सुमन रावत का खेल सफर

By: Apr 5th, 2019 12:07 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

24 दिनों में तीन मैराथन दौड़कर लिम्का बुक में अपना नाम भी सुमन रावत दर्ज करा चुकी हैं। 1988 में चंद्र प्रकाश मेहता से शादी कर आज सुमन रावत मेहता बेटी रुद्राक्षी व बेटे राहुल की मां है। 1984 से प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग में अपना खेल प्रशासक का करियर शुरू करके उपनिदेशक, सहनिदेशक, संयुक्त निदेशक व फिर हिमाचल प्रदेश की पहली विभागीय महिला निदेशक होने का गौरव भी पाया। यह अलग बात है कि निदेशक पद पर सुमन रावत को एक सप्ताह से भी कम समय तक रहने का मौका मिला। अच्छा होता यह पद इस जुझारू खिलाड़ी को बहुत पहले मिल जाता…

अस्सी के दशक में जब हिमाचल प्रदेश अपने शैशवकाल से आगे बढ़ रहा था तो यहां पर किसी भी विषय के लिए न तो पर्याप्त शिक्षण संस्थान थे और न ही युवा गतिविधियों के लिए सुविधा थी, मगर ऐसे में भी स्वर्गीय प्रताप सिंह रावत व उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय वी रावत अपनी बेटी का भविष्य खेल क्षेत्र में तलाशने की हिम्मत कर चुके थे। इस बर्फ के प्रदेश में खेल सुविधाओं के अभाव में कई खेल प्रतिभाएं अपने दम पर कुछ देर तक चमकी और बुझ गई। बहुत से अच्छे खेल करियर वाले खिलाड़ी प्रदेश से पलायन कर गए, मगर सुमन रावत एक ऐसा उदाहरण है, जो हिमाचल में रहकर प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा कर कामयाब होकर दूसरों के लिए आज प्रेरणा का स्रोत हैं।

तीन दशक पूर्व जब राष्ट्रीय एथलेटिक्स में  केरल की पीटी ऊषा जहां तेज गति की दौड़ों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही थी, वहीं पर हिमाचल की सुमन रावत लंबी दूरी की दौड़ों की सरताज बनी हुई थी। शिमला के पोर्टमोर स्कूल में सातवीं कक्षा की छात्रा सुमन रावत ने खो-खो से अपने खेल सीजन की शुरुआत की। अगले दो वर्षों में हाकी में दक्षता हासिल कर 1978 में अपना पहला स्कूली नेशनल टूर्नामेंट हिमाचल स्कूली हाकी टीम की सदस्य बनकर नागपुर में खेला। 1980 मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित राष्ट्रीय हाकी प्रतियोगिता में उम्दा प्रदर्शन कर राष्ट्रीय चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में जगह बनाई, मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर न लगने के कारण एथलेटिक्स की अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में शिरकत कर आगामी जीवन एथलेटिक्स की तरफ मुड़ गया।

एक समय था जब सुमन रावत  तथा उसकी चारों बहनें राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल हाकी टीम की सदस्य थीं। इन बहनों का प्यार व साथ आज भी बरकरार है। 1983 में पहली बार सुमन रावत ने राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में प्रदेश विश्वविद्यालय के लिए पदक जीता था। घर पहुंचने पर पिता ने अपनी विजेता पुत्री की आरती यह कहकर उतारी थी कि मेरा बेटा हिमाचल के लिए गौरव दिलाकर आया है। 1984 में दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय अंतर राज्य एथलेटिक्स प्रतियोगिता में सुमन रावत ने प्रदेश के लिए पहला स्वर्ण पदक 1500 मीटर में जीता था। इसी प्रतियोगिता में राष्ट्रीय रिकार्ड के साथ सुमन रावत ने 3000 मीटर की दौड़ में भी स्वर्ण पदक जीता, मगर 1984 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं हो पाया था। 1985 एशियन एथलेटिक प्रतियोगिता में राष्ट्रीय कीर्तिमान के साथ भारत के लिए कांस्य पदक जीता। 1986 सियोल एशियाई खेलों में एक बार फिर नए राष्ट्रीय रिकार्ड के साथ कांस्य पदक जीता। इसी पदक से सुमन रावत को अर्जुन अवार्ड मिला। 1984 में जब सुमन रावत ने नया राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाकर प्रदेश के लिए स्वर्ण पदक जीता था तो तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सुमन रावत को जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी नियुक्त करने की घोषणा कर उसे जल्द पूरा भी किया। सुमन रावत ने मद्रास में आयोजित 1987 की दक्षिण एशियाई खेलों में 1500, 3000 व 10000 मीटर की दौड़ों में भारत के लिए तीन स्वर्ण पदक जीते थे। 1987 के अंत में तत्कालीन स्टार मैराथन दौड़ाक आशा अग्रवाल को हराकर अगले पांच वर्षों तक मैराथन में धमाल किया। 1989 से लेकर 1992 तक लगातार चार बार दिल्ली की रथ मैराथन में स्वर्ण पदक जीता।

24 दिनों में तीन मैराथन दौड़कर लिम्का बुक में अपना नाम भी सुमन रावत दर्ज करा चुकी हैं। 1988 में चंद्र प्रकाश मेहता से शादी कर आज सुमन रावत मेहता बेटी रुद्राक्षी व बेटे राहुल की मां है। 1984 से प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग में अपना खेल प्रशासक का करियर शुरू करके उपनिदेशक, सहनिदेशक, संयुक्त निदेशक व फिर हिमाचल प्रदेश की पहली विभागीय महिला निदेशक होने का गौरव भी पाया। यह अलग बात है कि निदेशक पद पर सुमन रावत को एक सप्ताह से भी कम समय तक रहने का मौका मिला। अच्छा होता यह पद इस जुझारू खिलाड़ी को बहुत पहले मिल जाता। 30 मार्च, 2019 को हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के निदेशक पद पर सेवानिवृत्त सुमन रावत से अब जहां खेल जगत से अपेक्षा रहेगी कि वह हिमाचल में अपने लंबे खिलाड़ी व खेल प्रशासक के अनुभव का लाभ प्रदेश की खेलों के उत्थान में लगाए। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सुमन रावत जो अपने कालेज जीवन में राजकीय कन्या महाविद्यालय शिमला की सत्र 1981-82 में कालेज छात्र परिषद का चुनाव जीतकर अध्यक्ष भी बनी थी, निकट भविष्य में अब सेवानिवृत्ति के बाद हिमाचल की राजनीति में प्रवेश कर सकती है। सुमन रावत ने खिलाड़ी व खेल प्रशासक के रूप में वह मुकाम हासिल किया है, जिसका हिमाचल में दूसरा उदाहरण नहीं है। राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग ने भले ही सुमन रावत को अलविदा कह दिया है, मगर  उसका आत्मविश्वास, अनुशासन, दृढ़ निश्चय, कठोर परिश्रम व धैर्य हिमाचल के किशोरों व युवाओं को प्रेरणा देता रहेगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App