। अतः यह विचारणीय है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक खोलने से सामाजिक दायित्व की पूर्ति किस प्रकार होती है। मेरी समझ से दायित्व की पूर्ति तब होती है, जब शहर में जमा की गई पूंजी को इन बैंकों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण के रूप में दिया जा रहा होता, लेकिन ऐसा नहीं है। इसलिए सार्वजनिक बैंकों द्वारा सामाजिक दायित्व की पूर्ति भी आधी ही मानी जाएगी। निजी बैंकों को भी रिजर्व बैंक द्वारा आदेश दिए जाते हैं कि वे दिए गए कुल ऋणों का एक हिस्सा प्रायोरिटी सेक्टर को दिया करेंगे, जैसे कृषि अथवा छोटे उद्यमों को। मेरी जानकारी में प्राइवेट बैंकों द्वारा भी इन नियमों का अनुपालन आधे मन से ही हो रहा है। इसलिए सामाजिक दायित्व के मापदंड पर सरकारी और प्राइवेट बैंक एक सरीखे पड़ते हैं।

कुल आकलन इस प्रकार बैठता है। सरकारी बैंक अकुशल हैं, जबकि प्राइवेट बैंक इनकी तुलना में कुशल हैं। सरकारी बैंक की जवाबदेही आधी है, जबकि प्राइवेट बैंक में इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती है। सामाजिक दायित्व में सरकारी और प्राइवेट बैंक लगभग बराबर पड़ते हैं। अतः कुल मिलाकर सरकारी बैंकों को जनता की कमाई से पूंजी उपलब्ध करने का कोई औचित्य नहीं बनता है। इस पूंजी निवेश का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि इनमें व्याप्त घोटाले और अकुशलताओं पर पर्दा डाल दिया जाए। अतः मेरा स्पष्ट मानना है कि हमें सरकारी बैंकों का निजीकरण कर देना चाहिए। इनके निजीकरण से मिली रकम का उपयोग रिसर्च और अन्य जरूरी कार्यों में लगाना चाहिए। जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए टैक्स से इनकी अकुशलता को पोषित करने का कोई औचित्य नहीं है।

ई-मेल :  bharatjj@gmail.com


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