सुख – शांति व सौभाग्य देती है अक्षय तृतीया

By: May 4th, 2019 12:07 am

अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल तृतीया को कहा जाता है। वैदिक कैलेंडर के चार सर्वाधिक शुभ दिनों में से यह एक मानी गई है। अक्षय से तात्पर्य है जिसका कभी क्षय न हो अर्थात जो कभी नष्ट नहीं होता। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वृंदावन में ठाकुर जी के चरण दर्शन इसी दिन होते हैं। अक्षय तृतीया को सामान्यतः अखतीज या अक्खा तीज के नाम से भी पुकारा जाता है। वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अक्षय तृतीया के नाम से लोक विख्यात है। अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार लिया था। अतः इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है…

दिव्य अवतार तिथि

ग्रीष्म ऋतु का पदार्पण, हरियाली फसल को पका कर, लोगों में खुशी का संचार कर, विभिन्न व्रत, पर्वों के साथ होता है। भारत भूमि व्रत व पर्वों के मोहक हार से सजी हुई मानव मूल्यों व धर्म रक्षा की गौरव गाथा गाती है। धर्म व मानव मूल्यों की रक्षा हेतु श्रीहरि विष्णु देशकाल के अनुसार अनेक रूपों को धारण करते हैं जिसमें भगवान परशुराम, नर नारायण के तीन पवित्र व शुभ अवतार अक्षय तृतीया को उदय हुए थे। मानव कल्याण की इच्छा से धर्म शास्त्रों में पुण्य शुभ पर्व की कथाओं की आवृत्ति हुई है जिसमें अक्षय तृतीया का व्रत भी प्रमुख है जो कि अपने आप में स्वयंसिद्ध है।

व्रत पद्धति

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। अपने नित्य कर्म व घर की साफ-सफाई से निवृत्त होकर स्नान करें। वैसे इस दिन समुद्र, गंगा या यमुना में स्नान करना चाहिए। इस दिन उपवास रखें और घर में ही किसी पवित्र स्थान पर विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन का संकल्प करें। संकल्प के बाद भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात उन्हें सुगंधित चंदन, पुष्पमाला अर्पण करें। नैवेद्य में जौ या जौ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें। भगवान विष्णु को तुलसी अधिक प्रिय है, अतः नैवेद्य के साथ तुलसी अवश्य चढाएं। जहां तक हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी करें। अंत में भक्ति पूर्वक आरती करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चंद्रमा इस दिन उच्चस्थ स्थिति में होते हैं।

क्षमा-प्रार्थना का दिन

मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है। इस दिन को सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन भी कहते हैं क्योंकि इस दिन शुभ काम के लिए पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सद्गुण प्रदान करते हैं। अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सद्गुणों का वरदान मांगना चाहिए।

धार्मिक महत्त्व

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। नर नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। अक्षय तृतीया को व्रत रखने और अधिकाधिक दान देने का बड़ा ही महात्म्य है। अक्षय तृतीया में सतयुग, किंतु कल्पभेद से त्रेतायुग की शुरुआत होने से इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। वैशाख मास में भगवान भास्कर की तेज धूप तथा लहलहाती गर्मी से प्रत्येक जीवधारी क्षुधा पिपासा से व्याकुल हो उठता है। इसलिए इस तिथि में शीतल जल, कलश, चावल, चना, दूध, दही आदि खाद्य व पेय पदार्थों सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी माना गया है। सुख-शांति की कामना से व सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन शिव-पार्वती और नर नारायण की पूजा का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रखकर जो प्राणी गंगा-जमुनादि तीर्थों में स्नान कर अपनी शक्तिनुसार देव स्थल व घर में ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं, उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

सुख व समृद्धि वर्धक

तृतीया तिथि मां गौरी की तिथि है जो बल-बुद्धि वर्धक मानी गई हैं। अतः सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन मां गौरी व संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं, उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि अविवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन श्रद्धा विश्वास से मां गौरी सहित अनंत प्रभु शिव को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं तो उन्हें सफल व सुखद वैवाहिक सूत्र में अविलंब व निर्बाध रूप से जुड़ने का पवित्र अवसर अति शीघ्र मिलता है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान, स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्त्व तथा फल रहता है। इस तिथि का जहां धार्मिक महत्त्व है, वहीं यह तिथि व्यापारिक रौनक बढ़ाने वाली भी मानी गई है। इस दिन स्वर्णादि आभूषणों की खरीद-फरोख्त को बहुत ही शुभ माना जाता है। आभूषण निर्माता व विक्रेता अपने प्रतिष्ठानों को बड़े ही सुंदर ढंग से सजाते हैं और कई तरह से ग्राहकों को लुभाने व आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। कई बड़े प्रतिष्ठानों में तो विक्रय लक्ष्य भी तय किए जाते हैं। इसमें इच्छित आभूषणों की खरीद व शुभ कार्य संपन्न करने से मानव जीवन सुख व धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। श्रद्धालु भक्त प्रभु की अर्चना वंदना करते हुए विविध नैवेद्य अर्पित करते हैं। अक्षय तृतीया सुख-शांति व सौभाग्य में निरंतर वृद्धि करने वाली है।


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