बदलते ‘टाइम’ की बात

By: May 13th, 2019 12:05 am

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रिका ‘टाइम’ ने अपने ताजा अंक की आवरण कथा में प्रधानमंत्री मोदी को ‘प्रधान विभाजनकारी’ करार दिया है, तो ‘आर्थिक सुधारक’ भी माना है। दोनों आलेख अलग-अलग लिखे गए हैं। मौजूदा चुनाव के छठे चरण के मतदान से ऐन पहले यह पत्रिका भारत में वितरित कराई गई है। हम ऐसे आरोप के पक्षधर नहीं हैं कि ‘टाइम’ की आवरण कथा पूर्वाग्रही है और देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के मंसूबों के तहत लिखी गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘इकॉनोमिस्ट’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’ या ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ सरीखे दैनिक अखबार भारत और उसके प्रधानमंत्री पर क्या टिप्पणियां छापते हैं, यह हमारे देश के लिए न तो प्रासंगिक है और न ही महत्त्वपूर्ण है। भारत की जनता का बड़ा वर्ग, कुछ बौद्धिकों को छोड़ कर इन अखबारों का नियमित पाठक भी नहीं है। ये अखबार हमारे राष्ट्रीय सरोकारों को भी प्रभावित नहीं कर सकते। अंतरराष्ट्रीय अखबारों में भारत की खबर वैसे भी किसी हाशिए पर छोटी-सी छपती रही है, लेकिन ‘टाइम’ की आवरण कथा भारत के प्रधानमंत्री मोदी और चुनाव के संभावित जनादेश पर छापी जाए, यह बेहद महत्त्वपूर्ण और गंभीर सरोकार है। चूंकि अमरीकी पत्रिका की ‘टाइमिंग’ आम चुनाव से जुड़ी है, लिहाजा उस विवादित  आवरण कथा की गूंज है, आरोप-प्रत्यारोप के सिलसिले शुरू हो गए हैं और सियासत का हाहाकार भी मचने लगा है। आलेख का आकलन है कि प्रधानमंत्री मोदी 2014 की लहर को 2019 में भी स्थापित करने में सफल रहे हैं, लिहाजा वह जीत भी सकते हैं। लिखा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारा कायम करने की इच्छा नहीं जताई। उनके उभार ने दर्शाया है कि भारत में उदारवादी संस्कृति के बजाय धार्मिक राष्ट्रवाद, मुस्लिम विरोधी भावनाएं और गहरी जातिवादी कट्टरता पनपती रही है। मोदी ने जहरीले राष्ट्रवाद का माहौल बनाने में सहायता की है। मुसलमानों के खिलाफ एक के बाद एक हिंसक घटनाएं हुईं। हिंदुओं की भीड़ ने गाय के नाम पर कई लोगों को पीट-पीट कर मार डाला। मोदी का हिंसा पर नियंत्रण नहीं रहा। एक बार नफरत को स्वीकृति मिलने के बाद उसके लक्ष्य को अलग-थलग करना आसान नहीं है। दरअसल यह आकलन पूरे भारत के संदर्भ में पूर्वाग्रही और एकांगी है। यह आकलन कुछ घटनाओं पर आधारित है, लिहाजा उन्हीं की बुनियाद पर प्रधानमंत्री मोदी को देश बांटने वाला नेता नहीं माना जा सकता। स्थानीय हिंसा या भीड़तंत्र के हमले स्थानीय और राज्य सरकारों के अधीन हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री के स्तर पर उनमें नियमित दखल नहीं दी जा सकती। मोदी सरकार के पांच सालों के दौरान हिंदू-मुसलमान का कोई भी बड़ा हमला या टकराव अथवा दंगा भारत में नहीं हुआ है। मुस्लिम मोदी-विरोधी हैं। यह उनकी विचारधारा है, लेकिन औसतन 95 फीसदी मुसलमान भारत में मौलिक और संवैधानिक अधिकारों से महरूम नहीं हैं। दरअसल ‘टाइम’ की आवरण कथा के इस हिस्से का लेखक आतिश तासीर पाकिस्तानी पत्रकार एवं उपन्यासकार है। लिहाजा उनका पूर्वाग्रह इसी मुद्दे पर स्पष्ट हो जाता है, जब उन्होंने मोदी के ‘भ्रष्टाचार’ संबंधी अभियान का उल्लेख ही गायब कर दिया। 2014 में यूपीए की 10 साला सरकार के लगातार भ्रष्टाचार और घोटालों ने ही मोदी की शख्सियत में उम्मीद पैदा की थी। उनका नारा था- ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा’। पांच साल के बाद आप सहमत हो सकते हैं कि मोदी अपने स्टैंड पर अड़े रहे और एक भी घोटाला सामने नहीं आया। राफेल पर राहुल गांधी और कांग्रेस के नारों का शोर अब सर्वोच्च न्यायालय में स्पष्ट हो चुका है। बेशक आम चुनाव राष्ट्रवाद के माहौल में हुए हैं, लेकिन वह न तो छद्म है और न ही मोदी अपनी नाकामियां छिपा रहा है। चूंकि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर होते हैं और राष्ट्र में सेना, सरहद और सुरक्षा भी आती हैं। इसी आवरण कथा का दूसरा हिस्सा इयान ब्रेमर ने लिखा है। उन्होंने 35 करोड़ से ज्यादा जन-धन बैंक खातों, उज्ज्वला गैस, स्वच्छता अभियान और आयुष्मान भारत, शौचालय सरीखी मोदी सरकार की योजनाओं का सिर्फ उल्लेख ही नहीं किया है, बल्कि उनकी सराहना भी की है। क्या इनके आधार पर यह आकलन किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी ‘सुधारक’ नहीं हैं? यदि कुछ भी सकारात्मक नहीं है, तो ‘टाइम’ का यह निष्कर्ष किस आधार पर है कि मोदी भारत में बदलाव ला सकता है और 2019 में दोबारा उसी की सरकार बन सकती है? ‘टाइम’ ने यह विश्लेषण भी किया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक साथ कई मोर्चों पर काम किया है। अपने आर्थिक सुधारों, पाकिस्तान के खिलाफ कड़े रुख और हिंदू गौरव को उभारने के कारण मोदी इस समय 2014 से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं। उन्हें विश्वसनीय विकल्प के अभाव के कारण भी फायदा हो रहा है। बहरहाल भारत का चुनाव ‘टाइम’ पत्रिका तय नहीं कर सकती। जो लिखा गया है, उस पर ज्यादा चिल्ल-पौं करने की जरूरत नहीं है। वह ‘टाइम’ भी था, जब इसी पत्रिका ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘साल की शख्सियत’ करार देते हुए आवरण कथा छापी थी। वक्त बदलते हुए बहुत कुछ बदल भी देता है, इसमें कोई हैरानी नहीं है।


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