कविता
May 20th, 2019 12:03 am
माता-पिता तक
माता-पिता तक
घर, घर होता है
सास-श्वसुर तक
ससुराल
बहन-भाई तक
आना-जाना
इज्जत पाना
घर-बागीचे आबाद
इसके बाद किसने देखा
जिसने देखा
वाद-विवाद अथवा
ढहते मकान घर-छप्पर बरबाद
कदम कदम पर चौराहे मिलते
रहता फिल्म सरीखा याद
अंतर्मन में बजता केवल, अनहद नाद।
-डा. प्रत्यूष गुलेरी, धर्मशाला
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